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मंगलवार, 29 जनवरी 2013

चल खुसरो घर आपने ......2


बाबूजी ऐसे समय में बिलकुल खामोश थे बेटे उनकी तरफ देख रहे थे लेकिन वे स्थिति को समझ रहे थे और ऐसे समय में चुप रहना ही उन्हें सबसे बेहतर लग रहा था। आखिर ये तय हुआ की एक दो दिन और देख लेते है फिर दोनों बहनों को खबर की जाएगी उन्हें खबर करना सबसे जरूरी भी था। एक दिन आराम से गुजरा लेकिन उस दिन अम्माजी ने कुछ खाया नहीं खाने की स्थिति में तो वे थी ही नहीं लेकिन जो थोडा बहुत तरल ले रही थीं वह भी बहुत कम हो गया था इसलिए उस रात ही दोनों बहनों को फोन कर दिया गया साथ ही ये हिदायत भी दी गयी की अपनी व्यवस्था से आयें एकदम घबरायें नहीं। 

दूसरे दिन दोपहर में बड़ी बेटी पहुँच गयी और शाम तक छोटी भी। अम्माजी उन से मिल कर विभोर हो गयीं बेजान पड़ी उँगलियों में थोड़ी हरकत हुई और आँखों से आँसू बह निकले। वे भी उन्हें ढाढ़स बांधती रहीं सब ठीक हो जायेगा। लेकिन जब वहां से उठ कर दूसरे कमरे में आयीं तो भाभी के गले लग कर खूब रोयीं। बड़े भैया ने उन्हें धीरज बंधाया। देखो हिम्मत रखो बस ये शुक्र मंनाओ की उन्हें कोई तकलीफ नहीं है। 

उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवा देते तो शायद कुछ होता। बहनों की आवाज़ में उनकी देखभाल के लिए अविश्वास का एक हल्का सा संकेत बड़े भैया जी और बहू जी को विचलित कर गया लेकिन उन्होंने इसे जाहिर नहीं होने दिया। इस समय बहनें भावावेग में हैं, अम्माजी की इस हालत ने उन्हें हिला दिया है। उन्हें समझाया गया की इस अवस्था का अब कोई इलाज़ नहीं है। हॉस्पिटल में आई सी यू ,वेंटिलेटर सलाइन सब में उनके शरीर को ही कष्ट होगा। छोटी बहन तो फिर भी कुछ नहीं बोली लेकिन बाड़ी बहन की आँखों में अविश्वास की परछाई तैरती ही रही। बहूजी का मन रोने को हो आया वे वहां से हट गयीं। भैया जी ने उनका उतरा चेहरा देख लिया लेकिन इस समय वे उन्हें सांत्वना देने नहीं जा सकते थे। छोटी बहू ने समझदारी दिखाई और वो बहूजी के पीछे हो ली। सबको खबर करने का ये एक नया आयाम था जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन इस मोर्चे पर जूझना सबसे ज्यादा कष्टकारी था। किसी बड़ी बीमारी से कोई मर रहा हो कष्ट भोग रहा हो,रोग लाइलाज हो फिर भी हॉस्पिटल में इलाज़ करवाया जा रहा हो तो सबको एक तसल्ली रहती है की इलाज़ हो रहा है लेकिन बुढ़ापे की वजह से धीरे धीरे बिना कष्ट के मृत्यु की और बढ़ना सह्ज़ता से नहीं लिया जा सकता। 

बड़ी बहूजी थोड़ी देर रो लीं अपनी सेवा का यूं बेमोल होते देखना सहन नहीं हुआ उन्हें। रोते हुए भी उन्होंने जो जो कुछ किया था कह सुनाया। छोटी बहूजी सुनती रहीं और उनकी सेवा का मोल उन्हें समझाती रहीं। वे जानती थीं की इस समय बड़ी बहूजी की हिम्मत बंधाये रखना बहुत जरूरी है अभी तो ये पहला हमला है आगे न जाने और क्या क्या सुनना बाकी है। 
अम्माजी की हालत में कोई सुधार न था .डॉक्टर की बताई मियाद ख़त्म होती जा रही थी। सब उलटी गिनती गिन रहे थे सभी रिश्तेदारों को खबर करने का दबाब भी उन पर था। आखिर दो दिन बाद सभी को फ़ोन किया गया। बुआजी ,मामाजी काकाजी सबके रात तक पहुँचाने की उम्मीद थी। हलकी ठण्ड पड़नी शुरू हो गयी थी। सबके सोने की जगह और बिस्तर का इंतजाम करने में समय निकल गया। इस बीच छोटी बेटी ने अम्माजी की सेवा का भार अपने ऊपर ले लिया। उन्हें स्पंज देना दिन में हर दो घंटे में उन्हें सूप, फलों का रस पिलाना उनसे बतियाना। शाम होते मामाजी और बड़ी बुआजी आ गयीं तो देर रात छोटी बुआजी भी पहुँच गयीं। काकाजी की खबर आ गयी की वे दूसरे दिन सुबह आ जायेंगे। 

