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शनिवार, 17 नवंबर 2012

एक नयी शुरुआत

ड़ोस से आती तेज़ आवाजों ने कान उधर लगाने को विवश कर दिया.हालांकि बात कुछ समझ नहीं आ रही थी,लेकिन गुप्ता भाईसाहब किसी पर जोर जोर से गुस्सा हो रहे थे.बहुत जोर देने पर भी कुछ समझ ना आया तो दरवाज़ा बंद कर दिया,लेकिन दिमाग के पट बंद नहीं हुए. आखिर क्या हुआ होगा?छोटा सा सुखी परिवार है गुप्ताजी का.पति पत्नी,बेटा बहु ओर बेटी स्नेहा. बेटी कि शादी नहीं हुई है वह बैंक में नौकरी करती है.उसकी शादी ही बस एक जिम्मेदारी है.कहीं स्नेहा का ही कोई अफेयर तो नहीं है?मन ने कयास लगाना शुरू कर दिया. 
स्नेहा कि उम्र करीब पच्चीस वर्ष है दिखने में तो अच्छी है ही साथ ही नौकरी से आये आत्मविश्वास से लबरेज़ वह लड़की कभी बड़ी व्यव्हार कुशल लगती है तो कभी अपनी उपलब्धि पर गर्वित.उसने अपनी राह हमेशा खुद तलाशी है.भाभीजी भी यही कहती हैं ये लड़की अपने मन की ही करती है.
कुछ दिन गुप्ताजी के यहाँ शांति रही लेकिन फिर कभी सुबह तो कभी शाम भाईसाहब की ऊँची आवाज़ सुनाई देने लगी. हालाँकि दरवाजे खिड़की बंद करके घर के तूफ़ान को घर में रोकने की बहुत कोशिश की जाती लेकिन तूफ़ान भला किसी बंधन में बंधता है क्या? शायद इन्ही के चलते भाभीजी भी आजकल कम ही दिखाई देतीं.खैर अगर दिखती भी तो उनसे सीधे सीधे कुछ पूछना तो वैसे भी ठीक नहीं लगता. 
एक शाम उनकी बहू शालिनी सिरदर्द की दवा लेने आयी तो मैंने पूछ लिया किसे है सिरदर्द?
मम्मीजी को आजकल उन्हें तेज़ सिरदर्द बना रहता है.
अरे ऐसा क्यों?क्या बात है?घर में सब ठीक तो है ना?चाह कर भी रोक नहीं पाई खुद को.
क्या बताऊँ आंटीजी आप तो सुनती ही होंगी ना कैसा तूफ़ान सा छाया रहता है आजकल.उसने गोलमोल सा जवाब दिया लेकिन पीछा छुड़ाने का सा भाव नहीं था उसमे. 
इसी से पता चलेगा आखिर बात क्या है?उसे बैठाते हुए प्यार से पूछा हाँ सुनती तो रहती हूँ लेकिन बात क्या है समझ नहीं पाई हूँ.
शालिनी  भी इतने दिनों के तनाव को कहीं उंडेल कर हल्की हो जाना चाहती थी.उसने जो बताया उसका सार यही था की स्नेहा किसी लडके को पसंद करती है और उसी से शादी करना चाहती है लेकिन गुप्ता जी को लडके की नौकरी और हैसियत अपने स्तर की नहीं लगती इसलिए वे इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं.स्नेहा के लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते आ रहे हैं लेकिन वह किसी के लिए राज़ी नहीं है,और गुप्ताजी इसी साल उसकी शादी कर जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं.
कुछ दिनों बाद इस तूफ़ान की तीव्रता कम होते होते थम सी गयी.मन में फिर ये जानने की तीव्र उत्कंठा हुई की आखिर हुआ क्या?कौन माना पिता या बेटी?
ये शांति तूफ़ान से पहले की थी.एक शाम गुप्ताजी  के घर कुछ मेहमान आये शायद स्नेहा के रिश्ते के लिए. लेकिन मेहमानों के जाने के बाद एक बार फिर तूफ़ान ने सर उठाया.उस दिन तो स्नेहा की भी आवाज़ सुनाई दी. 
