बाबूजी ऐसे समय में बिलकुल खामोश थे बेटे उनकी तरफ देख रहे थे लेकिन वे स्थिति को समझ रहे थे और ऐसे समय में चुप रहना ही उन्हें सबसे बेहतर लग रहा था। आखिर ये तय हुआ की एक दो दिन और देख लेते है फिर दोनों बहनों को खबर की जाएगी उन्हें खबर करना सबसे जरूरी भी था। एक दिन आराम से गुजरा लेकिन उस दिन अम्माजी ने कुछ खाया नहीं खाने की स्थिति में तो वे थी ही नहीं लेकिन जो थोडा बहुत तरल ले रही थीं वह भी बहुत कम हो गया था इसलिए उस रात ही दोनों बहनों को फोन कर दिया गया साथ ही ये हिदायत भी दी गयी की अपनी व्यवस्था से आयें एकदम घबरायें नहीं।
दूसरे दिन दोपहर में बड़ी बेटी पहुँच गयी और शाम तक छोटी भी। अम्माजी उन से मिल कर विभोर हो गयीं बेजान पड़ी उँगलियों में थोड़ी हरकत हुई और आँखों से आँसू बह निकले। वे भी उन्हें ढाढ़स बांधती रहीं सब ठीक हो जायेगा। लेकिन जब वहां से उठ कर दूसरे कमरे में आयीं तो भाभी के गले लग कर खूब रोयीं। बड़े भैया ने उन्हें धीरज बंधाया। देखो हिम्मत रखो बस ये शुक्र मंनाओ की उन्हें कोई तकलीफ नहीं है।
उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवा देते तो शायद कुछ होता। बहनों की आवाज़ में उनकी देखभाल के लिए अविश्वास का एक हल्का सा संकेत बड़े भैया जी और बहू जी को विचलित कर गया लेकिन उन्होंने इसे जाहिर नहीं होने दिया। इस समय बहनें भावावेग में हैं, अम्माजी की इस हालत ने उन्हें हिला दिया है। उन्हें समझाया गया की इस अवस्था का अब कोई इलाज़ नहीं है। हॉस्पिटल में आई सी यू ,वेंटिलेटर सलाइन सब में उनके शरीर को ही कष्ट होगा। छोटी बहन तो फिर भी कुछ नहीं बोली लेकिन बाड़ी बहन की आँखों में अविश्वास की परछाई तैरती ही रही। बहूजी का मन रोने को हो आया वे वहां से हट गयीं। भैया जी ने उनका उतरा चेहरा देख लिया लेकिन इस समय वे उन्हें सांत्वना देने नहीं जा सकते थे। छोटी बहू ने समझदारी दिखाई और वो बहूजी के पीछे हो ली। सबको खबर करने का ये एक नया आयाम था जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन इस मोर्चे पर जूझना सबसे ज्यादा कष्टकारी था। किसी बड़ी बीमारी से कोई मर रहा हो कष्ट भोग रहा हो,रोग लाइलाज हो फिर भी हॉस्पिटल में इलाज़ करवाया जा रहा हो तो सबको एक तसल्ली रहती है की इलाज़ हो रहा है लेकिन बुढ़ापे की वजह से धीरे धीरे बिना कष्ट के मृत्यु की और बढ़ना सह्ज़ता से नहीं लिया जा सकता।
बड़ी बहूजी थोड़ी देर रो लीं अपनी सेवा का यूं बेमोल होते देखना सहन नहीं हुआ उन्हें। रोते हुए भी उन्होंने जो जो कुछ किया था कह सुनाया। छोटी बहूजी सुनती रहीं और उनकी सेवा का मोल उन्हें समझाती रहीं। वे जानती थीं की इस समय बड़ी बहूजी की हिम्मत बंधाये रखना बहुत जरूरी है अभी तो ये पहला हमला है आगे न जाने और क्या क्या सुनना बाकी है।
