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शनिवार, 13 अगस्त 2022

बड़ा नहीं हुआ गोलू

 सुनंदा ने खिड़की से झांक कर देखा गोलू पार्क में अकेला उदास बैठा था। यह रोज का क्रम बन गया था गोलू रोज ही स्कूल से आकर पार्क में बैठा रहता। वह न पार्क के फूलों पेड़ों को देखता और न ही चहचहाते पंछी उसे आकर्षित कर पाते। न ही तीखी धूप की चुभन उसे विचलित करती और न ही कठोर बेंच की रुक्षता उसे डिगाती। स्कूल की थकावट कभी-कभी उसे वहीं बेंच पर लेट जाने को मजबूर करती और गर्म हवा के थपेड़ों से झुलसा उसका क्लांत चेहरा सुनंदा को द्रवित करता।

 अभी खेलने का समय नहीं हुआ था इसलिए पार्क में और कोई छोटे बच्चे नहीं थे। शायद सभी अपने स्कूल का होमवर्क कर रहे हों या शायद खाना खा कर आराम कर रहे हों। आजकल गोलू स्कूल से आकर बैग पटकता है कपड़े बदलकर यहां वहां फेंकता है और पार्क में आ जाता है। उसकी मम्मी उससे खाने का कहती है तब वह थोड़ी देर देखता रहता और कभी कुछ खाता कभी बिना कुछ खाए ही बाहर निकल जाता। 

सुनंदा भी कभी-कभी तब तक खिड़की पर उसके साथ रहती जब तक कि उसके दोस्त खेलने नहीं आ जाते। आठ साल के उस नन्हे बच्चे का इस तरह अकेले पार्क में बैठे रहना उसकी सुरक्षा के लिए चिंता पैदा करता इसलिए भी सुनंदा वहाँ खड़ी रहती। कभी-कभी गोलू की मम्मी उसे आवाज देती घर बुलाती और गोलू वहीं से जवाब देता आ रहा हूँ और वहीं बैठा रहता। सुनंदा का मन करता गोलू को वह अपने पास बुला ले। उसकी उदासी का कारण पूछे उसके साथ खूब बातें करें हँसे खिलखिलाए। 

पांच साल हो गए सुनंदा की शादी को। बहुत मन होने के बाद भी उसकी गोद सूनी है और एक गोलू की माँ है कीर्ति। ईश्वर ने दो-दो बच्चों से झोली भरी है तो एक बच्चे गोलू की तरफ से उदासीन बनी हुई है। गोलू का छोटा भाई गप्पू अभी छह महीने का हुआ है और कीर्ति पूरे समय उसमें उलझी रहती है। सुनंदा कई बार कीर्ति की आवाज सुनती है जब वह गोलू को डांटते रहती है। कितनी जिद करते हो? इतने बड़े हो गए हो लेकिन जरा भी अक्ल नहीं है न जाने कब अक्ल आएगी? कभी-कभी गोलू के रोने चीखने की आवाज आती जिसे जोर की डांट या थप्पड़ से दबा दिया जाता। सुनंदा का दिल तड़प उठता। उसका मन होता कि वह गोलू को गले से लगा ले लेकिन मन मसोस कर रह जाती। कॉलोनी की महिलाएँ अपने बच्चों को सुनंदा से दूर ही रखती थीं। एक दो बार उसने अपने लिए बांझ शब्द का प्रयोग करते सुना तो उसका हौसला टूट गया। 

उस दिन सुनंदा ने गोलू को पार्क में अकेले बैठे रोते देखा तो खुद को रोक नहीं पाई। मन तो उसका था कि गोलू को घर में बुला ले लेकिन लोगों का डर उसे यह करने नहीं दे रहा था। उसने एक पानी की बोतल बिस्किट के पैकेट और चॉकलेट लीं और एक डलिया में रखकर पार्क में आ गई। वह डलिया दोनों के बीच में रखकर गोलू के बगल में बेंच पर बैठ गई। गोलू कुछ देर बिना उसकी तरफ देखे बैठा रहा। आंसू उसके गालों पर बहते रहे। थोड़े इंतजार के बाद सुनंदा ने पानी की बोतल उसकी तरफ बढ़ाई। गोलू ने इनकार में सिर हिला दिया। थोड़ी देर बाद सुनंदा ने फिर बॉटल उसकी तरफ बढ़ाई। इस बार गोलू ने अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरी एक बार सुनंदा की तरफ देखा और अपने नन्हें हाथों से बोतल थाम ली। 