मामाजी ने अम्माजी से हाल चाल पूछे तब तक बुआजी पहुँच गयीं और अपने ठसके के साथ उन्होंने बातें शुरू कर दी तो मामाजी एक किनारे हो गए। अम्माजी की इच्छा का तो कोई मोल था ही नहीं। जब मामाजी की भावनाओं का कोई मोल न था तो अम्माजी तो लगभग बेजान हो चुकी थीं। हां उनके बेजान शरीर के बहाने अपनी बेजान भावनाओं को सबके सामने प्रदर्शित करने का मौका वो छोड़ना नहीं चाहती थीं। भाभी कैसी हो? क्या हाल बना लिया है? अरे कितने सालों बाद बुलाया हमें तो अब उठो तो हमें बुला कर ऐसे पड़ गयीं की कहीं कोई सेवा न करवा ले ननदें। ये बुआजी का स्टाईल था या मायके आने पर खातिरदारी न होने की आशंका या बहुओं को ये जताने की कोशिश की मौका चाहे जो हो मान दान में कहीं कोई कसर न रह जाये। दोनों बहुओं ने एक दूसरे को देखा और होंठों के किनारे स्वतः ही तिरछे हो गए। लेकिन एक बात जो किसी को दिखाई नहीं दी की वो शायद ये थी की बड़ी बुआजी भी जानती थीं की उन्होंने अपनी भाभी तो ताने उलहाने देने में कभी कोई कोताही नहीं की लेकिन आज उनके आखरी समय में उनका दिल उन्हें कचोट रहा था जिसे छुपाने के लिए वे अपने उसी रूप का सहारा ले रही थीं। अब अपनी गलती खुले और साफ़ शब्दों में स्वीकारना और वो भी अपने बच्चों के सामने इतना आसान तो नहीं था। लेकिन वे अपने ठसक से नीचे भी नहीं उतर सकती थीं। 

छोटी बुआजी देर तक अम्माजी के पास बैठी रहीं उनके और अम्माजी के बीच शुरू से एक स्नेह डोर रही वे एक दूसरे के सुख दुःख की हमेशा साझी रहीं लेकिन समय और रिश्ते कब एक से रहते हैं? उनके बीच की डोर भी समय के थपेड़ों से कभी कमजोर भी हुई लेकिन तंतु जुड़े रहे।आज इस समय में वही डोर अपने उधडे टूटे सारे तंतु इकठ्ठे करके अपनी पूरी मजबूती के साथ उन्हें जोड़े हुए थी। सारी औपचारिक बातों में ये शिकायत भी थी की हमें अपना नहीं समझा पहले खबर दे देते तो हम भी कुछ दिन सेवा कर लेते अब आखरी कुछ दिन ही बचे हैं ऐसे तो दूर दराज़ के लोगों को खबर की जाती है। फिर जैसे सबका ध्यान छोटी बहू की ओर गया। तुम कब आयीं? पिछले साल जब तबियत खराब हुई थी तब आयीं थीं? अरे नहीं आयीं? क्यों भाई ऐसी भी क्या दूरी है की सगी सास को देखने ना आ सको? अरे बच्चे तो सब के पढ़ते है लेकिन नाते रिश्तेदारी तो निभाना पड़ती है न? तुम तो वैसे भी कभी किसी रिश्तेदारी में दिखाई नहीं देतीं। अब तो दोनों दीदियों को भी मौका मिल गया। छोटी बहू जानती थी इस समय कुछ कहना मुश्किल है उसके एक शब्द को पकड़ कर उसे पूरी रामायण सुनायी जा सकती है।पति की प्रायवेट नौकरी दूरी बच्चों की पढाई के चलते उसका आना नहीं हो पता ये बात सही है लेकिन उसके घर ही कब कौन पहुँच जाता है? दोनों दीदियाँ तो दूरी के ही बहाने कभी उसके घर नहीं आयीं तो जो दूरी उनके लिए है वही उसके लिए भी है और दूरी पाटने की कोशिश तो दोनों ओर से होना चाहिए न? बड़ी बहू ने उसे आँखों से सांत्वना दी और इस बात को टाल जाने का संकेत भी। लेकिन खान पीना होने के दौरान छोटी बहू का मूड उखड़ा ही रहा। 
ठण्ड बढ़ गयी थी खाने के बाद सब अपने बिस्तर में दुबक गए। मामाजी को अब अम्माजी के पास बैठने को मिला। वे बहूत देर तक उनका हाथ थामे बचपन की गलियों में घूमते रहे। कुछ उन्हें सुनाते रहे कुछ खुद ही याद करके अपने आंसू जब्त करते रहे। बाबूजी ने उन्हें भावुक होते देखा तो थोड़ी देर कमरे से बाहर चले गए। बाहर के कमरे में बुआजी और दीदियों के बीच नयी पुरानी यादों का दौर चल निकला था। ठहाकों से अडोस पड़ोस भी गुंजायमान था। छोटी बहू अभी भी बिसुर रही थी लेकिन सबके साथ बैठना मजबूरी थी। बड़ी बहू की पीठ दर्द से दोहरी हुई जा रही थी उन्होंने भैयाजी की ओर देखा वे समझ रहे थे की सारा दिन की भागदौड के बाद अब वे थक गयी हैं लेकिन सब लम्बे सफ़र के रिजर्वेशन के पैसे वसूलते सोते हुए आये थे और अभी जल्दी सोने का किसी का मन नहीं दिख रहा था। 
थोड़ी देर बाद उन्होंने दोनों बहुओं इशारा किया जाकर सो जाएँ उन्हें सुबह जल्दी उठना था। वो महफ़िल तो देर रात तक चलती रहेगी। 