अम्माजी की हालत में कोई सुधार न था .डॉक्टर की बताई मियाद ख़त्म होती जा रही थी। सब उलटी गिनती गिन रहे थे सभी रिश्तेदारों को खबर करने का दबाब भी उन पर था। आखिर दो दिन बाद सभी को फ़ोन किया गया। बुआजी ,मामाजी काकाजी सबके रात तक पहुँचाने की उम्मीद थी। हलकी ठण्ड पड़नी शुरू हो गयी थी। सबके सोने की जगह और बिस्तर का इंतजाम करने में समय निकल गया। इस बीच छोटी बेटी ने अम्माजी की सेवा का भार अपने ऊपर ले लिया। उन्हें स्पंज देना दिन में हर दो घंटे में उन्हें सूप, फलों का रस पिलाना उनसे बतियाना। शाम होते मामाजी और बड़ी बुआजी आ गयीं तो देर रात छोटी बुआजी भी पहुँच गयीं। काकाजी की खबर आ गयी की वे दूसरे दिन सुबह आ जायेंगे।
मामाजी ने अम्माजी से हाल चाल पूछे तब तक बुआजी पहुँच गयीं और अपने ठसके के साथ उन्होंने बातें शुरू कर दी तो मामाजी एक किनारे हो गए। अम्माजी की इच्छा का तो कोई मोल था ही नहीं। जब मामाजी की भावनाओं का कोई मोल न था तो अम्माजी तो लगभग बेजान हो चुकी थीं। हां उनके बेजान शरीर के बहाने अपनी बेजान भावनाओं को सबके सामने प्रदर्शित करने का मौका वो छोड़ना नहीं चाहती थीं। भाभी कैसी हो? क्या हाल बना लिया है? अरे कितने सालों बाद बुलाया हमें तो अब उठो तो हमें बुला कर ऐसे पड़ गयीं की कहीं कोई सेवा न करवा ले ननदें। ये बुआजी का स्टाईल था या मायके आने पर खातिरदारी न होने की आशंका या बहुओं को ये जताने की कोशिश की मौका चाहे जो हो मान दान में कहीं कोई कसर न रह जाये। दोनों बहुओं ने एक दूसरे को देखा और होंठों के किनारे स्वतः ही तिरछे हो गए। लेकिन एक बात जो किसी को दिखाई नहीं दी की वो शायद ये थी की बड़ी बुआजी भी जानती थीं की उन्होंने अपनी भाभी तो ताने उलहाने देने में कभी कोई कोताही नहीं की लेकिन आज उनके आखरी समय में उनका दिल उन्हें कचोट रहा था जिसे छुपाने के लिए वे अपने उसी रूप का सहारा ले रही थीं। अब अपनी गलती खुले और साफ़ शब्दों में स्वीकारना और वो भी अपने बच्चों के सामने इतना आसान तो नहीं था। लेकिन वे अपने ठसक से नीचे भी नहीं उतर सकती थीं।
छोटी बुआजी देर तक अम्माजी के पास बैठी रहीं उनके और अम्माजी के बीच शुरू से एक स्नेह डोर रही वे एक दूसरे के सुख दुःख की हमेशा साझी रहीं लेकिन समय और रिश्ते कब एक से रहते हैं? उनके बीच की डोर भी समय के थपेड़ों से कभी कमजोर भी हुई लेकिन तंतु जुड़े रहे।आज इस समय में वही डोर अपने उधडे टूटे सारे तंतु इकठ्ठे करके अपनी पूरी मजबूती के साथ उन्हें जोड़े हुए थी। सारी औपचारिक बातों में ये शिकायत भी थी की हमें अपना नहीं समझा पहले खबर दे देते तो हम भी कुछ दिन सेवा कर लेते अब आखरी कुछ दिन ही बचे हैं ऐसे तो दूर दराज़ के लोगों को खबर की जाती है। फिर जैसे सबका ध्यान छोटी बहू की ओर गया। तुम कब आयीं? पिछले साल जब तबियत खराब हुई थी तब आयीं थीं? अरे नहीं आयीं? क्यों भाई ऐसी भी क्या दूरी है की सगी सास को देखने ना आ सको? अरे बच्चे तो सब के पढ़ते है लेकिन नाते रिश्तेदारी तो निभाना पड़ती है न? तुम तो वैसे भी कभी किसी रिश्तेदारी में दिखाई नहीं देतीं। अब तो दोनों दीदियों को भी मौका मिल गया। छोटी बहू जानती थी इस समय कुछ कहना मुश्किल है उसके एक शब्द को पकड़ कर उसे पूरी रामायण सुनायी जा सकती है।