शालिनी ने ही बताया की स्नेहा जिस लडके को पसंद करती थी वह और उसका बड़ा भाई मिलने आये थे. लेकिन पापाजी ने लडके के बड़े भाई से सीधे पूछ लिया की तुम्हारा भाई कमाता कितना है?हमारी स्नेहा बचपन से जिस ऐशो आराम में पली है क्या उसकी तनख्वाह से उसे वह सारे ऐशो आराम दे पायेगा?लडके का भाई तो वहीँ भड़क गया.उसने पापाजी से कह दिया आपसे ऐसी बेहूदगी की उम्मीद नहीं थी.लेकिन अब में ये देखूंगा की आपकी बेटी की शादी मेरे भाई से ना हो पाए.
लडके ने कुछ नहीं कहा? 
वह क्या कहता?अपने भाई का मान तो उसे रखना ही था और वह खुद भी तो ऐसे प्रश्न से आहत ही हुआ होगा.हाँ बहुत बड़ी नौकरी नहीं है उसकी लेकिन स्नेहा और उसकी संयुक्त तनख्वाह से अच्छा खासा जीवन बिता सकते थे.लेकिन लगता है पापाजी ने उन्हें मिलने इसीलिए बुलाया था की उनका अपमान करके इस रिश्ते के सारे रास्ते बंद कर सकें.और स्नेहा?मुझे सच में तरस आया उस पर.
जब ये बातें हुईं स्नेहा वहां नहीं थी तब लडके के भाई के भड़कने का कारण उसे भी समझ नहीं आया.उनके जाने के बाद जब स्नेहा ने फोन लगाया तब उसे सारी बात पता चलीं.लडके ने उसे भी खूब खरीखोटी सुनाई और कहा जिस घर में उसका और उसके भाई का अपमान हुआ है वहां वह हरगिज़ रिश्ता नहीं करेगा,और अब बात दोनों के बीच की ना होकर परिवार के सम्मान की हो गयी है. 
स्नेहा तो दोनों तरफ से ठगी गयी.आजकल उसके और पापाजी के बीच रोज़ ही बहस हो रही है.स्नेहा कहती है पापाजी ने उनका अपमान किया है इसलिए उन्हें उनसे माफ़ी मांगना चाहिए उसका तर्क है अगर ऐसा प्रश्न कोई लड़की वाला भाई के लिए करता तो क्या पापाजी वहां रिश्ता करते?उसने कह दिया है की शादी करेगी तो वहीँ नहीं तो कहीं नहीं. 
कई महीनों तक रुक रुक कर वाक् युद्ध चलता रहा. शालिनी ही कभी छत पर कपडे सुखाते तो कभी सब्जी लेते बताती की उस लडके ने स्नेहा से मिलना बात करना बिलकुल बंद कर दिया है.वह फोन लगाती है लेकिन वह फोन ही नहीं उठाता या फोन बंद कर देता है. वहां की खीज स्नेहा घर पर उतारती है.
आंटीजी घर में शांति से सांस लेना मुश्किल हो गया है. स्नेहा की तकलीफ भी देखी नहीं जाती.वह ऐसे चीख चिल्ला लेती है लेकिन सच तो ये है की वह टूटती जा रही है.वह लड़का एक बार भी बात करने को तैयार नहीं है.कभी टेलिफोन बूथ से फोन लगाती है तो उसकी आवाज़ सुन कर काट देता है.
मम्मीजी भी पिता और बेटी के बीच पिस रहीं हैं. पापाजी स्नेहा के बिगड़ने का दोष उन्हें देते हैं. स्नेहा को रोते चीखते चिल्लाते देख मम्मी का कलेजा फटता है लेकिन वह क्या करें?ना पापाजी झुकने को तैयार हैं ना स्नेहा मनाने को.वैसे भी बात अब माफ़ी मांगने की हद से बहुत आगे बढ़ चुकी है.उस लड़के ने स्नेहा को दिल से बिलकुल उतार दिया है लेकिन स्नेहा इसे समझ नहीं पा रही है.उसके मन का विद्रोह उसे कुछ हद तक  आत्म हंता बना रहा है. 
