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गुरुवार, 14 मई 2015

मंजिल



निर्णय तो कर लिया उसने और अपने निर्णय से बहुत उत्साहित भी थी वो।  ऐसे ही कुछ सपने तो थे उसके, जिन्हे पूरे करने का उत्साह जुटाती तो कभी उन्हें फ़िज़ूल कह कर खुद ही स्थगित कर देती। कभी खुद ही पछताती मौका पा कर भी चूक गई तो कभी सब पर झुंझलाती कि उनके कारण ही वह अपनी छोटी  ख्वाहिशें स्थगित करती रहती है या ऐसी उलझी रहती है कि अपने मन का कर ही नहीं पाती। कभी सोचती  घर में सब तो अपने मन की कर लेते हैं मैं ही क्यों इतना सोचती हूँ। आत्म मंथन की किसी घड़ी में वह पाती कि सपने देखना और बात है उन्हें पूरा करने के साधन जुटाना भी आसान है लेकिन उन्हें पूरा करने का हौसला जुटाना आसान नहीं है। इसलिए तो साधन सुविधा होते हुए भी बरसों से सपने स्थगित होते रहे हैं। 
आज उसने  निश्चय कर ही लिया अब ये करते और करने के बाद उसका दिल कितने ज़ोर से धड़क रहा है ये तो सिर्फ वही जानती है। वैसे वह चाहती भी नहीं है कि कोई और इस बात को जाने। ये तो सपनों की श्रृंखला की पहली कड़ी है और ऐसा भी नहीं है जाने कितनी छोटी मोटी ख्वाहिशें तो आये दिन पूरी होती रहती थी लेकिन उनके पूरे होने में कोई अड़चन नहीं थी किसी के न मानने  का डर नहीं था और खुद का हौसला जुटाने की मशक्कत नहीं थी। 
खैर नियत दिन , नियत समय जरूरी हिदायतों और तैयारियों के साथ वह निकल पड़ी अपना सपना पूरा करने। 
हवा पानी पेट्रोल सब चेक कर लिया एक छोटा बेग , जरूरी कपडे, पानी की बॉटल भी रख ली। निकलने के पहले भगवान से कृपा बनाये रखने का आशीर्वाद भी मांग लिया। शहर से बाहर निकल कर बायपास पर आते ही वह रोमांचित हो गई विश्वास हो गया कि उसका सपना पूरा होगा वह सपना पूरा करने की डगर पर नहीं नहीं हाइवे पर चल पड़ी है। यही तो सपना था उसका अकेले खुद ड्राइव करके लम्बा सफर तय करना। यूं तो कई बार इस रास्ते पर कार से सफर किया है अक्सर निखिल के साथ या फिर ड्राइवर गाड़ी लेकर आता और वह पिछली सीट पर बैठी गुजरते पहाड़ , पेड़, ट्रक, मोटर साइकिल देखते समय बिताती या ड्राइवर के पसंद के अस्सी के   दशक के ढिंगचक गाने सुन मन ही मन झुंझलाती। आज उसने चलने के पहले रेडियो चेक कर लिया था मोबाइल पर भी अपनी पसंद के पुराने गाने डाउन लोड कर लिए थे। 
कार के बंद शीशों के उस छोटे से संसार में वह ये मौसम रंगीन समां की स्वर लहरियों के संग बढ़ती चली जा रही थी। शहरी बायपास की चहल पहल अब पीछे छूट गई थी। सड़क के दोनों तरफ सागवान के पेड़ थे।   