ठण्ड बढ़ गयी थी सुबह सब देर तक बिस्तर में दुबके पड़े रहे। बहुएँ रसोई में जुट चुकी थीं तभी बड़ी बुआजी की आवाज़ आयी अरे क्या बजा है?गैस पर से सब्जी उतार कर चाय की पतीली चढ़ाती बड़ी बहु ने छोटी से कहा तुम पहले सबकी चाय बना लो देर हो गयी तो फिर सारा दिन किसी न किसी बहाने से बुआजी सुनाती रहेंगी। 
भाभी  इन्हें बुलाना जरूरी था क्या? लगता तो नहीं है की इन्हें अम्माजी की तबियत की कोई चिंता है। हां छोटी बुआजी फिर भी थोडा मन रखती हैं। 
वो तो है लेकिन अब एक को खबर दें और दूसरे को नहीं ये तो नहीं हो सकता न? 
अरे लाड़ी अभी तक उठी नहीं हो क्या?? चाय वाय मिलेगी की नहीं? बड़ी बुआजी की आवाज़ ने सबको उठा दिया था। 
जी बुआजी हम तो उठ गए आपके ही उठने का इंतज़ार कर रहे थे,चाय तैयार है।छोटी बहू कल के अपने उखड़े मूड को अब तक संभाल चुकी थी। रात में छोटे भैयाजी ने उनकी सभी बातों से सहमत होते हुए उन्हें कुछ दिन इस कान से सुन उस कान से निकालने की सलाह दी थी। ऐसे मौके पर अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करके होना भी क्या था जबकि बड़े बड़े तमाशाई मौजूद थे। 
बड़ी दीदी ने चाय का कप हाथ में लेते ही कहा भाभी चाय तो बिलकुल ठंडी हो गयी मैं तो गरम की चाय पीती नहीं हूँ दूसरी बना लाओ ठण्ड में एक कप गरम चाय के बिना तो उठा नहीं जाता। 
भैयाजी को सुबह नौ बजे ऑफिस के लिए निकलना होता है वे थोडा कुछ खा कर और टिफिन ले कर जाते हैं बड़ा धर्म संकट था पहले खाना बनाये की बार बार चाय बनायें? 
तभी छोटी दीदी की आवाज़ आयी भाभी मोनू उठ गया है उसके लिए दूध गर्म करके दे दो। 
ये अच्छा है मायके तो आराम करने के लिए आया जाता है न अब अपने बच्चे का दूध भी खुद गर्म नहीं कर सकतीं। बहूजी की गुनगुनाहट भैयाजी ने सुनी तो धीरे से उनके कंधे को थपक कर शांत होने को कहा। तुम मेरी चिंता छोडो में केन्टीन में कुछ खा लूँगा। 
अम्माजी की सुबह की देखभाल करनी थी भैयाजी टिफिन नहीं ले जा पाएंगे ये सोच कर बड़ी बहूजी का मूड खराब था। तभी काम वाली बाई आ गयी। झाड़ू ले कर कमरे में पहुंची तो देखा सब अभी भी पसरे पड़े हैं। बाहर बर्तन का ढेर वो देख ही आयी थी सो उसका दिमाग भन्नाया हुआ था। उसने आते ही एलान कर दिया भाभी ठण्ड बढ़ गयी है उस पर इतने मेहमान इतने बर्तन, गरम पानी करके दो नहीं तो कल से काम पर नहीं आउंगी। बहूजी की तो सांस ही अटक गयी  सब काम छोड़ कर वो उसे मनाने लगीं देख शांता तू देख रही है न अम्माजी की हालत अब ऐसे सुख दुःख में तू धोखा दे जाएगी तो मैं किसके सहारे ये समय निकालूंगी? देख कुछ दिनों की बात है इस समय छुट्टी मत करना मैं बाद में तेरा सब हिसाब कर दूँगी। 
ठीक है भाभी इतना तो हम गरीब लोग भी समझते हैं लेकिन अब मैं एक घर के काम के लिए इतनी देर रुकूंगी तो दूसरों के यहाँ देर हो जाएगी कल से बिस्तर विस्तर उठवा कर रखना। एक तो काम ज्यादा है टेम ज्यादा लगेगा मैं बर्तन करती तब तक तुम अन्दर का काम समेट लो। 
बाबूजी सब सुन रहे थे। बहूजी और उनकी निगाह टकरायी तो उन्होंने नज़रें चुरा लीं, लेकिन फिर वे सीधे अन्दर चले गए और छोटी बेटी को इंगित करके कहने लगे सुनयना जरा बिस्तर उठा लो काम वाली बाई आ गयी है। अच्छा तो किसी को नहीं लगा लेकिन फिर भी बिना कुछ कहे सब उठ गए और जैसे तैसे बिस्तर उठा कर सोफे या तखत पर पसर गए। 
अम्माजी के बेजान पड़े शरीर को उठा कर उनके बिस्तर की चादर उनके कपडे बदलना उनका स्पंज करना थकाऊ काम था। जब घर में लोग कम थे उनका काम पहले होता था लेकिन अब अम्माजी की चिंता करने आये लोगों की चिंता करने में उनका काम उनकी देखभाल का समय बिगड़ गया लेकिन इसकी शिकायत न अम्माजी कर सकती थीं न उनके असली शुभचिंतक। सारे कामों से निबट कर बहुएँ जब उनके पास पहुंची तो अम्माजी की आँखों में आंसू थे। ये देख कर बड़ी बहूजी भी अपने आंसू नहीं रोक पाई। बड़ी दीदी को तो बस बहाना मिल गया। क्या करें अम्माजी खुद से कुछ कर नहीं सकतीं मोहताज़ हैं अब तो जब सारे काम हो जायेंगे तब उनकी सुध ली जाएगी। इससे तो उन्हें हॉस्पिटल में रखा जाता तो कम से कम वहाँ नर्स तो होती टाइम से उनकी देखभाल करने के लिए। अब बताओ 12 बज रहे हैं अभी तक ना उनके कपडे बदले हैं न उनके कुछ खिलाया पिलाया। सच तो ये था की सब अपनी गपशप में इतने व्यस्त थे की किसी को ध्यान ही नहीं था की अम्माजी की सेवा टहल कर लें अब दोनों बुआजी तो कुछ करने से रहीं लेकिन बेटियां तो सेवा कर सकती थीं लेकिन दो दिन से उनकी देखभाल करने वाली छोटी दीदी भी आज बातों में ऐसी उलझी की बस बैठी ही रह गयी। लेकिन अब उन्हें एहसास हुआ की उन्हें अम्माजी का ध्यान रखना चाहिए था। खाना पीना निबटा ही था की काकाजी भी पहुँच गए बहुएँ फिर रसोई में व्यस्त हो गयीं। तबियत अस्पताल की वही रामायण फिर दोहराई गयी। ताने उलाहने फिर सुनाये गए लेकिन अब उनके लिए सबने अपने कान और दिमाग बंद कर लिए थे। 

