पुकार
फोन की घंटी बज़ रही थी स्क्रीन पर उसका नाम चमक रहा था जिसे देख कर मेरा गुस्सा फिर जाग उठा . मैं हाथ में फोन लिए थोड़ी देर यूं ही घूरता रहा न फोन उठाया न ही बंद किया .अपनी पूरी ताकत से आवाज़ दे कर घंटी बंद हो गयी . मैंने फोन बिस्तर पर पटका ही था कि घंटी फिर बज़ उठी .उस का फोन था . नहीं करना है मुझे बात अब चाहे कितनी ही बार फोन करे मैं फोन नहीं उठाने वाला .मैंने फोन सायलेंट मोड़ पर कर दिया लेकिन उसकी स्क्रीन सामने ही रखी .मन में कहीं था देखूं तो कितनी बार फोन करती है .फोन लगातार बजता रहा चार पांच आठ दस बार . अब मेरा गुस्सा कम होने लगा था उसका कारण शायद ये सुकून था की मेरे फोन न उठाने से वह परेशान हो रही होगी या शायद उसकी आँखों में आंसूं होंगे .
हूँ आते है तो आने दो आँसू पहले तो खुद ही ...खुद ही क्या??? मैं सोचते सोचते ठिठक गया .क्या किया है उसने ? सिर्फ एक मजाक ही तो किया है न? वैसे भी बात बात पर मजाक करना उसकी आदत है . उसकी यही आदत तो मुझे उसके करीब लाई थी ..
मुझे हमारी पहली मुलाकात याद आ गयी .हम दोस्तों के साथ एक रेस्तरां में मिले थे .वह अपनी सहेलियों के साथ थी और मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ जो उसकी सहेलियों को जानते थे .
हैलो हाय के साथ ही उसने मेरी पहनी टी शर्ट और मेरी आँखों की तारीफ की थी तो मैं संकोच से भर गया .पहली मुलाक़ात और इतना बेबाक व्यवहार . मैं धीरे से सिर्फ थेंक्यू कह पाया था ,बाद में मेरे दोस्तों ने मुझे मेरे दब्बूपन के लिए मुझे खूब लताड़ा था .तू उसकी तारीफ नहीं कर सकता था ? लेकिन सच कहूँ मैं तो उस वक्त सीधे उसकी ओर देख भी नहीं पाया था .
हम लोग यूं तो साथ में करीब डेढ़ घंटे तक रहे होंगे इस दौरान वह सबसे बात करती रही . किसी की भी बात पकड़ कर उसकी खिंचाई कर देना और खुल कर हँसना उसका स्वभाव था . उसके खुले घुंघराले बालों को वह उँगलियों में फंसा कर धीरे से पीछे करती . मैं तो उसके नरम रेशमी बालों के घुँघर में ही उलझ कर रह गया . कितनी देर उन्हें एकटक देखता रहा पता ही नहीं चला . उसने मेरे चेहरे के सामने चुटकी बजाई तब मेरी तन्द्रा टूटी और वह जोर से हंस पड़ी . मैं झेंप कर भी उसके साथ हंस ही तो पाया था .
उस मुलाकात के बाद मैंने अपने एक दोस्त से उसका नंबर माँगा था और एक झिझक के साथ उससे फोन पर बातें होने लगीं .उसकी आवाज़ बहुत मीठी थी मैं घंटों फोन पर उससे बातें कर सकता था .वह घंटों बोलती और हंसती रहती मैं उसकी बात सुनता रहता और अपने आप में ही मुस्कुराता रहता .कई बार वह कहती भी थी कि ये बात मुझे आपके साथ रहते हुए करना है जब आप इस बात का जवाब भी नहीं दे पायेंगे और बस धीरे से मुस्कुरा देंगे .मुझे आपकी वह धीमी सी मुस्कान देखना है .
कभी खुद से ही पूछती मैं आपसे इतना मजाक करती हूँ आपको गुस्सा नहीं आता ?