बसंत की दस्तक होने को ही थी। सागवान के पत्ते अपनी जिंदगी के थपेड़ों को झेलते हुए छलनी हो चले थे। किसी समय जब वह और निखिल मोटर साइकिल पर इस रास्ते से जाते थे वह जिद करके गाड़ी रुकवाती और सागवान के इन छलनी हुए पत्तों को इकठ्ठा कर संभाल कर घर तक ले जाती थी। उन पत्तों पर खूबसूरत पेंटिंग बनाती। कभी कभी सोचती इंसान भी तो इन पत्तों की तरह है जिंदगी के अनुभव हासिल करते करते छलनी हो जाता है लेकिन फिर उसकी उपयोगिता क्या रह जाती है सिर्फ एक सजावटी वस्तु या अनुपयोगी कबाड़ जो पड़े पड़े खुद के मिटटी हो जाने का इंतज़ार करता रहता है। 
उसका मन हुआ गाड़ी रोक कर कुछ पत्ते चुन ले। अभी वह गाड़ी रोकने लिए सही जगह तलाश कर ही रही थी कि अचानक एक बोलेरो उसके बगल से तेज़ गति से निकली। वह अकबका गई ये अचानक कहाँ से आई वह तो रेयर व्यू पर लगातार नज़र रखे थी फिर उसे गाड़ी क्यों नहीं दिखी। उसने रुकने का विचार स्थगित कर दिया।  मुझे और ध्यान से गाड़ी चलाना चाहिए खुद से कहते साइड मिरर ठीक किया। 
एक छोटा गाँव आने वाला था। गाँव के बाहर नदी की पुलिया से गुजरते उसने दायीं ओर नज़र घुमाई नदी का किनारा सुनसान पड़ा था। नदी सूख गई थी वैसे भी बरसाती नदी की उम्र चौमासे भर होती है। कभी इस नदी के किनारे कतार से खूबसूरत टेसू के वृक्ष थे। गर्मियों में तपते पत्थरों के दोनों तरफ दहकते फूल लहकते थे। अब वहाँ झाड़ झंखाड़ और गाँव का कचरा पड़ा था। उसका मन खिन्न हो गया क्यों हम अपनी प्राकृतिक संपदा से खिलवाड़ कर रहे हैं शहरों के साथ अब गाँवों में भी। 
गाँव से निकलते गाड़ी की गति धीमी हो गई उसे प्यास सी महसूस हुई। गाँव  के बाहर साइड में गाड़ी रोकी पानी पिया। रेडियो पर  नये गाने आने लगे थे उसने रेडियो बंद करके मोबाइल पर गाने लगा दिए। तब तक एक बैलगाड़ी उसकी गाड़ी से आगे आ गई। बैलगाड़ी में अनाज की बोरियों के ऊपर तीन औरतें और एक लड़की बैठी थी। जैसे ही उसने  गाड़ी स्टार्ट की वे एक दूसरे का ध्यान उसकी ओर खींचने लगीं। उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि अकेली औरत  कार से गाँव के बाहर जा रही है। तब तक गाड़ीवान ने भी मुड़कर उसकी तरफ देखा। उनके अचरज पर वह धीमे से मुस्कुरा दी उसका मन गर्व भर गया अपना सपना और उसे पूरा करने का हौसला जुटाने का गर्व। 
आगे घाट था एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ गहरी खाई। निखिल के साथ आते वह कई बार जिद करती थी यहाँ रुकने की। पहाड़ी के किनारे खड़े हो कर दूर तक फैली हरी भरी वादियों को निहारते कॉफी पीने की लेकिन निखिल हमेशा टाल जाते यहाँ रुकना खतरनाक है कहते हुए। आज भी चलते समय उसे ये वादियाँ याद आयीं थीं लेकिन पुरानी बातों को याद करते अकेले रुकने की हिम्मत नहीं हुई उसकी। अब घाट के तीखे मोड़ और उतार पर गाड़ी की गति साधने में उसने पूरा ध्यान लगा दिया। मोबाइल पर चल रहे गाने अब उसकी एकाग्रता में खलल डालने लगे लेकिन इस समय वह सड़क से ध्यान हटा कर मोबाइल बंद करने की स्थिति में भी नहीं थी। हाँ मौका पाकर उसने मोबाइल पर अपना पर्स रख दिया जिससे आवाज़ दब गई। 
