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रविवार, 4 सितंबर 2022

उल्टी गंगा

 विभा ने इधर-उधर देखा कमरे से बाहर झांका। सासू माँ बाहर के कमरे में रामनामी ओढ़े तखत पर बैठी माला जप रही थीं। कामवाली रसोई के पीछे आंगन में बर्तन धो रही थी। बड़ी बेटी स्कूल जा चुकी थी और छोटा बेटा यूनिफार्म पहनकर टीवी पर कार्टून देखते नाश्ता कर रहा था। इस समय उसके मनपसंद कार्टून के सामने से उसे भगवान भी नहीं उठा सकते थे। सासु माँ की कमर वैसे ही अकड़ी रहती उन्हें एक स्थिति से दूसरी में आने में कम से कम 5 मिनट लगते और साथ ही उस में हुए दर्द के कारण निकली कराहें सड़क तक सुनाई देती। पतिदेव बाथरूम में थे विभा ने एक बार फिर कान लगाकर सुना पानी गिरने की आवाज आ रही थी मतलब अभी कम से कम पांच सात मिनट तो वे बाथरूम से नहीं निकलने वाले थे । फिर भी उसने ऐतिहातन दरवाजा थोड़ा अटका दिया और दरवाजे के पीछे खूंटी पर टंगी दिनेश की पेंट की जेब में रखा बटुआ निकाला। उसने जल्दी से बटुआ खोला यह उसका प्रिय काम था कि सबकी नजर बचाकर दिनेश के बटुए में से पैसे निकाल लेना। हालांकि यह काम जितना आसान लगता था उतना था नहीं। पहले तो ऐसी घड़ी तलाश करना जब कि सब अपने काम में खासे व्यस्त हो जिससे कि कोई उसे ऐसा करते न देखे। बच्चे तो बिल्कुल ही नहीं जिन्हें वह बचपन से चोरी करना पाप है का पाठ सिखा चुकी है और कभी चोरी से चवन्नी चुराने या लड्डू निकाल कर खा लेने पर कान उमेठकर उठक बैठक करवा चुकी है। सासु माँ को भी नहीं जिनकी रामायण मंडली के आए दिन आ धमकने पर वह खर्च का रोना रो चुकी है या ननंद के लिए 500 की जगह 400 की साड़ी लेने के लिए रोनी सूरत बना कर अपनी मजबूरी बता चुकी है। दिनेश तो कतई नहीं जो कम खर्च में घर चलाने के उसके कौशल की तारीफ करते नहीं अघाता और शादी के इतने साल बाद भी उसके लिए एक अदद मंगलसूत्र न दिला पाने के अपराध बोध में उसकी हर हां में हां मिलाता है। यह अलग बात है कि विभा अब तक बटुए से चुपके से निकाले रुपए से एक मंगलसूत्र और एक जोड़ी झुमके बनवा चुकी है। 