मेरा मन होता उससे कहूँ मुझे गुस्सा नहीं आता मुझे तुम पर प्यार आता है . मेरा मन करता है तुम्हारे नरम रेशमी घुंघराले बालों में उंगलियाँ फंसा कर तुम्हे अपने करीब ले आऊं बहुत करीब की तुम्हारी नर्म साँसों को अपने चेहरे पर महसूस करूँ ,तुम्हारे होंठों को अपने पास थिरकते देखूं .लेकिन मैं कहता मुझे तुमसे बात करना बहुत अच्छा लगता है .मैं तो सारी सारी रात तुमसे बात कर सकता हूँ . तुम्हारी आवाज़ बहुत प्यारी है तुम बहुत प्यारी बाते करती हो .
आज मैं वही प्यारी आवाज़ सुनना नहीं चाहता .वह फोन पर फोन किये जा रही है और मैं फोन नहीं उठा रहा हूँ . आज जरूर उसकी आँखों में आंसूं होंगे .
हूँ हैं तो रहने दो हर बात की एक हद होती है मजाक की भी . मैं कुछ कहता नहीं इसका मतलब ये तो नहीं की कैसा भी मजाक कर ले जबकि वह जानती है कि ऐसे मजाक मुझे पसंद नहीं है फिर भी . जब भी हमारी अच्छी भली बातें हो रही होती हैं वही विषय घसीट कर बीच में ला पटकती है और मेरा दिमाग खराब हो जाता है .
इसी बात पर पहले भी हमारी अनबन हो चुकी थी तब भी मैंने उससे बात करना बंद कर दिया था . वैसे ऐसा भी नहीं था कि मैं बहुत गुस्सा था लेकिन बहुत गुस्सा हूँ ऐसा उसे दिखाना जरूर चाहता था . तब भी उसी ने लगातार फोन किये थे एक दिन में पच्चीस पचास फोन लेकिन मैंने फोन नहीं उठाया तो नहीं उठाया . उसने मेसेज भी किये लेकिन मैंने जवाब ही नहीं दिया . वैसे ऐसा करते बहुत ख़ुशी हुई हो मुझे ऐसा भी नहीं था लेकिन बस मैं जताना चाहता था कि नाराज़ हूँ . मैं हूँ ही ऐसा बस एक बार जो सोच लूँ करके रहता हूँ जो ठान लूं वह पत्थर की लकीर हो जाता है .फिर चाहे कोई लाख सर पटके मैं आसानी से अपनी सोच या राय नहीं बदलता .
लेकिन उसकी बात अलग है। सच तो यह है कि मैं भी उसके बिना नहीं रह पाता हूँ और उसके लगातार आने वाले फोन और मेसेज उसके मेरे आस पास बने रहने का एहसास कराते रहते हैं .
फोन आना बंद हो चुका था .बड़े जल्दी हार मान ली मैं मन ही मन मुस्कुराया . नहीं मुस्कुराया तो नहीं था मैं . एक झीना सा आवरण था मन पर .वह थक गयी शायद शायद उसकी आँखों में अब आँसूं होंगे . आँखों में आंसूं लरज़ते होंठ आँखों में शिकायत बड़ी मासूम सी लगती है वह ऐसे .
पिछली बार ऐसे ही उसकी किसी बात पर मैंने आठ दिन तक उसका फोन नहीं उठाया था ना ही मेसेज का जवाब दिया था बस उसे परेशान करता रहा था ,फिर उसने मुझे अपनी कसम दी जिसे मैं नज़र अंदाज नहीं कर पाया और उससे बात की .उसने मिलने बुलाया था उसी रेस्तरां में .आँखों में आंसूं भर कर कहा था आप बहुत निष्ठुर हैं . जानते हैं मेरी जान ही निकल गयी थी . मैं आपको खोना नहीं चाहती .आप अगर मुझसे नाराज़ हों तो मुझे डांट लिया करिए लेकिन बात करना बंद न किया करिए ,और मैंने हंस कर कहा था अरे मैं नाराज़ थोड़े ही था बस थोडा बिजी था .
