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बुधवार, 9 नवंबर 2022

बंद रास्ते

 नरेश तैयार होकर बाहर कमरे में आया अर्दली उसका बैग उठाकर तैयार खड़ा था। उसने नंदा पर एक नजर डाली उसे बाय कहा नंदा ने भी उदास सी मुस्कान के साथ जवाब दिया तो चिढ़ गया नरेश लेकिन कुछ बोला नहीं । बेटे के कमरे से म्यूजिक की आवाज बाहर आ रही थी लेकिन बेटा कमरे में था। एक हूक सी उठी जब घर में होता है तब तो डैडी को बाय कहने आ सकता है। कई कई दिन हो जाते हैं बेटे का चेहरा देखे। बेटी तो शायद अभी सोकर ही न उठी हो। 

पता नहीं किस बात की अकड़ है यह बंगला यह शानो शौकत हर जरूरत के लिए रुपये सभी मिलता है फिर भी नरेश का मन खिन्न हो गया। 
बहुत बड़ा अधिकारी है नरेश अपना बचपन अभावों में बिताने के बाद भी वह अपने सपनों की डोर थामे रहा। पढ़ाई  के लिए शहर आया तो फिर गाँव का रुख न किया।  सिंचाई महकमे में अधिकारी के पद पर पदस्थ हुआ तो गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई लेकिन वह नरेश के अंतस को न भिगो सकी। सिंचाई योजना की नहरें गांव तक पहुँचाना सूखा काम था फिर वह खेत क्यों तर करता? कितने ही किसान सरकार की नहीं उसकी बेरुखी से हताश हो फंदे पर लटक गए। उसके बापू तो इतने शर्मिंदा हुए कि एक रात गाँव छोड़कर हमेशा के लिए कहीं चले गए। उसे खबर लगी तो वह गाँव गया था लेकिन माँ द्वारा मुँह पर दरवाजा बंद करने से इतना आहत हुआ कि दरवाजे के उस पार छलनी कलेजे को नहीं देख सका।  
साहब अर्दली ने आवाज लगाई तो वह चौंका। आज उसे यह सब क्यों याद आ रहा है? उसे तो खुश होना चाहिए और वह खुश है भी कि गाँव देहात का कोई अंश अब उसके जीवन में नहीं है। वह पढ़ा लिखा आधुनिक इंसान है जिसके पास धन दौलत पद सम्मान सभी कुछ है। शुरू शुरू में रिश्तेदारों ने उसके यहाँ आने जाने की परंपरा शुरू की जिसे उसने सख्ती से रोक दिया। वह नहीं चाहता था कि उनके देसी रहन-सहन भाषा बोली का प्रभाव बच्चों पर पड़े। नंदा के गंवारू तरीके बदलने में वह झुंझला जाता कभी झिड़क देता तो कभी बुरी तरह अपमानित करता। हूं  तो इसका फायदा तो उसे ही हुआ न आज सोसाइटी की मोस्ट चार्मिंग वुमन है। पोर्च में खड़ी गाड़ी तक की दूरी मापने में वह पिछले 25 बरस का सफर तय कर आया। 
न जाने क्यों आज मन बेहद उदास था। उसने एक नजर दरवाजे पर डाली वह भी उसी की तरह अकेला सूना खड़ा था। उसके साथ से भी उसे तसल्ली नहीं मिली बल्कि उदासी और गहरा गई। उसे याद आया वह देर से उठता था  सुबह बेटा उसे उठाता था कि बस स्टॉप पर पापा छोड़कर आएंगे और वह अर्दली को हुकुम देता बाबा का बैग बोतल लेकर उसे ठीक से बस में बैठाना। नंदा बस स्टैंड पर जाकर खड़ी हो यह उसे पसंद नहीं था। 
गाड़ी आगे बढ़ गई पॉश कॉलोनी में बड़े-बड़े बंगले, पेड़ों और चारदीवारी से घिरे मौन खड़े थे। उनमें कोई स्पंदन नहीं था। गाड़ी कॉलोनी से बाहर निकल गई। सड़क के एक छोटे से टुकड़े के किनारे मजदूरों के मकान बने थे। यहाँ हमेशा गाड़ी की गति धीमी हो जाती है। उसने देखा एक मजदूर अपने तीन बच्चों को साइकिल पर बैठाकर चक्कर लगा रहा है। उसकी पत्नी के चेहरे पर असीम आनंद और संतोष छलक रहा है। थोड़े आगे एक सामान्य सा दिखने वाला लड़का अपने बुजुर्ग पिता को सहारा देकर ऑटो में चढ़ा रहा  था। आॅटो के कारण गाड़ी रुक गई ड्राइवर हॉर्न बजाने लगा। और कोई दिन होता तो नरेश झुंझला कर एक भद्दी गाली देता लेकिन आज वह बोल पड़ा रुक जाओ दो मिनट बुजुर्ग व्यक्ति हैं शायद बीमार हैं। बुजुर्ग ऑटो में बैठ गए एक युवती ने अपने पल्लू की गांठ खोलकर कुछ मुड़े तुड़े नोट उस युवक को थमाये। वह शायद लेने से मना कर रहा है उसने उसकी जेब में वे रुपए रख दिये। 
ऑटो आगे बढ़ा गाड़ी ने उसे ओवरटेक किया और फर्राटे से चौड़ी सड़क पर दौड़ने लगी। नरेश का मन पीछे देखे दृश्यों में अटक गया था। अचानक उसे महसूस हुआ कि तरक्की के जिस पायदान को वह अपनी बड़ी उपलब्धि बड़ी उड़ान समझ रहा था वह कितनी बौनी है ? आज वह भले आसमान में है लेकिन उसके पास वापस लौटने को दो घड़ी सुस्ताने को कहीं कोई स्नेह सिक्त दरख़्त नहीं है।
कविता वर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  2. पोर्च में खड़ी गाड़ी तक की दूरी मापने में उसने पिछले पच्चीस वर्ष का सफर तय किया था, किन्तु आज उसने जो दो दृश्य देखे, उन्होंने कुछ ही क्षणों में उसके दिमाग पर छाई बरसों की अहंकार की धुंध को सम्भवतः हटा दिया है। मनुष्य को दरकार होती है ऐसे ही कुछ भावुक लम्हों की, जो उसके मन के तारों को आंदोलित कर सकें।

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