एक दिन फिर गुप्ताजी के यहाँ खासी रौनक दिखी. मेहमान आये बातचीत ठहाकों की आवाजें आती रहीं.स्नेहा को देखने वाले आये थे.दूसरे दिन गुप्ता भाभीजी खुद मिठाई लेकर आयीं.बहुत खुश थीं.लड़का घर परिवार सब बहुत अच्छा है.अच्छी नौकरी,खुद का फ्लैट स्नेहा तो राज़ करेगी. 
स्नेहा को सब पसंद है?मेरी जिज्ञासा ने मुझे चुप ना रहने दिया. 
हाँ हाँ उसी ने तो फोटो और सब जानकारियां देख कर हाँ की थी सच में भाभीजी जो हुआ सो हुआ अंत भला तो सब भला. 
स्नेहा में आये इस बदलाव ने मुझे अचम्भित कर दिया.ऐसा क्या हुआ की वह शादी के लिए तैयार हो गयी?क्या उसने परिस्थितियों से समझौता कर लिया?समझ लिया की वह लड़का अब एक मृगतृष्णा से ज्यादा कुछ नहीं है.चलो अच्छा ही हुआ मैंने भी एक संतुष्टि की सांस की. 
एक दोपहर शालिनी हडबडाते हुए आयी आंटीजी पता नहीं क्या होने वाला है?मेरा मन बहुत घबरा रहा है समझ नहीं आ रहा है क्या करूँ
अरे लेकिन हुआ क्या?में फिर किसी अनहोनी से आशंकित हुई.
आंटीजी आपको पता है स्नेहा ने इस रिश्ते के लिए क्यों हाँ की?बदला लेने के लिए.
हाँ आंटीजी हम सबसे पापाजी से बदला लेने के लिए वह इस शादी के लिए तैयार हुई है.अब कहती है शादी वह भले ही कर लेगी लेकिन उस लड़के से कोई रिश्ता नहीं रखेगी.सगाई के बाद से कितनी ही बार लडके और उसके घरवालों के फोन आये उसने एक बार भी बात नहीं की.आंटीजी शादी की सारी तय्यारियाँ हो गयीं हैं पंद्रह दिन रह गए हैं.लडके वाले उसकी पसंद जानने के लिए फोन करते हैं तो मुझे उनसे बात करनी पड़ती है.में ही अपने हिसाब से सब बता देती हूँ.यहाँ तक की हनीमून के लिए जगह होटल सब बुक हो चुके हैं और ये है की जिद पर अड़ी है कहती है आप सब अपने मन की कर लो लेकिन जब में अपने मन की करूंगी तब जवाब देते रहना.
आंटीजी अब तो लडके वाले भी पूछने लगे हैं स्नेहा इस रिश्ते के लिए राजी तो है ना?अब आजकल लड़कियां इतनी भी शर्मीली नहीं होती की बात ही ना करें. सब उसे समझा समझा कर थक गए लेकिन वह तो बस बदला लेना चाहती है.मुझे तो लडके वालों के लिए दुःख होता है.वह उनका इकलौता लड़का है.कितने अरमान हैं उनके बहू के लिए फिर उनका तो कोई दोष ही नहीं है. ये शादी के बाद जो करेगी उन पर क्या बीतेगी? 
समस्या तो वाकई विकट थी लेकिन हल क्या था?लडके वालों को कुछ बताया भी नहीं जा सकता था और ना ही चुप रहा जा सकता था.आखिर स्नेहा शादी के लिए खुद ही तैयार हुई थी. शालिनी का परेशान होना भी स्वाभाविक था.अपने मुंह से अपनी ननद के बारे में लडके वालों को कैसे बताये और क्या बताये? 

आज गुप्ता जी के यहाँ सुबह से ही बड़ी हलचल है. आज स्नेहा शादी के बाद पहली बार आने वाली है.मेरा दिल धड़क रहा है पता नहीं आज क्या हंगामा होगा?शायद उसका पति उसकी शिकायत करे.उसे वापस यहीं छोड़ जाये.पता नहीं हनीमून में स्नेहा ने क्या क्या तमाशे किये होंगे? 