मामाजी और छोटे भैया बारी बारी से अम्माजी के पास बैठे उनसे बातें करते रहते कई बार सबसे छुपा कर गीली हो आयी आँखें पोंछते। अम्माजी की सांस उखड़ने लगी थी बस लगता था की अब गयीं और तब गयीं। सब सांस रोके जैसे उनकी सांस रुकने का ही इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन छोटी दीदी ने उनके लिए सूप जूस पिलाना जारी रखा इससे मिली ताकत थी या सबको अपने आस पास देख कर अम्माजी का उनसे लगाव की वे यमदूत को दरवाजे पर ही रोके हुए थीं। दूसरा दिन बीतते न बीतते छोटी बुआजी बैचेन होने लगीं। दोनों बुआजी में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी। ऐसे कब तक यहाँ रुके रहेंगे?वहां घर पर खाने पीने की परेशानी हो रही होगी। अच्छे भले में आये होते तो रुकना ठीक भी लगता। बड़ी दीदी भी उकताई हुई सी थीं। एक तकलीफ तो ये भी थी की दोनों बहुएँ बिना किसी से किसी काम की आस रखे आपसी सामंजस्य से सारा काम निबटा रही थीं उस पर उनके कहे सुने को भी अनसुना करके चुप थीं अम्माजी की सेवा के लिए भी दोनों तत्पर थीं ऐसे में किसी भी उद्देश्य के लिए उनका वहाँ रहना निरर्थक था। अपनी ये निरर्थकता उन्हें कचोट रही थी। 

अगले दिन सुबह से ही दोनों बुआजी और बड़ी दीदी ने मंदिर दर्शन फिर वहां से किसी रिश्तेदार के यहाँ जाने का कार्यक्रम बना लिया। छोटी दीदी ने जाने से मना कर दिया। सुबह जल्दी खाना खा कर सब निकल गए। काकाजी भी साथ हो लिए। घर में थोड़ी शांति हो गयी। आज कई दिनों बाद बहुओं को अम्माजी के पास बैठने का समय मिला था। लेकिन वो समय भी ज्यादा देर नहीं रहा। अभी तो गेहू साफ करने है आटा ख़त्म होने को है मेहमानों के सामने करना ठीक भी नहीं लगता। आज मशीन लगा कर कपडे भी धो लिए जाएँ। आज बहुत दिनों बाद बेटे के स्कूल से घर आने के समय बड़ी बहू थोड़ी फ्री थीं उसके पास बैठते उससे बातें करते उन्हें लगा जैसे कई दिनों बाद वे अपने बेटे से मिल रही हैं। बेटे ने बड़ी मासूमियत से पूछा था मम्मी ये सब लोग यहाँ कब तक रहेंगे? अब इस बात का या तो कोई जवाब नहीं था या जो जवाब था वो इतना वीभत्स था की वे चुप लगा गयीं। 
क्रमश 

शनिवार, 26 जनवरी 2013

चल खुसरो घर आपने ......


अम्मा जी की तबियत बहुत दिनों से ठीक नहीं चल रही थी। उम्र भी हो गयी थी। अस्सी के लगभग तो होगी। दांत सारे  गिर गए थे। दूसरी बत्तीसी लगवाने की कई बार कोशिश की लेकिन उन्हें बड़ा अटपटा लगता था इसलिए नहीं लगवाई। इसलिए खाने पीने में कई चीज़ों से वंचित हो गयीं। बाल सारे सफ़ेद हो गए।चेहरे पर सलवटों के बीच अपने दिनों की सुंदरी अम्माजी को ढूँढ पाना मुश्किल हो गया। साल भर पहले इन्हीं दिनों उन्हें अटेक आया था लगा तो उस समय भी यही था की अम्माजी अब गयीं की तब गयीं। लेकिन जाने कैसी इच्छा शक्ति थी की कुछ ही दिनों में वे फिर उठ खड़ी हो गयीं थी। उस समय सब हॉस्पिटल के चक्कर में ही रहे उन्हें आई सी यू में रखा गया था। ऐसे में किसे होश था कि रिश्तेदारों को खबर करें? फिर घर में सिर्फ उनकी एक बहू ही थी अब वह या तो घर देखे या हॉस्पिटल में उन्हें देखे। 

जब हॉस्पिटल से घर आ गयीं तब उनकी बेटियों को खबर दी गयी। खबर सुनते ही सबने घरवालों की जो लानत मलानत की कि पूछो ही मत। उनकी बड़ी बेटी यानि बड़ी बुआ ने तो अपने भाई को खूब खरी खोटी सुनाई। अब बता रहे हो अगर अम्माजी को कुछ हो जाता तो क्या मिटटी के दर्शन करने बुलाते?उनके जीते जी एक बार उनसे मिल लेते। उनका आशीष ले लेते लेकिन तुम्हे क्यों होश रहने लगा की हमें खबर करो। छोटी बेटी ने इतना कुछ तो नहीं कहा लेकिन इतना जरूर कहा की भैया एक बार फ़ोन तो कर देते। लेकिन बुआजी याने अम्माजी की दोनों ननदें तो भतीजे के सर पर ही सवार हो गयीं। बेटा अभी जब तक भैया भाभी जिन्दा हैं तब तक तो सुख दुःख का रिश्ता निभा लो। उनके जाने के बाद जाने हमारा मायका रहे न रहे। भाभी से आखरी समय में मिल कर अपने कहे सुने की माफ़ी ही मांग लेते। वो तो वो ठीक हो गयीं नहीं तो ये कसक जीवन भर की हो गयीं थीं। अब ये अलग बात है की दोनों बुआजी अम्माजी के हर काम में मीन मेख निकलने में सारी जिंदगी लगी रहीं। काकाजी याने बाबूजी के छोटे भाई कहने को उनसे महीनों कोई सन्देश खबर नहीं मिलती  लेकिन ऐसे समय में वे भी कहने से कैसे चूकते बेटा कम से कम घर वालों से तो सम्बन्ध निभाओ। अब ये अलग बात है की उनका बेटा  तो उन्ही से कोई सम्बन्ध नहीं रखता। हां अम्माजी के मायके वाले जरूर बहुत कुछ नहीं कह पाए बाबूजी का बहुत लिहाज करते है लेकिन ये तो कहा ही चलो भगवन की दया है वे ठीक है नहीं उन्हें जीते जी नहीं देख पाते। 