हूँ बिजी थे जैसे मैं तो कुछ समझती ही नहीं हूँ न? अच्छा बाबा अब से मैं मजाक नहीं करूँगी बस .हम सिरिअस बाते किया करेंगे .
आपका नाम क्या है ? आप कहाँ रहते है? क्या करते है ? आपके शौक क्या क्या हैं ?
और हम दोनों ही जोर से हंस पड़ते इतनी जोर से की आसपास बैठे लोग हमें देखने लगे .
इसके बाद कुछ दिन ठीक चला लेकिन सच कहूँ उसका यूं सीरियस होकर बातें करना मुझे ही अच्छा नहीं लगा . मैं तो उसकी उन्मुक्त हंसी सुनना चाहता था .अब तो मैं भी उससे काफी खुल गया था . कभी कभी तो मैं मजाक की सीमा तक लांघ जाता ऐसे समय वह अचानक चुप लगा जाती .उसका चुप होना ही इस बात का इशारा होता और मैं जैसे ही सॉरी कहता वह हंस पड़ती .जाने दीजिये न हो गया मैं तो भूल भी गयी आपने क्या कहा था .
लेकिन मैं कोई बात आसानी से कहाँ भूलता हूँ और जब कोई बात बुरी लगे तब तो बिना कुछ कहे अपने तरीके से सामने वाले को इसका एहसास करवाता हूँ .
ऐसे ही एक बार उसने कहा था ये जो आप मेरा फोन नहीं उठाते है न कभी आप ऐसे ही नाराज़ रहिएगा और मैं चुपके से कहीं दूर चली जाउंगी फिर आप ढूँढते रहिएगा और मैं मिलूंगी ही नहीं उसकी आँखों में आँसू थे .
ऐसे कैसे दूर चली जाओगी मैं आसमान पाताल एक करके भी तुम्हे ढूंढ लूँगा .
देखते हैं .
अच्छा चुप रहो बेकार की बाते नहीं .सच कहूँ उसकी इस बात से मैं भी डर गया था .
मैं जब आपको आवाज़ दूं आप जवाब जरूर दिया करिए .हर पुकार को जवाब की दरकार होती है .कहीं ऐसा ना हो की वह पुकार जवाब के इंतज़ार में गूंजती ही रहे .
मैं उसकी बातों पर हंस देता बस शुरू हो गयी ज्ञान की बातें मैं कहता , वह गुस्सा होने का दिखावा करती और फिर हंस देती .
फोन आना बंद हो गए थे .मैंने फोन उठा कर देखा करीब बीस मिस कॉल थे लेकिन कोई मेसेज नहीं था मुझे थोडा आश्चर्य हुआ .कमाल है आज कोई मेसेज नहीं आया .फोन रख कर मैं लेट गया उसकी छवि मेरी आँखों में घूमती रही वह हंसती खिलखिलाती रही उसके घुंघराले बाल हवा में उड़ाते रहे मैं उसे देखता रहा देखता ही रहा और मेरी नींद लग गयी .
शाम को उठ कर फिर मैंने फोन देखा न कोई मिस कॉल था न मैसेज .मैं थोडा असहज हो गया .क्या बात है उसने फोन क्यों नहीं किया ?कहीं अब वह तो मुझसे नाराज़ नहीं हो गयी ?मेरे मन में एक आशंका ने जन्म लिया हूँ वह और नाराज़ मुझे हंसी आ गयी .वह भला कहाँ मुझसे नाराज़ हो सकती है .वह बिना बात किये कभी रह सकती है क्या ? जरूर किसी काम में बिजी होगी जैसे ही समय मिलेगा फोन जरूर करेगी ,मैंने खुद को समझाया और निश्चिन्त हो गया .
उस दिन फिर कोई फोन नहीं आया .मेरी बैचेनी बढ़ने लगी क्या वह मुझसे नाराज़ है ? लेकिन क्यों नाराज़ है ? मैंने किया ही क्या है ? मजाक तो वह करती है ऐसा मजाक जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं है . होने दो नाराज़ मुझे क्या ? देखता हूँ कब तक नाराज़ रहती है?