पति की प्रायवेट नौकरी दूरी बच्चों की पढाई के चलते उसका आना नहीं हो पता ये बात सही है लेकिन उसके घर ही कब कौन पहुँच जाता है? दोनों दीदियाँ तो दूरी के ही बहाने कभी उसके घर नहीं आयीं तो जो दूरी उनके लिए है वही उसके लिए भी है और दूरी पाटने की कोशिश तो दोनों ओर से होना चाहिए न? बड़ी बहू ने उसे आँखों से सांत्वना दी और इस बात को टाल जाने का संकेत भी। लेकिन खान पीना होने के दौरान छोटी बहू का मूड उखड़ा ही रहा।
ठण्ड बढ़ गयी थी खाने के बाद सब अपने बिस्तर में दुबक गए। मामाजी को अब अम्माजी के पास बैठने को मिला। वे बहूत देर तक उनका हाथ थामे बचपन की गलियों में घूमते रहे। कुछ उन्हें सुनाते रहे कुछ खुद ही याद करके अपने आंसू जब्त करते रहे। बाबूजी ने उन्हें भावुक होते देखा तो थोड़ी देर कमरे से बाहर चले गए। बाहर के कमरे में बुआजी और दीदियों के बीच नयी पुरानी यादों का दौर चल निकला था। ठहाकों से अडोस पड़ोस भी गुंजायमान था। छोटी बहू अभी भी बिसुर रही थी लेकिन सबके साथ बैठना मजबूरी थी। बड़ी बहू की पीठ दर्द से दोहरी हुई जा रही थी उन्होंने भैयाजी की ओर देखा वे समझ रहे थे की सारा दिन की भागदौड के बाद अब वे थक गयी हैं लेकिन सब लम्बे सफ़र के रिजर्वेशन के पैसे वसूलते सोते हुए आये थे और अभी जल्दी सोने का किसी का मन नहीं दिख रहा था।
थोड़ी देर बाद उन्होंने दोनों बहुओं इशारा किया जाकर सो जाएँ उन्हें सुबह जल्दी उठना था। वो महफ़िल तो देर रात तक चलती रहेगी।
ठण्ड बढ़ गयी थी सुबह सब देर तक बिस्तर में दुबके पड़े रहे। बहुएँ रसोई में जुट चुकी थीं तभी बड़ी बुआजी की आवाज़ आयी अरे क्या बजा है?गैस पर से सब्जी उतार कर चाय की पतीली चढ़ाती बड़ी बहु ने छोटी से कहा तुम पहले सबकी चाय बना लो देर हो गयी तो फिर सारा दिन किसी न किसी बहाने से बुआजी सुनाती रहेंगी।
भाभी इन्हें बुलाना जरूरी था क्या? लगता तो नहीं है की इन्हें अम्माजी की तबियत की कोई चिंता है। हां छोटी बुआजी फिर भी थोडा मन रखती हैं।
वो तो है लेकिन अब एक को खबर दें और दूसरे को नहीं ये तो नहीं हो सकता न?
अरे लाड़ी अभी तक उठी नहीं हो क्या?? चाय वाय मिलेगी की नहीं? बड़ी बुआजी की आवाज़ ने सबको उठा दिया था।
जी बुआजी हम तो उठ गए आपके ही उठने का इंतज़ार कर रहे थे,चाय तैयार है।छोटी बहू कल के अपने उखड़े मूड को अब तक संभाल चुकी थी। रात में छोटे भैयाजी ने उनकी सभी बातों से सहमत होते हुए उन्हें कुछ दिन इस कान से सुन उस कान से निकालने की सलाह दी थी। ऐसे मौके पर अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करके होना भी क्या था जबकि बड़े बड़े तमाशाई मौजूद थे।
बड़ी दीदी ने चाय का कप हाथ में लेते ही कहा भाभी चाय तो बिलकुल ठंडी हो गयी मैं तो गरम की चाय पीती नहीं हूँ दूसरी बना लाओ ठण्ड में एक कप गरम चाय के बिना तो उठा नहीं जाता।
भैयाजी को सुबह नौ बजे ऑफिस के लिए निकलना होता है वे थोडा कुछ खा कर और टिफिन ले कर जाते हैं बड़ा धर्म संकट था पहले खाना बनाये की बार बार चाय बनायें?