इस चौतरफा आक्रमण से अम्माजी के बेटे और बहू बहुत व्यथित हुए। अब कहते तो किससे इसलिए एक दूसरे से ही यह कह कर संतोष कर लिया की हम तो अम्माजी की सेवा में लगे थे ये कोई नहीं समझता बस सबको मौका मिल गया ताने मारने का।  

उसके बाद कुछ दिनों तक उनकी तबियत ठीक रही लेकिन हार्ट ने काम करना कम कर दिया था सुगर बढ़ गयी थी ब्लड प्रेशर भी ज्यादा था करीब छ महीने बाद एक बार फिर उनकी तबियत ख़राब होना शुरू हुई तब से तो उनकी हालत दिनों दिन कमजोर ही होती गयी। अब पिछले एक महीने से तो उनका उठना बैठना भी मुश्किल हो गया है। बिस्तर पर ही सब होता है। अम्माजी की बहू ही उन्हें संभालती है। उनकी छोटी बहू बाहर रहती है साल में एक चक्कर भी लगा ले तो बहुत है। वैसे कोई मनमुटाव नहीं है लेकिन बस वही टाइम किसके पास है। फिर जब सब ठीक चल रहा है तो क्यों बेकार आने जाने में समय ख़राब करना। बेटियां भी अब तो अपनी सुविधा अनुसार आती हैं। त्यौहार के समय उनके बच्चों के स्कूल रहते हैं तो गर्मियों की छुट्टियों में होबी क्लासेज। फिर कभी छुट्टियों में उनका ही घूमने फिरने का प्रोग्राम बन जाता है तो यहाँ आना नहीं होता। बुआजी भी अब पहले जैसे हर साल नहीं आतीं।

अम्माजी की तबियत ठीक होने का इंतजार करते करते पंद्रह दिन और बीत गए लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं आया। बेटियों को फ़ोन पर खबर की गयी। लेकिन उस समय उनके बच्चों की परीक्षाएं चल रही थीं। उन्होंने कहा भैया हमें खबर देते रहना मम्मी का ध्यान रखना। अपनी भाभी से भी उन्होंने फ़ोन पर ही रो रो कर अपनी न आने की मजबूरी बताई और उन्हें ही सब देखना है सब संभालना है अम्माजी अब उन्हीं के हवाले हैं जैसे भावुक वार्तालाप के द्वारा उनमे उनकी जिम्मेदारी का भरपूर अहसास जगाया। बाद में उनकी बहू अपने पति के सामने भुनभुनाएँ भी की क्या में नहीं कर रही हूँ सब ?फिर क्यों दीदी लोग बेकार की बातें करती हैं। अब भैया बेचारे भी क्या कहते? देख तो वो भी रहे हैं लेकिन अब कहें तो क्या? उन्हें तसल्ली ही दे सके की तुम किसी की बातों पर ध्यान न दो मैं और बाबूजी जानते हैं न की तुम सब कर रही हो। हमने तो कुछ नहीं कहा बाकियों को छोडो। ऐसे ही समय में उनके मन में एक कसक उठी की एक और बहू भी तो है उसे भी तो अपनी सास की सेवा करना चाहिए। दबे स्वर में उन्होंने भैया जी से ये कहा भी लेकिन भैया जी जानते थे की अभी कोई नहीं आएगा। तुम क्यों बेकार की बातें सोचती हो। अम्माजी शुरू से हमारे साथ रहीं हैं तुम से ज्यादा बेहतर उन्हें कौन जानता है फिर इस बेबसी की हालत में उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के भरोसे छोड़ना जिसे उनकी जरूरतों की जानकारी ही नहीं है क्या ठीक होगा?

दिन निकलते गए और ठीक होने के इंतज़ार में अम्माजी की हालत बद से बदतर होती गयी। डॉक्टर का कहना था की अब सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है जितनी सेवा कर सकते हो कर लो। एक पल तो आने वाले अनिष्ट की आशंका से सबके मन हिल गए। अम्माजी अब तो बिलकुल हिल दुल भी नहीं पा रहीं थीं उनका शरीर सुन्न पड़ता जा रहा था। ऐसे में घर की एकमात्र महिला सदस्य होने के नाते उनकी बहू को ही उनकी सेवा करनी थी। वह तो वैसे भी महीनों से लगी ही थी। उस दिन जब डॉक्टर गए सब जैसे चुप से हो गए। 

दूसरे दिन सुबह की चाय के समय बाबूजी ने अपने बेटे से कहा "बेटा तुम्हारी माँ की हालत ठीक नहीं है क्यों न सबको खबर कर दी जाये कहीं ऐसा न हो ये चली जाएँ और कोई इनसे मिल ही न पाए। पिछली बार जब तबियत ख़राब थी किसी को नहीं बताया था तब सभी को बुरा लगा था।"
रसोई में काम करती उनकी बहू के कान खड़े हो गए। दोनों दीदियाँ, बुआजी, काकाजी, मामाजी मतलब कम से कम 12-15 लोगों का जमावड़ा ऐसे समय में छोटी बहू तो पहले ही कन्नी काट लेगी वो अकेली और इतने लोगो की मेहमान नवाजी और फिर अम्माजी की सेवा टहल। वे दम साधे अपने पति की प्रतिक्रिया सुनने की कोशिश करने लगीं। 

