पौने तीन मिनट
चौराहे के समीप आते-आते वैभव ने सामने सिग्नल पर नज़र डाली मात्र पाँच सेकंड बचे थे उसे लाल होने में उसने बाइक की गति बढ़ा दी लेकिन जब वह स्टॉप लाइन से 50 मीटर दूर ही था सिग्नल लाल हो गया। वैभव ने गति कम करते हुए ब्रेक लगा दिए बाइक जोर से चीं की आवाज करते हुए रुक गई। एक खीज सी वैभव के दिमाग में उभरी फिर वह हेलमेट का ग्लास खोलकर आसपास देखने लगा।
सुबह के 10:00 बजे थे चौराहा तीखी चमकीली धूप से सराबोर था। सिग्नल के तीन तरफ रुके ट्रैफिक की कतारें 50 से 100 मीटर तक फैली थीं। दोपहिया वाहन वाले धूप में रुकने से झुंझलाये हुए अपना हेलमेट उतार कर सिग्नल हरा होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। कार सवार कार का एसी चलाये जहरीला धुआं अपने से कमतर हैसियत वाले बाइक और साइकिल सवारों पर छोड़कर मानों जता रहे थे कि तुम इसी लायक हो। कुछ पैदल चलने वाले आँख बंद कर इस पार से उस पार जा रहे थे उन्हें न लाल बत्ती की परवाह थी न हरी बत्ती की। उनके अचानक बीच में आने से गाड़ियों की गति कहीं धीमी होती कहीं थम जाती। बाइक वाले दाएं बाएं से निकल जाते और चार पहिया वाले मुँह बनाते भद्दी गाली देते और आगे बढ़ जाते। एक सिग्नल के खंबे के पास ट्रैफिक जवान निस्पृह सा खड़ा था वह न तो पैदल चलने वालों को रोक रहा था और न ही स्टॉप लाइन से आगे आकर खड़े या लेफ्ट टर्न रोक कर खड़े वाहन चालकों को। लेफ्ट मुड़ने वाले पीछे से तेज हॉर्न बजा रहे थे लेफ्ट टर्न रोक कर खड़े वाहन इंच दो इंच आगे बढ़ते और रुक जाते। आगे ट्रैफिक जवान का खौफ उन्हें सता रहा था न जाने उदासीन से दिखने वाले इस व्यक्ति का कर्तव्य बोध कब जाग जाए और कब वह गाड़ी साइड में लगवा कर टारगेट पूरा करने लगे। हालांकि गाड़ी साइड में लगवाने के लिए साइड जैसी कोई जगह उस चौराहे पर नहीं थी। हर सिग्नल पर गाड़ियों के आसपास कुछ बच्चे भीख माँग रहे थे। वह अधिकतर कार के आसपास मंडराते उसके शीशे को थपथपाते उसमें से अंदर झांकते अपनी दयनीय सूरत दिखा कर कुछ पाने की उम्मीद कर रहे थे। बाइक और साइकिल वालों को उन्होंने भी कम हैसियत का समझ कर छोड़ दिया था।
वैभव ने लगभग 40 सेकंड में चौराहे का यह जायजा ले लिया था। सिग्नल बदल गया था अब दूसरी सड़क से ट्रैफिक चालू हो गया था। अब गाड़ियाँ वैभव के सामने से गुजर रही थीं। चौराहा पार करने की हड़बड़ी उनमें साफ दिख रही थी। कुछ साइकिल वाले अब इस इंतजार से उकता कर थोड़े थोड़े आगे आते हुए स्टाॅप लाइन के तीन चार मीटर आगे तक आ चुके थे और सामने से आ रही गाड़ियों की गति को रोक रहे थे।