तभी छोटी दीदी की आवाज़ आयी भाभी मोनू उठ गया है उसके लिए दूध गर्म करके दे दो।
ये अच्छा है मायके तो आराम करने के लिए आया जाता है न अब अपने बच्चे का दूध भी खुद गर्म नहीं कर सकतीं। बहूजी की गुनगुनाहट भैयाजी ने सुनी तो धीरे से उनके कंधे को थपक कर शांत होने को कहा। तुम मेरी चिंता छोडो में केन्टीन में कुछ खा लूँगा।
अम्माजी की सुबह की देखभाल करनी थी भैयाजी टिफिन नहीं ले जा पाएंगे ये सोच कर बड़ी बहूजी का मूड खराब था। तभी काम वाली बाई आ गयी। झाड़ू ले कर कमरे में पहुंची तो देखा सब अभी भी पसरे पड़े हैं। बाहर बर्तन का ढेर वो देख ही आयी थी सो उसका दिमाग भन्नाया हुआ था। उसने आते ही एलान कर दिया भाभी ठण्ड बढ़ गयी है उस पर इतने मेहमान इतने बर्तन, गरम पानी करके दो नहीं तो कल से काम पर नहीं आउंगी। बहूजी की तो सांस ही अटक गयी सब काम छोड़ कर वो उसे मनाने लगीं देख शांता तू देख रही है न अम्माजी की हालत अब ऐसे सुख दुःख में तू धोखा दे जाएगी तो मैं किसके सहारे ये समय निकालूंगी? देख कुछ दिनों की बात है इस समय छुट्टी मत करना मैं बाद में तेरा सब हिसाब कर दूँगी।
ठीक है भाभी इतना तो हम गरीब लोग भी समझते हैं लेकिन अब मैं एक घर के काम के लिए इतनी देर रुकूंगी तो दूसरों के यहाँ देर हो जाएगी कल से बिस्तर विस्तर उठवा कर रखना। एक तो काम ज्यादा है टेम ज्यादा लगेगा मैं बर्तन करती तब तक तुम अन्दर का काम समेट लो।
बाबूजी सब सुन रहे थे। बहूजी और उनकी निगाह टकरायी तो उन्होंने नज़रें चुरा लीं, लेकिन फिर वे सीधे अन्दर चले गए और छोटी बेटी को इंगित करके कहने लगे सुनयना जरा बिस्तर उठा लो काम वाली बाई आ गयी है। अच्छा तो किसी को नहीं लगा लेकिन फिर भी बिना कुछ कहे सब उठ गए और जैसे तैसे बिस्तर उठा कर सोफे या तखत पर पसर गए।
अम्माजी के बेजान पड़े शरीर को उठा कर उनके बिस्तर की चादर उनके कपडे बदलना उनका स्पंज करना थकाऊ काम था। जब घर में लोग कम थे उनका काम पहले होता था लेकिन अब अम्माजी की चिंता करने आये लोगों की चिंता करने में उनका काम उनकी देखभाल का समय बिगड़ गया लेकिन इसकी शिकायत न अम्माजी कर सकती थीं न उनके असली शुभचिंतक। सारे कामों से निबट कर बहुएँ जब उनके पास पहुंची तो अम्माजी की आँखों में आंसू थे। ये देख कर बड़ी बहूजी भी अपने आंसू नहीं रोक पाई। बड़ी दीदी को तो बस बहाना मिल गया। क्या करें अम्माजी खुद से कुछ कर नहीं सकतीं मोहताज़ हैं अब तो जब सारे काम हो जायेंगे तब उनकी सुध ली जाएगी। इससे तो उन्हें हॉस्पिटल में रखा जाता तो कम से कम वहाँ नर्स तो होती टाइम से उनकी देखभाल करने के लिए। अब बताओ 12 बज रहे हैं अभी तक ना उनके कपडे बदले हैं न उनके कुछ खिलाया पिलाया। सच तो ये था की सब अपनी गपशप में इतने