भैया जी समझते थे कि अम्माजी की हालत नाज़ुक है। वे ये भी जानते थे की अब ज्यादा समय नहीं है और अगर अभी सबको खबर न की गयी तो रिश्तों में कड़वाहट आएगी ही सबके ताने भी सुनने पड़ेंगे। साथ ही वे ये भी समझते थे की इस समय अम्माजी की सेवा सबसे बड़ा धर्म है और उनकी धर्मपत्नी अकेले अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं।अब उन पर मेहमानों की जिम्मेदारी भी डालना ठीक न होगा। लेकिन रिश्तों की अहमियत समझा कर उन्हें ध्हीरे से तैयार करना होगा।अब रिश्ते तो निभाने ही हैं न?वैसे इतने रिश्तेदारों में किसी से मदद की कोई उम्मीद उन्हें नहीं थी। उन्हें पता था बुआजी और बहने सभी मायके में आराम करने ही आएँगी और उनकी उम्मीद होगी की उनकी बढ़िया खातिरदारी की जाये। उस समय तो उन्होंने बात को किसी तरह टाल दिया यह कह कर की बाबूजी अभी देखते हैं। सभी को एक साथ खबर करके घबराहट फ़ैलाने से कोई फायदा नहीं है। अन्दर रसोई में उनकी पत्नी ने राहत की सांस ली। लेकिन आने वाली मेहमानों की फौज से कभी न कभी तो सामना होना ही था। उन्हें बहुत दिनों तक तो टाला नहीं जा सकता था। उनके लिए तो दोनों तरफ मुसीबत ही थी।उन्होंने अखबार मुंह के सामने फैला लिया और वे गहरे सोच में डूब गए किस तरह इस समय को संभाला जाये की रिश्तेदारी में खटास भी न पड़े और पत्नी पर अनावश्यक बोझ भी न पड़े। 

वे वहां से उठ गए और छोटे भाई को फ़ोन लगाया। अम्माजी की हालत के बारे में और डॉक्टर की रिपोर्ट के बारे में जानकारी दी। सुन कर  वह भी चिंतित हो गया।भैया में अभी चलता हूँ आपने पहले क्यों नहीं बताया? 
पहले क्या बताता डॉक्टर ने कल ही ये बताया है। बस अब अम्माजी का आखरी समय है। ऐसा कर तू बच्चों को लेकर आ जा। आखरी समय में सब उनकी सेवा कर लें नहीं ऐसा न हो की कसक ही रह जाये। 

भैया जी ने जानबूझ कर सभी को खबर करने वाली बात टाल दी। पहले घर के लोग तो आ जाएँ। वैसे उन्हें पूरी उम्मीद थी की छोटा भाई सबको ले कर आ जायेगा तो बहूजी को भी काम में मदद मिल जाएगी। वो तो शुक्र था की देवरानी जिठानी में कोई टसल नहीं थी। लेकिन फिर भी इंसान को जब पता चलता है की उससे कोई मतलब साधा जा रहा है तो वह बिदकता है इसलिए वे काम और जिम्मेदारी की बात टाल  गए। 

छोटे भाई ने भी उनकी बात रखी और दूसरे दिन सुबह जब बड़ी बहू पानी ही भर रही थी दरवाजे पर ऑटो आ कर रुका अम्माजी का छोटा बेटा बीवी बच्चों के साथ आ गया था। घर के बुझे बुझे माहौल में रौनक आ गयी। अम्माजी की हालत देख कर बेटे बहू की आँखों में आँसू आ गए। एक छोटा सा उलाहना तो उन्होंने भी दिया लेकिन फिर खुद के मन ने उन्हें धिक्कारा की उन्होंने खुद ही कहाँ इतनी खैर खबर ली। जबकि अम्माजी की तबियत साल भर से ख़राब चल रही है। वे तो कोई खबर न आने का मतलब सब ठीक समझ कर बैठे थे। 

उस दिन घर के कामों के बीच अम्माजी की सेवा टहल करते दोनों बहुओं में एक अलग ही सामंजस्य देखने को मिला। दोनों ने एक दूसरे को अपना सहारा समझा तो अपनापन और गहरा गया। बड़ी बहू के अकेले परेशान होने को छोटी बहू ने अपनी जिम्मेदारियों से खुद को दूर रखने के अपराधबोध में लिया तो बड़ी बहू ने इसे ताने उलाहने का रूप देने से बचाने में पूरी कामयाबी हासिल की। दोनों ने ही इस बात को बखूबी समझा की ये दोनों की संयुक्त जिम्मेदारी है जिसे दोनों को मिल कर ही निभाना है। उनके इस आपसी समझ और सामंजस्य को देखते हुए दोनों भाइयों और बाबूजी ने राहत की सांस ली। 

