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बुधवार, 6 जुलाई 2022

धागा प्रेम का

 अच्छा चलता हूं अपना ख्याल रखना ध्यान से रहना और  कोई भी बात हो मुझे तुरंत फोन करना। मयंक ने निशी के माथे पर प्यार से चुंबन अंकित करते हुए कहा। 

आप भी अपना ख्याल रखिएगा और यहां की चिंता मत करिए यहां मैं सब संभाल लूंगी।

मयंक ने तीन साल की बिटिया चीनू को गोद में उठाकर प्यार किया उसे ताकीद दी मम्मी को तंग नहीं करना तभी बाहर खड़ी टैक्सी में हॉर्न दिया और मयंक ने चीनू को निशी की गोद में देकर टैक्सी का रुख किया। मयंक को उसकी कंपनी तीन महीने की विशेष ट्रेनिंग पर जापान भेज रही थी। यह उसके लिए विशेष खुशी और गर्व का विषय था कि कंपनी के पैंतालीस इंजीनियर्स में से उसे चुना गया था। बहुत खुश था वह लेकिन पत्नी और बेटी को अकेला छोड़कर जाने पर खासा चिंतित भी था। निशि टैक्सी के ओझल हो जाने तक गेट पर खड़ी रही फ़िर थके कदमों से चीनू को लेकर अंदर आ गई। अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद किया और सामने की खिड़कियों पर पर्दा खींच दिया। अचानक एक असुरक्षा के एहसास ने उसे घेर लिया। अब वे माँ बेटी इस घर में इस शहर में एकदम अकेले हैं। इस एहसास ने गले में अटकी सिसकी को बाहर धकेल दिया। आवाज सुन चीनू ने अपनी बड़ी बड़ी आंखों से निशि को देखा तो उसने झट मुंह फेर कर आंखें पोंछ लीं और अगली सिसकी को गटक लिया। वह घर जिसमें मयंक कभी दिन में नहीं रहता था आज दिन में सांय सांय कर रहा था। चीनू की दोपहर की नींद का समय था निशि उसे लेकर लेट गई। उसकी आंखें भर आई अकेलेपन का अहसास उसे तोड़ रहा था। अभी तो मयंक की फ्लाइट ने टेक आॅफ भी नहीं किया कैसे गुजरेंगे यह तीन महीने अकेले ? माता-पिता भी अब नहीं रहे। भाई भाभी की गृहस्थी में इतने लंबे समय के लिए मेहमान बनकर रहना ठीक नहीं लगता। वह भी कहां पास में हैं दो हजार किलोमीटर दूर कोलकाता के पास एक छोटे से कस्बे में हैं। उसका बचपन भले वहाँ बीता लेकिन अब इतनी छोटी जगह रहने की आदत छूट गई। चीनू का स्कूल भी इसी साल शुरू हुआ उसे भी तो नहीं छोड़ा जा सकता।

शहर में कुछ पुराने परिचित हैं लेकिन वे सभी शहर के पुराने हिस्से में हैं जहाँ मयंक के पिता का पुश्तैनी घर है। वहाँ मयंक के बड़े भाई मुकेश भाई साहब अपने परिवार के साथ रहते हैं। मयंक और निशि ने छह माह पहले ही इस सुदूर कॉलोनी में मकान बनवाया है। शादी के बाद तीन साल तक सब साथ रहे फिर मयंक ने उसे तोड़कर नए सिरे से आधुनिक तरीके से बनाने को कहा जो भाई साहब को मंजूर नहीं था। उनका कहना था कि अभी मकान मजबूत है इसे गिरा कर अनावश्यक पैसा लगाने का क्या औचित्य ? मयंक चाहता था कि अभी कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं है इसलिए अभी दोनों भाई लोन लेकर बढ़िया मकान बनवा लें जब तक बड़ी जिम्मेदारियां आएंगी लोन चुक जाएगा। भाई साहब का अपना बिजनेस था पक्के व्यापारी थे वे उन्होंने इसे पैसे की बर्बादी बताया उनका कहना था कि बेकार का कर्जा करना ठीक नहीं है। करीब दो-तीन महीने चले इस विचार विमर्श का अंत तनातनी में हुआ बातचीत इतनी बढ़ी कि मयंक ने अलग होने का फैसला कर लिया। भाई साहब मकान के हिस्से करने को तैयार न हुए उन्होंने कहा कि मयंक को तो मकान तुड़वाकर नया ही बनवाना है इसलिए सिर्फ जमीन का वैल्यूएशन (जमीन की कीमत) करवा लेते हैं और जो भी कीमत होगी उसका आधा पैसा मैं मयंक को दे दूंगा। इस तरह भाई साहब ने मयंक को तीस लाख रुपये दिए। इतने में मयंक जमीन खरीद कर मकान नहीं बनवा सकता था इसलिए उसने बैंक से लोन लिया और दो बेडरूम का यह मकान बनवाया। मकान का बंटवारा होने के बाद मयंक बहुत ठगा सा महसूस कर रहा था। कुछ कसर जान पहचान वालों और रिश्तेदारों ने पूरी कर दी उन्होंने मयंक को मुकेश भाई साहब की चालाकी और ठगी का अहसास करवाया। मुकेश भाई साहब जितना समझाते ठगे जाने का एहसास उतना ही गहरा होता जाता। निशि को भी यही लगता था और फिर मुकेश भाई साहब को लेकर कटुता इतनी बढ़ी कि उन दोनों ने उनसे सारे संबंध तोड़ लिए। यहाँ तक कि अपने मकान की वास्तुशांति में भी उन्हें नहीं बुलाया और न ही अपनी कंपनी से जापान भेजे जाने की कोई सूचना उन्हें दी। 