तभी सामने की सड़क से एक बाईस पच्चीस साल की लड़की जिसने हरी पीली साड़ी पहनी थी दुबले पतले शरीर पर उसका बड़ा हुआ पेट बता रहा था कि वह माँ बनने वाली है सड़क पार करके वैभव की दिशा में बढ़ने लगी थी। तीखी धूप ने उसे बहुत परेशान कर दिया था या शायद वह बहुत दूर से बहुत देर से पैदल चल रही थी उसने साड़ी का पल्ला सिर पर लेकर सिर को धूप से बचाने का जतन किया। एक बार आंखें मिचमिचा कर आसमान की ओर ताका और फिर उसके कदम मानो सड़क से उखड़ गए। एक दो कदम आड़े तिरछे रखते वह आगे बढ़ी लेकिन तीसरे कदम पर खुद को न संभाल पाई और बेहोश होकर तपती सड़क पर गिर गई। वह वैभव से लगभग बीस पच्चीस मीटर दूर चौराहे के बीचो बीच सड़क पर गिरी थी। सड़क पार करने वाली गाड़ियाँ थोड़ी धीमी हुई और फिर उसके दाएं बाएं से गुजरने लगीं मानो अगर अभी सिग्नल पार न किया तो वह जिंदगी भर के लिए लाल होकर रह जाएगा और फिर वह कभी यह चौराहा पार करके अपने गंतव्य पर नहीं पहुंच पाएंगे। वैभव के सामने वाले सिग्नल के पास खड़े ट्रैफिक जवान ने अब तक उस औरत को सड़क पर गिरे हुए नहीं देखा था संभवतः वह अपने ही किन्हीं विचारों में खोया था शायद कोई पारिवारिक समस्या में या अपनी पोस्टिंग किसी और विभाग या चौराहे पर करवाने की योजना बनाने की जुगत में।
अब वैभव के बाएँ तरफ से ट्रैफिक शुरू हो गया वह औरत सड़क के बीच बेसुध पड़ी हरी पीली घास का ढेर लग रही थी। उसकी साड़ी का रंग बिरंगापन गाड़ियों को उसे बचाकर उसके आसपास से निकलने का संकेत दे रहा था। ट्रैफिक जवान की नजर उस पर पड़ चुकी थी वह दौड़ कर उस तक आया और हाथ देकर सीटी बजाकर गाड़ियों को अगल-बगल से निकलने का इशारा करने लगा। वह किसी खाली ऑटो को देख रहा था लेकिन ऑटो वाले सड़क पर पड़ी उस औरत को देखते जवान को देखते तो कभी स्पीड कम करते कभी बढ़ाते किसी कार की आड़ लेते वहाँ से गुजर जाते। वैभव ने आसपास नजर दौड़ाई शायद कोई उस जवान या औरत की मदद करने आगे आए। उसने देखा आसपास बहुत सारे लोगों ने मोबाइल निकाल लिया था कोई फोटो ले रहा था तो कोई वीडियो बना रहा था। बाकी दो सिग्नल पर रुकी सड़कों पर भी कई लोग वीडियो बनाने में मशगूल थे। ट्रैफिक जवान ने झुककर उस औरत को हिलाया डुलाया वह सड़क पर पसर गई। ट्रैफिक अभी भी निर्बाध चल रहा था। सिग्नल पर रुके लोग उत्सुकता और चेहरे पर दया के भाव लाकर फोटो वीडियो लेने में मशगूल थे। कुछ बाइक सवार आपस में बात कर अपने समझदार होने का परिचय बगल में 30 सेकंड के लिए खड़े सवार को दे देने को बेताब थे। कुछ बंद कार में बैठे लोगों को घटना का ब्यौरा देकर पुण्य कमा रहे थे। कुछ गाड़ियों में महिलाएँ निर्लिप्त सी बैठी थीं उनके चेहरे पर एक संतुष्टि थी कि वे अकेले नहीं हैं उनके साथ कोई है जो मुसीबत में उनकी मदद कर सकता है और यह उनकी समझदारी है। उस पर पानी डालो गर्मी से बेहोश हो गई ऐसी हालत में अकेले नहीं निकलना चाहिए किसी को साथ लेकर आती जैसी फुसफुसाहटें हवा में तैर रही थीं। वैभव के पास पानी नहीं था लेकिन लगभग हर कार में पानी था कुछ बाइक सवार भी पानी रखे हुए थे लेकिन उतरकर जाने में सिग्नल हरा हो जाने और फिर लाल हो जाने पर अगले 2:45 मिनट के लिए फिर रुक जाने का डर उन्हें रोक रहा था। हर व्यक्ति दिल में चाह रहा था कि कोई उस औरत को पानी पिला दे लेकिन वह कोई खुद न हो।