पांचवें दिन एक बार फिर फोन बजा लेकिन मैं बाथरूम में था इसलिए उठा नहीं पाया जैसे वहाँ नहीं होता तो उठा लेता .सिर्फ एक मिस कॉल मैं बैचेन हो गया काफी देर फोन हाथ में लिए देखता रहा लेकिन फिर कोई फोन नहीं आया . मैं फोन करूँ ? काफी देर इसी उहापोह में रहा फोन लगाऊं या न लगाऊं ? क्या था ये पहल करने की मेरी झिझक या मेरा अहम् ? इसे कोई नाम मैं नहीं दे पाया . उसका नंबर स्क्रीन पर था लेकिन मैंने फोन नहीं लगाया .
मेरी बैचेनी बढती जा रही थी . फोन और मैसेज के रूप में उसकी अनुपस्थिति असहयनीय होती जा रही थी . मैं उसके पुराने मैसेज पढ़ने लगा . उसी की तरह चुटीले चुलबुले मैसेज कुछ फोरवर्ड मैसेज तो कुछ उसके खुद के सन्देश . हर मैसेज में उसकी वही उन्मुक्त हँसी मौजूद थी . अब उससे दूरी सही नहीं जा रही थी लेकिन वह फोन क्यों नहीं कर रही है ?
वह फोन किये बिना नहीं रह सकती। पहले भी एक बार उसने दो तीन दिन फोन नहीं किया था लेकिन चौथे ही दिन उसका फोन आ गया .मैं आपसे बात किये बिना नहीं रह सकती , लेकिन आप बहुत निष्ठुर हैं कभी खुद से फोन नहीं कर सकते न ? उसने उलाहना दिया था .
मैं फोन करने ही वाला था लेकिन उससे पहले ही तुम्हारा फोन आ गया मैंने हंस कर कहा .
झूठे उसने बनावटी गुस्से से कहा .
अरे झूठे क्यूं सच कह रहा हूँ .
अच्छा छोडिये क्या आपको सच में मेरी याद नहीं आती ?
अरे ये कैसा सवाल है ? सच तो ये है की उससे बात किये बिना भी मैं हमेशा उससे बतियाता रहता हूँ वह हमेशा मेरे आस पास ही तो रहती है . सोते जागते ,उठते बैठते, खाते पीते। कितनी ही बार तो ऑफिस में काम करते करते उसकी बातें याद करके मुस्कुराने लगता हूँ .सबके साथ गपबाजी करने के बजाय आजकल अकेले ख्यालों में उससे बातें करना मुझे अच्छा लगता है . कितनी ही बार मेरे साथी मुझे अकेले मुस्कुराते हुए देख कर टोक चुके हैं .
आज पूरे दस दिन हो गए उससे बात किये बिना .मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा है . कल रात खाना भी नहीं खाया बस यूं ही बालकनी में खड़े हो कर जाने कितनी ही सिगरेटें फूंक दीं क्या करूँ उसे फोन करूँ ? मैंने फोन हाथ में ले कर देखा कोई मिस कॉल नहीं न ही कोई मैसेज . नहीं अब और इंतज़ार नहीं होता, वह ठीक तो है ? मैं चौंक पड़ा . अचानक ऐसा ख्याल क्यों आया मन में ? पहले तो कभी ऐसा ख्याल नहीं आया .शायद इसलिए क्योंकि तब वह मैसेज और मिस कॉल के रूप में मेरे आसपास रहती थी लेकिन अब पिछले दस दिनों से वह नदारद है . कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया ? मैंने उसे फोन लगाया टू टू के साथ फोन बंद हो गया .मेरी बैचेनी बढ़ गयी मैंने फिर फोन लगाया इस बार कनेक्शन एरर थी फिर फिर फिर हर बार एक रिकार्डेड मैसेज सुनाई देता " जिस कस्टमर से आप संपर्क करना चाह रहे हैं उसका मोबाइल अभी बंद है ".