बारह किलोमीटर का सफर करने में लगभग आधा घंटा लग गया। उसे थकान सी महसूस होने लगी या शायद ये तनाव था जो अब उसकी नसों से पिघलने लगा था। उसने एक ढाबे के पास गाड़ी रोकी चाय पीने का मन कर रहा था। आर्डर दे कर वह बैठ गई और अपने चारों तरफ नज़रें घुमाई। एक टेबल के इर्दगिर्द तीन आदमी बैठे थे। दो तीन परिवार भी वहाँ थे एक वही अकेली थी। उसका ध्यान ढाबे के मालिक की ओर गया वह उसे ही देख रहा था शायद कयास लगा रहा था कि वह अकेली है या कोई और भी है उसके साथ। वह थोड़े संकोच से भर गई अकेले सफर पर निकलने के उसके उत्साह पर डर की झीनी चादर फ़ैल गई। उसने फिर इधर उधर देखा तो उन तीनों आदमियों और एक परिवार को खुद को घूरते पाया। उसका मन हुआ जल्दी से जल्दी यहाँ से चल दे तभी लड़का उसकी टेबल पर चाय का गिलास रख गया। चाय की तलब डर पर हावी हो गई जल्दी से चाय ख़त्म की और गाड़ी में बैठ गई। उसने सतर्कता से चारों ओर देखा वे तीनो व्यक्ति बाहर आ रहे थे अचानक जैसे उसकी साँसे अटक गईं ना जाने कितने विचार आये वह सिलसिलेवार कुछ सोचती तब तक वे अपनी कार की तरफ बढ़ गए। उसने गाड़ी स्टार्ट की और रेयर व्यू में देखा उनकी गाड़ी विपरीत दिशा में बढ़ गई उसने राहत की साँस ली। 
आगे का रास्ता घने जंगल से होकर गुजरता है। सड़क के दोनों किनारों से ही ऊँचे ऊँचे पेड़ खड़े थे सूरज की किरणें दायीं ओर से छन छन कर आ रही थीं। अगला गाँव अब काफी दूर था इसलिए अब दोपहिया वाहन इक्का दुक्का ही दिख रहे थे वो भी काफी अंतराल से अधिकतर तो ट्रक कार और जीप ही थे जो तेज़ गति से भागे जा रहे थे। उसने कार के शीशे खोल दिए। तेज़ भागती कार में जंगल की हवा सांय सांय करती भरने लगी। ना जाने क्यों उस पर  अकेलापन हावी होने लगा। उसने शीशे फिर बंद कर दिए और रेडियो पर गाने लगा दिए तेज़ बीट के नए गाने। वह जोर जोर से गाने लगी इससे उसका अकेलेपन का एहसास कुछ कम हुआ। कार तेज़ गति से भागी जा रही थी उसके और मंज़िल के बीच कुछ ही अंतराल बाकी था। 
तभी फोन बज़ उठा उसने गाड़ी धीमी की ,"हाय कहाँ पहुँच गई ?" चहकती आवाज़ ने उसे उत्साह से भर दिया। 
"बस पहुँचने ही वाली हूँ ज्यादा से ज्यादा बीस मिनिट। "
उसका सपना , सपना पूरा करने का हौसला , समीप आती मंज़िल। गाड़ी बाजार की सडकों से निकल कर कॉलोनी की कच्ची सड़क से होते उस घर के सामने रुकी वह बाहर ही खड़ी थी दोनों ने हाथ हिलाया। गाड़ी से उतरते ही वे दोनों गले लग गई। उसके बचपन की सहेली जिसके साथ वह दो दिन की छुट्टियाँ बिताने आई थी। दो दिन सिर्फ वे दोनों और उनका बचपना यही तो थी उसके सपने की मंजिल। 
कविता वर्मा