व्यस्त थे की किसी को ध्यान ही नहीं था की अम्माजी की सेवा टहल कर लें अब दोनों बुआजी तो कुछ करने से रहीं लेकिन बेटियां तो सेवा कर सकती थीं लेकिन दो दिन से उनकी देखभाल करने वाली छोटी दीदी भी आज बातों में ऐसी उलझी की बस बैठी ही रह गयी। लेकिन अब उन्हें एहसास हुआ की उन्हें अम्माजी का ध्यान रखना चाहिए था। खाना पीना निबटा ही था की काकाजी भी पहुँच गए बहुएँ फिर रसोई में व्यस्त हो गयीं। तबियत अस्पताल की वही रामायण फिर दोहराई गयी। ताने उलाहने फिर सुनाये गए लेकिन अब उनके लिए सबने अपने कान और दिमाग बंद कर लिए थे।
मामाजी और छोटे भैया बारी बारी से अम्माजी के पास बैठे उनसे बातें करते रहते कई बार सबसे छुपा कर गीली हो आयी आँखें पोंछते। अम्माजी की सांस उखड़ने लगी थी बस लगता था की अब गयीं और तब गयीं। सब सांस रोके जैसे उनकी सांस रुकने का ही इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन छोटी दीदी ने उनके लिए सूप जूस पिलाना जारी रखा इससे मिली ताकत थी या सबको अपने आस पास देख कर अम्माजी का उनसे लगाव की वे यमदूत को दरवाजे पर ही रोके हुए थीं। दूसरा दिन बीतते न बीतते छोटी बुआजी बैचेन होने लगीं। दोनों बुआजी में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी। ऐसे कब तक यहाँ रुके रहेंगे?वहां घर पर खाने पीने की परेशानी हो रही होगी। अच्छे भले में आये होते तो रुकना ठीक भी लगता। बड़ी दीदी भी उकताई हुई सी थीं। एक तकलीफ तो ये भी थी की दोनों बहुएँ बिना किसी से किसी काम की आस रखे आपसी सामंजस्य से सारा काम निबटा रही थीं उस पर उनके कहे सुने को भी अनसुना करके चुप थीं अम्माजी की सेवा के लिए भी दोनों तत्पर थीं ऐसे में किसी भी उद्देश्य के लिए उनका वहाँ रहना निरर्थक था। अपनी ये निरर्थकता उन्हें कचोट रही थी।
अगले दिन सुबह से ही दोनों बुआजी और बड़ी दीदी ने मंदिर दर्शन फिर वहां से किसी रिश्तेदार के यहाँ जाने का कार्यक्रम बना लिया। छोटी दीदी ने जाने से मना कर दिया। सुबह जल्दी खाना खा कर सब निकल गए। काकाजी भी साथ हो लिए। घर में थोड़ी शांति हो गयी। आज कई दिनों बाद बहुओं को अम्माजी के पास बैठने का समय मिला था। लेकिन वो समय भी ज्यादा देर नहीं रहा। अभी तो गेहू साफ करने है आटा ख़त्म होने को है मेहमानों के सामने करना ठीक भी नहीं लगता। आज मशीन लगा कर कपडे भी धो लिए जाएँ। आज बहुत दिनों बाद बेटे के स्कूल से घर आने के समय बड़ी बहू थोड़ी फ्री थीं उसके पास बैठते उससे बातें करते उन्हें लगा जैसे कई दिनों बाद वे अपने बेटे से मिल रही हैं। बेटे ने बड़ी मासूमियत से पूछा था मम्मी ये सब लोग यहाँ कब तक रहेंगे? अब इस बात का या तो कोई जवाब नहीं था या जो जवाब था वो इतना वीभत्स था की वे चुप लगा गयीं।
क्रमश