उसका फोन बंद क्यों है ? वह तो कभी फोन बंद नहीं करती . मैंने घडी देखी नो बज रहे थे वह अभी घर पर ही होगी .मैंने गाडी निकाली और उसके घर पहुँच गया .घर के बाहर कई गाड़ियाँ खड़ीं थीं .क्या हो गया सब ठीक तो है न ,मेरे मन में बुरे विचार आने लगे .उसके मम्मी पापा भाई बहन सब ठीक तो हैं न ? मैंने सर को झटका और गाड़ी से नीचे उतरा . दरवाजे के बाहर ढेर सारे चप्पल जूते रखे थे। चप्पल उतार कर अन्दर पहुंचा उसकी बड़ी सी तस्वीर पर चन्दन की माला चढ़ी थी .धुप की खुशबू से पूरा कमरा महक रहा था उसकी बहन ने मुझे देखा तो वह मेरी तरफ बढ़ी और मुझे बगल वाले कमरे में ले गयी .मैं संज्ञा शून्य सा बैठा था और वह बोले जा रही थी .दस दिन पहले सुबह ऑफिस जाते समय उसका कार से एक्सीडेंट हो गया था। हॉस्पिटल से उसने आपको फोन लगवाये लेकिन आपने फोन नहीं उठाया .बस उसकी जिद थी कि सिर्फ उसी के मोबाइल से फोन लगाए जाएँ और कोई मैसेज नहीं करे . करीब पंद्रह बीस बार फोन किया होगा लेकिन आपने फोन नहीं उठाया . उसकी नब्ज़ डूबती जा रही थी और वह आपको पुकारते हुए ही चली गयी .
मैं बाहर के कमरे में आया कमरा पूरा भरा था लेकिन सन्नाटा पसरा था सिर्फ उसकी आँखें हंस रही थीं जैसे कह रही हों आप बहुत निष्ठुर है मुझे बिलकुल याद नहीं करते .मैंने कहा था न हर पुकार जवाब का इंतज़ार करती है और बिना जवाब पाए भटकती रहती है .
मैं उसकी पुकार का जवाब देना चाहता था लेकिन किसे दूं समझ नहीं पा रहा था .
vakayee me ak alag andaz me khooshurat ahshasho se tar-batar pradtuti
जवाब देंहटाएंmadhu ji bahut bahut abhar...
हटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना,सुन्दर कहानी.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कहानी | मज़ा आया पढ़कर |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
लगातार एक गति के साथ आगे बढती कहानी। कही कोई ठेंस नहीं, पीडा नहीं। पर दोनों के एक रिश्तें में तक्रार, रूठने-मनाने का एहसास। एक लंबी पुकार लगा रहा है और दूसरा उस पुकार को बार-बार सुनने के लिए आतुर है। पर अचानक कहानी में नियति से जबरदस्त मोड लेकर पुकारने वाले को उठा लेती है और पुकार सुनने वाले के दिल में चाकु को घोपती है, पीडादायी है। कहानी से संदेश मिलता है कि एक-दूसरे का सम्मान करें और जीवन में समय पर आवाज का उत्तर भी दें। किसी की लंबी नाराजी व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगाडती है। अगर मन स्थिर न हो तो ड्रायव्हिंग खतरनाक। कहानी के भीतर का पुरुष अगर इस तरिके से सोच रहा है तो वह जिंदगी भर अपने आपको माफ नहीं करेगा। अगर मेरे दीमाग को यह विचार स्पर्श कर रहा है तो हर एक पुरुष-स्त्री के मन को भी करेगा। तात्पर्य अपनों को संभालें।
जवाब देंहटाएंbahuty sundar kahani kavita ji
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक...स्वाभाविक हंसी मज़ाक छेड़ छाड़; दो विपरीत स्वभावों का अपना अपना अंदाज़ प्रेम अभिव्यक्त करने का; अंतस में तैरता असीम प्यार कहानी को वास्तविकता के बहुत नज़दीक ले जाता है...कहानी का अंत अन्दर तक हिला देता है...एक उत्कृष्ट कहानी ..बधाई
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