उस दिन खाना पीना निबटने के बाद दोपहर में सभी आगे की रूपरेखा बनाने बैठे। सबसे बड़ा प्रश्न था रिश्तेदारों को खबर की जाये।लेकिन उससे भी बड़ा प्रश्न था की खबर कब की जाये ताकि किसी को कोई शिकायत भी न रहे और मेहमानों को अनावश्यक रूप से घर में बहुत दिन भी न रुकना पड़े। अब मौत का समय तो कोई निश्चित होता नहीं कि कल आएगी या परसों। 
अब ऐसे कैसे कोई समय मुकम्मल कर के खबर की जाये? कसाब को तो कब से फांसी हो गयी थी लेकिन उसकी किस्मत में चिकन बिरयानी थी तो वो मेहमान नवाजी करता रहा न और जब दाना पानी ख़त्म हो गया तो अचानक हिसाब चुकता हो गया। छोटे बेटे ने ठिठोली करके माहौल को हल्का करने की कोशिश की। लेकिन यक्ष प्रश्न तो अब भी वैसे ही मुँह बाये खड़ा था। खबर की जाये या नहीं, की जाये तो कब? 
अम्माजी ने पहचानना बंद कर दिया था। हाथ पैरों की शक्ति चुक गयी थी। लेकिन बात करने पर उनकी आँखों में भाव आते थे,कभी खुद की अवस्था पर तो कभी बेटियों या भाइयों की बात करने पर आंसू आ जाते। 
क्रमश 



बुधवार, 2 जनवरी 2013

फैसला


सुरती मान जा न,देख हमारे दिन फिर जायेंगे .रोज़ रोज़ खेत में धूप आंधी पानी में चाकरी ,ढोर जानवर के पीछे घूमना ,गोबर सानी करना देख कैसी सूरत हो गयी है तेरी.  सब काम से पीछा छूटेगा. 
काम से पीछा छूटेगा तो करेंगे क्या? और खेत ढोर जानवर सब बेच दोगे क्या?
अरी पगली बेचेंगे क्यों और खरीद लेंगे और काम के लिए नौकर रख लेंगे .
पैसे कहाँ से लाओगे और खरीदने के लिए ?
अरी तू हाँ तो कर ,तेरी हाँ से पैसों का पेड़ लग जायेगा .
मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है .मुझे सोने दो सुबह जल्दी उठना है आँगन लीपना है मुझे ,फिर धूप चढ़ जाएगी ,कह कर सुरती ने करवट बदल ली.
सुन न सुरती देख तुझे सोने का मंगलसूत्र लेना है ना भूरी काकी जैसा?
तुम दिलवाओगे मुझे सुरती ने फिर करवट ली उनका तो दो तोले का है मुझे और थोडा भारी चाहिए दो लड़ी वाला.
अरे दो क्या तीन लड़ी वाला ले लेना .तेरी सोने जैसी गर्दन पर सोने की लड़ियाँ जब दप दप करेंगी तो सबकी आँखें चौधिया जाएँगी .काम छूटेगा तो तेरे ये फूल से हाथ फिर नरम मुलायम हो जायेंगे .इनमे चार चार सोने की चूड़ियाँ पहनना और सेठानी की तरह राज़ करना देख बर्तन घिस घिस कर कैसे हाथ कर लिए है तूने.और तेरी ये कांच की चूड़ियों पर से तो गोबर गारा छूटता ही नहीं .
पर तुम कहो कोई खतरे वाली बात तो नहीं है ?चोरल वाली मामी कह रही थी "सब धरम नास करने वाले काम है "लोगो से दुश्मनी,जान को खतरा है सो अलग.
अरे पगली है तू तो अब चोरल वाली मामी सब मन से गडी बात सुनाती है और तू भोली मान भी लेती है खतरा होता तो में तुझे कहता भरोसा नहीं है ना तुझे मुझ पर .चोरल वाली मामी सच्ची तेरी सगी और में तेरा दुश्मन ,कहते हुए कैलाश ने मुह फेर लिया .
ऐसा क्यों कहते हो जी ? वो तो जो मामी ने कहा सो तुम्हे बता दिया .तुमसे ज्यादा किसी और पर भरोसा करूंगी क्या? सुरती उठ कर बैठ गयी उसकी आँखों में आंसू झिलमिलाने लगे .
तभी तो इतनी जिरह कर रही है बात नहीं मानी मेरी,जो भरोसा होता तो बिना कुछ पूछे चल ना देती मेरे साथ ?
इत्ती सी बात पर कित्ती बड़ी बात कह दी तुमने .जो तुम कहो सब मंजूर कब कहाँ क्या करना है बताओ. सुरती ने कैलाश के चेहरे को अपनी और घुमाते हुए कहा.
तू बहुत अच्छी है रानी है मेरी ,तभी तो तुझे इतना प्यार करता हूँ ,कैलाश ने सुरती को बाहों में भर लिया .कल सुबह दस बजे चलना है अच्छे से तैयार हो जाना देर ना हो .में सुबह जल्दी निकल कर सब इंतजाम कर लूँगा. अब सो जा सुबह जल्दी उठना है.

कैलाश सुबह सात बजे ही चाय पी कर घर से निकल गया.लौटा तो साथ में ढोल नगाड़े और लोगो का हुजूम था .
तैयार हो गयी तू?देख कितनी सुंदर लग रही है. चल बाहर चल सब तेरा इंतजार कर रहे है.
जैसे ही सुरती बाहर आयी उसे फूल मालाओं से लाद दिया गया ढोल बजने लगा .आज सरपंच पद के नामांकन का आखिरी दिन था .गाँव को महिला सीट घोषित किया ,तभी से कैलाश का दिल उछलने लगा था. गाँव के नौजवानों की टोली का लीडर था वो. उन्नीस बीस करने, उठापटक करने में बहुत रूचि थी उसकी. फिर पैसा कौन नहीं कमाना चाहता ?
सुरती के तो दिन ही फिर गए. कहाँ तो घर से निकल कर पड़ोस में नहीं जा पाती थी अब सुबह से शाम तक गाँव के एक -एक घर जाना सबके पैर छू कर आशीर्वाद लेना .