सिपाही ने मोबाइल निकाला वह एंबुलेंस को फोन लगा रहा था। वह उस औरत को उठाने की कोशिश भी कर रहा था उसे डर था कि गर्म सड़क उसके शरीर पर फफोले ना बना दे। लेकिन उसे यह भी डर था कि न जाने किस एंगल से खींचे गए किसी फोटो या वीडियो में ऐसा कुछ आपत्तिजनक आ जाए कि वह मुसीबत में फँस जाए। वैभव उसकी बेबसी देख रहा था वह उस बेसुध पड़ी औरत के लिए भी चिंतित था। उसका उभरा पेट उसी के वजन से दब रहा था जो नुकसानदायक हो सकता था। उसने सामने देखा लाल सिग्नल बस हरा होने को था। वह सिग्नल लाल होते ही रुक गया था वह सबसे लंबे समय से सिग्नल पर रुका था अब उसे यहाँ और रुकना चाहिए या नहीं वह निश्चित नहीं कर पा रहा था। थोड़ी देर में एंबुलेंस आ ही जाएगी वह रुक कर क्या करेगा? बाइक पर तो वह उसे ले जा नहीं सकता। उसके रुकने से कुछ नहीं होगा इतने लोग भी तो गुजरे कोई नहीं रुका फिर वही क्यों? कम से कम वह फोटो तो नहीं खींच रहा था उसने खुद को समझाया। वह इस इंतज़ार और उम्मीद में था कि कोई तो उसकी मदद करे वह कितनी देर सिग्नल पर रुका रह सकता है। उसकी तरफ का लाल सिग्नल हरा हो गया था पीछे से कारों के कान फोडू हार्न उसमें बेचैनी पैदा करने लगे। उसे अब चौराहा पार कर लेना चाहिए। उसने हेलमेट का शीशा बंद किया बाइक में किक लगाया एक नजर अगल बगल से कट मारते चौराहा पार करती गाड़ियों को देखा ट्रैफिक जवान को देखा और बाइक आगे बढ़ाते हुए दाएं तरफ का टर्न सिग्नल दिया और बाइक उस जवान के पास ले जाकर ऐसे रोकी कि सड़क पर पड़ी वह औरत बाइक की छाँव में आ गई। उसने और जवान ने उस औरत को उठाकर सीधा किया और एंबुलेंस का इंतजार करने लगे।
चौराहे पर सिग्नल बारी-बारी से लाल हरे हो रहे थे और वह अगले कई पौने तीन मिनट वहाँ रुकने का मन बना चुका था।
कविता वर्मा
चर्चा में लेने के लिए मैटर सलेक्ट नहीं होता है। ताला खोलिए ब्लॉग का।
जवाब देंहटाएंआज के सभी लोग ऐसे ही अनदेखा कर निकल जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंजी सच में
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंज़बरदस्त ! वह चौराहा जैसे सबके जीवन में उपस्थित हो , सवाल पूछते हुए..... सब इंतज़ार कर रहे थे कि कोई मदद कर दे, पर उनको न करनी पड़े ! .... सार्वभौमिक बहाना. पर सबसे अच्छी लगी कथा की परिणिति. तमाशबीन न रहते हुए मदद करने का फ़ैसला . यही परिणिति हो हम सबके असमंजस और दुविधा की .
जवाब देंहटाएंनुपुर जी आपने कहानी के मर्म को बहुत अच्छे से व्यक्त किया हार्दिक धन्यवाद 🙏
हटाएंजीवन में आती जा रही संवेदनहीनता ने हमें अपने में केंद्रित कर दिया है। हम अपने को सीमित कर लिया है।
जवाब देंहटाएंजी दीदी अनदेखा करने की यह प्रवृत्ति बहुत खराब है
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