हम उधर पेड़ की छांव में बैठे? सुनंदा ने एक घने पेड़ की ओर इशारा करते हुए गोलू से पूछा। दरअसल धूप की गर्मी से बचने के साथ ही सुनंदा लोगों की नजरों से भी बचना चाहती थी। गोलू ने धीरे से सिर हिला दिया और उठ खड़ा हुआ। पेड़ के नीचे बैठते ही सुनंदा ने बिस्किट का पैकेट खोलकर गोलू की तरफ बढ़ा दिया उसने धीरे से एक बिस्किट ले लिया। 

क्या हुआ था? गोलू ने सिर नीचा कर कुछ नहीं में हिला दिया। 

कुछ तो हुआ है तुम रो क्यों रहे थे? सुनंदा ने मुलायमियत से पूछा। 

गोलू चुप रहा सुनंदा ने दूसरा बिस्किट का पैकेट खोलकर उसे थमा दिया । मम्मी ने मारा? पूछा तो उसने अंदाज से था लेकिन गोलू का सिर हाँ में हिलते देख सिहर गई। 

क्यों? 

क्योंकि मैं बड़ा हो गया हूँ। अजीब सी रिक्तता थी गोलू के स्वर में। 

यह क्या व्यवहार हो रहा है इसके साथ। क्या आठ साल का बच्चा बड़ा हो जाता है? सिर्फ इसलिए कि उसका छोटा भाई या बहन आ गया है। तुमने कुछ किया था? 

गोलू ने सिर झुका लिया वह चुप ही रहा। 

बोलो ना कुछ तो किया होगा? गोलू की माँ कीर्ति को दोष न देने की मंशा से सुनंदा ने पूछा तो गोलू मानो खुद में सिमट गया। 

मैंने मम्मी से कहा था कि आपके हाथ से खाना खाना है। अपराध बोध सा था उसके स्वर में। 

इसमें क्या गलत है हर छोटा बच्चा अपनी मम्मी के हाथ से खाना खाता है। 

लेकिन मैं तो बड़ा हो गया हूँ। अब मम्मी मुझे नहीं नहलातीं न कपड़े पहनाती हैं। खाना भी नहीं खिलाती। अगर मैं कहता हूँ तो कहती हैं कि तुम बड़े हो गए हो। क्या मैं इतना बड़ा हो गया हूँ कि अब मम्मी मेरा कोई काम नहीं करेंगी? वह मुझे प्यार भी नहीं करेंगी? गोद में भी नहीं बिठाएंगी? गोलू का स्वर रुआँसा हो गया। 

सुनंदा ने खींचकर उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उसके चेहरे को चुंबनों से भर दिया। उसकी ममता द्रवित हो गई। कैसे समझाए वह इतने छोटे बच्चे को कि वह अभी भी इतना छोटा है कि उसे पूरा हक है अपनी मांँ की गोद में बैठने उसके हाथ से खाने पीने तैयार होने का। उस से बाल हठ करके मनवाने का। छोटा भाई आ जाने से वह बड़ा भाई बन गया है लेकिन बड़ा नहीं हो गया। सुनंदा देर तक उससे बतियाते रही उसे बहलाती रही उसकी उदास आंखों के साथ चेहरे पर हँसी निहारती रही और उसे समझाती रही कि मम्मी व्यस्त रहती हैं छोटा भाई बहुत छोटा है खुद से कुछ नहीं कर सकता इसलिए उसके सभी काम करते थक जाती हैं। सुनंदा सोचती रही कि इस बच्चे को तो मैं बहला दूंगी लेकिन इसकी मम्मी कीर्ति को कैसे समझाऊं कि बच्चे छोटे भाई बहन के पैदा हो जाने से बड़े नहीं हो जाते। बड़े होने के लिए उन्हें अपनी बाल्यावस्था पूरी जी कर आगे बढ़ना होता है। सुनंदा अभी भी सोच में है और गोलू समझ नहीं पा रहा है।

कविता वर्मा 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सही में , बहुत बार माँएँ अनजाने में बड़े बच्चे से ऐसा व्यवहार कर जाती हैं जिससे बड़े बच्चे के मन में हीन ग्रंथि पनप जाती है ।।अच्छी मनोवैज्ञानिक कहानी ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार 15 अगस्त, 2022 को    "स्वतन्तन्त्रा दिवस का अमृत महोत्सव"   (चर्चा अंक-4522) 
       
    पर भी होगी।
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    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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