दूसरी यह देखना कि बटुए में कितने रुपए हैं उनमें 500 के नोट कितने हैं सौ पचास दस और बीस के कितने। उसके अनुसार किस मूल्य के कितने नोट निकालना है जिससे दिनेश को रुपये निकाले जाने का आभास न हो। विभा ने बचपन में मुर्गी और नाई वाली कविता खूब रट डाली थी। एक बार उसने प्रतियोगिता में यही कविता खूब अभिनय के साथ सुनाकर पहला इनाम भी पाया था। इस तरह वह कविता उसकी रगों में बसी थी फिर वह मुर्गी को हलाल करने की भूल कैसे कर सकती थी? यूँ तो बटुआ निकाल कर रखना बस 30 सेकंड का काम था लेकिन उसके लिए अनुकूल माहौल देखना हिसाब किताब से ठीक ठीक नोट निकालना ही नहीं बटुए में छोड़ना भी खासा समय ले लेते थे । उसकी अगली योजना हाथ के कंगन उसे ज्यादा लेने को उकसा थी तो बेवजह का शक न होने देने की सावधानी आगाह करते हुए हाथ में आए एक दो नोट वापस रखने को समझाती। 
विभा ने बटुआ निकाला उसे खोला ही था कि उसमें से एक पर्चा सा गिरा उसे नजरअंदाज कर उसने देखा बटुए में 500  का एक सौ के चार पचास के दो और तीन चार दस बीस के नोट थे। उसकी अनुभवी बुद्धि ने तुरंत हिसाब लगाया और झट से एक एक सौ पचास दस और 20 का नोट निकालकर बटुआ बंद कर वापस जेब में रख दिया। उसने नोट मोड़ कर तुरंत ब्लाउज में रखें और बाहर निकलने को पलटी कि उसका पैर बटुए से गिरे पुर्जे पर पड़ा। धत्त तेरी की मैं तो भूल ही गई थी। उसने तुरंत नींबू पीले रंग का वह पुर्जा उठाया और उसे रखने ही जा रही थी कि हल्की सी खुशबू ने उसके नसों में प्रवेश कर उसके दिमाग के तंतुओं को झिंझोड़ दिया। एक साथ मानों शक की सैकड़ों चीटियां उस पर रेंग गईं। उसने जल्दी से उस पुर्जे को खोल कर देखा उसमें आड़े टेढ़े शब्दों में 4 लाइनें लिखी थीं। विभा का दिल धक से हो गया । 18 साल से उसके इर्द-गिर्द घूमने वाला उसकी हाँ में हाँ मिलाने वाला ऑफिस से घर, घर से ऑफिस जाने वाला सीधे-साधे मिडिल क्लास आदमी की जेब से ऐसा कोई पुर्जा निकलना सोच से परे था। उसकी रगों में खून का दौरा बढ़ गया गाल दहकने लगे कान की लवें झुलसने लगीं। उसने अटकती सांसों के साथ उसे पढ़ना शुरू किया। 
दिनेश तुम्हें घर खर्च के लिए छोटे-छोटे उधार देते अब कर्जा 40000 हो गया है। अगर महीने भर में तुमने पैसे वापस ना लौटाए तो तुम्हारी खैर नहीं। अपनी मौत के जिम्मेदार तुम खुद होगे। 
नीचे उड़ती चिड़िया से दस्तखत थे जो पढ़ने समझने का वक्त नहीं था। विभा के हाथों में वह कागज थरथर कांपने लगा। आंखों के आगे किसी सड़क पर लहूलुहान पड़ा दिनेश का शरीर और उससे लिपट कर रोते बच्चे घूम गए। एक पल को बिना बिंदी सिंदूर सूना माथा और फर्श पर पड़ा वहीं मंगलसूत्र घूम गया जो उसने बड़ी समझदारी से पैसे इकट्ठे कर चोरी छिपे बनवाया था। दिनेश ने कभी बताया नहीं कि उसे घर खर्च के लिए उधार लेना पड़ता है। वह मुझे इतना प्यार करते हैं कि ऐसी कोई बात बता कर मुझे परेशान नहीं करना चाहते होंगे और एक वह है छी छी। अपने मंगलसूत्र झुमके कंगन के लिए दिनेश के बटुए से रुपया निकालती रही। विभा को खुद पर बेतरह गुस्सा और दिनेश पर प्यार आ गया जो जल्दी ही पलट गया अब उसे दिनेश पर गुस्सा आया कि वह उससे अपनी परेशानियां छुपाता क्यों है? अब वह क्या करें इस तरह दिनेश की जान खतरे में नहीं डाल सकती उसकी आंखें भर आईं। 
उसने ब्लाउज में से रुपए निकाले उन्हें सीधा किया और पुर्जे के साथ बटुए में रख दिया। बटुआ पैंट की जेब में रखकर पलटी ही थी कि एक विचार ने उसे ठिठका दिया। इस तरह तो दिनेश को इतनी बड़ी रकम चुकाने में साल भर से ज्यादा लग जाएगा। इस बीच अगर वह गुंडा... विभा की रीढ़ में ठंडी लहर दौड़ गई। वह झट से अलमारी की तरफ बढ़ी। कपड़ों की तह के बीच से एक बटुआ निकालकर खोला। उसका अभ्यस्त दिमाग फिर तेजी से हिसाब किताब में जुट गया। उसने एक एक सौ पचास 10 और 20 का नोट निकाला एक बार दरवाजे के बाहर झांका। बाहर यथास्थिति थी बाथरूम में पानी गिरने की आवाज अब भी आ रही थी। उसने रुपयों को ठीक से जमाया पीला पुर्जा रखा बटुआ जेब में रखकर राहत की सांस लेती गीली आंखों को झपक कर सुखाती रसोई की और बढ़ गई। अब विभा रोज ही सुबह सबकी टोह लेती है। सबको व्यस्त देख दिनेश की जेब से बटुआ निकालती है उसमें रखे नोट देखकर हिसाब लगाती है और अलमारी से नोट निकालकर उसमें मिला देती है। 
आजकल दिनेश ऑफिस जाने के पहले एक बार पर्स देखता है उसमे बढ़ गए रुपये देखता है होंठों के अंदर ही अंदर मुस्कुराता है और सीटी बजाते हुए लापरवाही से चलते विभा को फ्लाइंग किस देते स्कूटर स्टार्ट करता है। विभा भीगी आंखों से उसे जाते देख उसके सकुशल घर वापस आने की प्रार्थना करती है।
कविता वर्मा

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