निशी ने सो रही चीनू के सिर पर हाथ फेरा उसे सीधा सुलाया और पीठ सीधी करके आंखें बंद कर लीं। दोनों आंखों में भरे आंसू बाहर निकलकर तकिए में समा गए। मयंक के बिना दिन रात बेहद सूने हो गए थे चीनू भी हरदम उसे याद करती। जितना वह याद करती निशि को अपने दिल पर काबू करना उतना ही मुश्किल लगने लगता। फोन पर रोज बात होती थीं लेकिन ट्रेनिंग के दबाव से थका मयंक बहुत देर बात करने की स्थिति में नहीं होता था। देर रात कभी बात करने का मन होता तो होटल के रूम में एक और साथी की उपस्थिति बाधा बनती। दिन यूँ ही गुजर रहे थे दीपावली आने वाली थी मयंक का आना संभव न था इसलिए निशी में भी त्योहार का कोई उत्साह न था। 

तभी अचानक उस दिन खेलते खेलते चीनू गिर पड़ी उसका मुँह सीढ़ियों से टकराया और उसका सामने का दाँत अंदर मसूड़े में धंस गया। कुछ ही सेकंड में उसका चेहरा खून से लथपथ हो गया। निशि यह देखकर एकदम घबरा गयी उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था। आसपास ज्यादा मकान भी नहीं थे न कोई दिख रहा था जिन से मदद मांग सके। बदहवास सी चप्पल पैरों में डाले पर्स लेकर ताला लगा चीनू को गोद में उठाकर वह कॉलोनी के बाहर तरफ भागी। शुक्र है एक खाली ऑटो मिल गया। हॉस्पिटल जाने का कहकर उसने चीनू को गोद में लिटाया उसका मुँह खून से भरा था जो उसने निशि के ऊपर उलट दिया। निशि भैया जल्दी करो प्लीज जल्दी चलाओ कहती खून और आंसुओं में लथपथ कभी चीनू को कभी रास्ते को देखती। चीनू की आंखें मुंदी जा रही थीं। 

अस्पताल पहुँचते ही चीनू को ओटी में ले लिया गया। निशि लोगों से भरे अस्पताल के गलियारे में अकेली असहाय खड़ी थी। न वह रो रही थी न कुछ समझ पा रही थी। नर्स ने उसे काउंटर पर पैसे जमा करने को कहे उसने कार्ड से पेमेंट किया और वापस मुड़ी। तभी डॉक्टर ने कहा बच्ची का दाँत मसूड़े में धंस गया है ऑपरेशन करके चीरा लगाकर निकालना होगा। वह पथराई सी डॉ को देख रही थी तभी एक आवाज आई इसमें कोई रिस्क तो नहीं है डॉक्टर ? क्या हम एक बार चीनू को देख सकते हैं ? वह होश में तो है ? 

जी हाँ वह होश में हैं ब्लीडिंग कम हो गई है। आप कौन ? 

मैं बच्ची का ताऊ उसका बड़ा पापा। 

निशि ने चौंककर सामने देखा। तभी दो हाथों ने उसे कंधों से थाम लिया यह भाभी जी थीं। निशि भरभरा कर गिरने को हुई उन्होंने सहारा देकर उसे बेंच पर बैठाया। इसके बाद किस डॉक्टर से क्या बात हुई कब ऑपरेशन हुआ निशि को कुछ नहीं पता। भाई साहब ने ही सब से बात की मयंक को फोन कर सभी स्थिति बताई ऑपरेशन के लिए खून दिया दवाई मंगवाई। 

चार दिन अस्पताल में रहकर चीनू की छुट्टी हो गई। धनतेरस का दिन था ऑटो भाई साहब के घर के सामने रुका। चीनू को गोद में लेकर भाई साहब अंदर चले गए। निशी के कदम थम गए क्या करें ? भाई साहब भाभी जी से कुछ कहने की स्थिति में वह नहीं थी चुपचाप अंदर चली गई। उसे याद आया जब वे दोनों घर छोड़कर जा रहे थे तब भाई साहब ने मयंक से कहा था मयंक घर मकान भले अलग हो जाएं लेकिन मुसीबत के समय एक और एक ग्यारह होते हैं इस प्रेम के धागे को मत तोड़ो लेकिन तब वे इस बात को नहीं समझे। 

जापान से वापस आकर मयंक निशि और चीनू को लेकर भाईसाहब से मिलने गया तब एक ही उत्सुकता थी कि भाईसाहब को कैसे पता चला ? 

भाईसाहब ने बताया कि मयंक के जापान जाने की खबर उन्हें मिल गई थी। उन्होंने दुकान के एक पुराने मुलाजिम को सुबह शाम मयंक के घर के आसपास चक्कर लगाकर सब ठीक है या नहीं देखने की जिम्मेदारी दे दी थी। जब निशी चीनू को लेकर ऑटो में बैठी उसने देख लिया और भाई साहब को खबर दे दी थी।

मयंक बहुत शर्मिंदा था उसने भाईसाहब के पैरों में झुकते हुए माफी मांगी और भाईसाहब ने कहा कि जापान रिटर्न की मिठाई खिलाएगा तो माफी मिलेगी और सबके समवेत ठहाके से वह पुश्तैनी घर गूँज गया।

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. रिश्तों की बुनावट को सहेजती भावपूर्ण
    कहानी

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  3. क्या बात है कविता । बहुत अच्छी कहानी । मन को छू गयी । काश ऐसे ही लोग रिश्तों को निभा सकें ।

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    1. आपको कहानी पसंद आई दीदी बहुत अच्छा लगा। ह्रदय से धन्यवाद

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  4. दिल को छूने वाली कहानी, रिश्तों की अहमियत जब भी समझ में आ जाये अच्छा है

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