कैलाश ने सबके सामने जब उसके मुंह में मिठाई का टुकड़ा डाला लजा कर घूंघट और थोडा सा खींच लिया उसने.
पंचायत कार्यालय में सरपंच की कुरसी पर उसे बैठाते हुए कैलाश उसके बाजू में बैठ गया तो उसे बड़ी तसल्ली मिली. वो साथ है तो सब संभल ही जायेगा वैसे तो मन घबरा रहा था.
महीने भर से घर देखने का समय ही नहीं मिला. घर आँगन लीपना, ढोर जानवर, गारा गोबर, सुरती फिर अपनी जिंदगी में रम गयी. हाँ अब काम के बीच में कभी कभी कैलाश आ जाता ,उसके हाथ का काम छुड़ा कर कागजों पर उसके दस्तखत लेता और चला जाता. कभी पूछती भी क्या है ये ,तो हंस देता भरोसा नहीं है ना मुझ पर ?और सुरती झेंप कर दस्तखत कर देती. फिर धीरे धीरे उसने पूछना ही छोड़ दिया.
साल भर में सुरती के गले में दो लड़ियों का मंगलसूत्र हाथों में सोने की चूड़ियाँ ,पैरों में पायजेब सब आ गयीं.

गरीबों के हक का अनाज ,केरोसिन बेच कर तुम्हारे ये जेवर बने है भाभी. सब गरीबों की हाय लगी है इन चमचमाते जेवरों पर. कैलाश ने तो सारी मान मर्यादा छोड़ दी है ,बस पैसों के पीछे भागे है .रज्जो जीजी के शब्द लावे की तरह कानों में पड़े . उसी दिन उसने सारे जेवर उतार कर अलमारी में रख दिए.
दो कमरे पक्के बन गए .डबल बेड़ पर डनलप के गद्दों पर करवट बदलती सुरती के कानों में दीनू काका का रोना गूंजता रहता .धोखे से हमारी जमीन हड़प ली तुम कहीं सुख ना पा सकोगी लाड़ी. पड़ोस की निम्मो ही कभी कभी उसके पास आ बैठती. भाभी स्कूल में साईकिल आयीं पर हम से उसके पैसे लिए. खाद, बीज, सड़क, नाली, राशन सब में कैलाश भाईजी खूब पैसा बना रहे है.
दो घडी घर से निकलना दूभर हो गया. कभी पड़ोस के आँगन में सबको बैठा देख कर चली जाती ,तो उसे देख कर सब ओरतें चुप हो जाती और थोड़ी ही देर में इधर उधर हो जातीं. कैलाश सुबह जल्दी निकलता तो आधी रात गए लौटता .खेत खलिहान सब नौकरों के हवाले. 
कैलाश से बात करने की कोशिश की पर एक तो वह रात में देर से आता नशे में धुत्त होता और कभी बात करने की सी हालत में हो तो भी  न सुरती की सुनता न समझता .उसे तो बस पैसा कमाने की धुन सवार थी पांच सालों में वह अगले ५० साल की शानदार जिंदगी के लिए धन कमाना चाहता था .उसके अन्दर का किसान पैसों की चकाचौंध में अपनी संवेदनाएं खो चुका था .गरीबों के दुःख ,परेशानी ,सही गलत ,मान मर्यादा सब पैसों के आगे तुच्छ थे .सुरती जितना दूसरों के हक मारे जाने से ,उनकी बद दुआओं से दुखी थी उससे ज्यादा दुःख इस बात से था कि कैलाश पथ भ्रष्ट हो रहा है  .उसकी मेहनत करने की इच्छा शक्ति ख़त्म होती जा  रही है .लोगों की घृणा और उपेक्षा से वह यह तो समझ गयी थी की ५ साल के इस कुशासन के बाद उसकी और कैलाश की बहुत दुर्गति होने वाली है .एक बार उसने दबी जुबान से पंचायत कार्यालय जाने की बात कही तो कैलाश ने बड़ी कड़वाहट से उससे कहा "तुझे भरोसा नहीं है न मुझ पर ".
सुरती रात दिन आने वाले भयावह दिनों की कल्पनाओं से जूझती रहती .कैसे लोगों को राहत दिलाऊ ?कैसे कैलाश को इस दलदल से बाहर निकालूँ.? 
अकेली घर में बैठी सुरती क्या करती धीरे धीरे घर के काम के सारे नौकर हटा दिए उसने.और खुद को काम में डुबो दिया. कांच की चूड़ियों से सूखा गारा छुड़ाती सुरती की आँखे भर आतीं. 
आखिर पड़ोस की रमा चची को विश्वास में लेकर उसने उनके साथ शहर जाने की योजना बनाई.

बहु तुने  सब सोच लिया ना.कैलाश  को पता चला तो बहुत गुस्सा होगा  तेरे  साथ मेरी भी शामत आ जाएगी.
तुम चिंता ना करो काकी ,बस किसी तरह मुझे वहां ले चलो. मैंने सब सोच लिया है. 


आपने सब सोच लिया है? एक बार आप साइन कर देंगी तो फैसला पलट ना सकेगा .
जी साब मैंने सब सोच लिया है में इतना भार नहीं उठा पा रही हूँ इससे मुक्ति चाहती हूँ.
ठीक है क्या लिखना चाहती है बता दें बाबूजी लिख कर आपको पढ़ कर सुना देंगे फिर आप साइन कर दीजियेगा .
दूसरे दिन सुबह कैलाश पंचायत कार्यालय जाने के लिए तैयार हो रहा था तब सुरती ने  कागज़ उसे थमा दिया .
ये क्या किया तूने ?पगली सरपंची से इस्तीफा दे दिया .क्यों किया तूने ऐसा ? अरे पांच साल में सोने का महल बनवा देता में तेरे लिए .
सोने के महल का में क्या करूंगी जी ,देखिये ना मेरी कांच की चूड़ियों से गोबर गारा छूटता ही नहीं है ,कह कर सुरती कैलाश को हक्का बक्का छोड़ कर आँगन लीपने लगी.
कविता वर्मा

समाप्त