गाड़ी रुकी तो में परदे की ओट से स्नेहा को देखती रही. गुलाबी शिफान की साड़ी मोतियों का सेट पहने हंसती हुई वह गाड़ी से उतरी और अपने पति का हाथ थामे दरवाजे तक पहुंची. भाभीजी ने आरती उतारकर बेटी दामाद की आगवानी की.उसकी हंसी वातावरण में घुल कर मेरे मन की हर आशंका को मुंह चिढ़ा रही थी.स्नेहा दो दिन रही उसकी खुशियों से पूरा घर महक रहा था. एक दिन बाहर दिखी तो उसने नमस्ते किया.उससे हालचाल पूछते में उसे तौलती रही. उसकी हंसी होंठों से आँखों तक खिंची थी.मेरी सारी आशंकाएं व्यर्थ थीं. स्नेहा सच में बहुत खुश थी. लेकिन उसने समझोता कैसे किया ,बदला लेने का ख्याल कैसे छोड़ा या पति के प्यार ने उसे पिघला दिया? में स्नेहा के लिए खुश थी लेकिन अपने सवालों के जवाब चाहती थी.  
स्नेहा   के जाने के दो दिन बाद खुद ही शालिनी को आवाज़ दे कर बुलाया.
आंटीजी ये सब समय का खेल है. शालिनी ने बताया स्नेहा ने तो बदला लेने की जिद ठान ली थी.शादी के आठ दिन पहले उसने फिर उस लड़के को फोन किया.उस दिन उसने फोन उठाया लेकिन बात उसकी मम्मी और भाभी ने की.उन्होंने स्नेहा को जाने क्या क्या कह डाला.यहाँ तक की हम लोग उसकी शादी की जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं इसलिए चाहते हैं की वह खुद ही कोई लड़का फांस ले इसलिए उनके लडके के पीछे पड़ी है .स्नेहा सब चुपचाप सुनती रही.
फोन रखने के बाद वह बहुत देर तक सन्नाटे की सी स्थिति  में रही फिर बोली भाभी वह वहीँ था जब उसकी मम्मी ओर भाभी मुझसे ये सब बातें कह रहीं थीं.पापा ने जो किया उसमे मेरा तो कोई दोष नहीं है ना?.उसने इसे परिवार की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर मुझे सजा दी.वह अपनी और अपने परिवार की प्रतिष्ठा बचाने में इस कदर डूब गया कि ना उसे मेरे सम्मान की परवाह है ना मेरी भावनाओं की ना वह ये सोच रहा है की मुझ पर क्या बीत रही है.इतने महीनों से वह सिर्फ और सिर्फ खुद के और खुद के परिवार के बारे में सोच रहा है. उसके लिए तो में जैसे हूँ ही नहीं.में मेरी गलती ना होते हुए भी उससे बात करने कि पहल कर रही हूँ और वह तो मेरे अस्तित्व को ही नकार चुका है. उसे एक बार भी मेरी चिंता नहीं हुई. मानती हूँ पापा ने गलत किया और अब वह मुझसे शादी नहीं कर सकता लेकिन एक बार बात करके वह यही बात शांति से कह तो सकता था.एक बार पूछ तो सकता था कि बिना किसी गलती के में कैसी सजा भुगत रही हूँ.कैसे सब झेल रही हूँ,अपनों से लड़ते हुए कैसे जी रही हूँ?

भाभी  वह जीवन के उतार चढाव में कभी मेरा साथ दे भी पायेगा? मेरे सम्मान कि रक्षा कर भी पायेगा?में क्यों उसके लिए अपनों से लड़ रही हूं ?उन्हें दूसरों के सामने शर्मिंदा करना चाहती हूँ. नहीं भाभी अब में उसके लिए अपने परिवार से नहीं लडूंगी. पापा ने गलत किया लेकिन उसकी नज़रों में मेरी अहमियत जानने के लिए ये सही ही था. भाभी वह मेरे दिल से तो कभी नहीं निकल पायेगा लेकिन अब वह एक कड़वी याद बन कर  मेरे दिल में रहेगा.अपने प्यार को पाने और बचाने के लिए झुकना एक बात थी लेकिन मेरे लिए मेरा आत्म सम्मान भी उतना ही जरूरी है. भाभी अब में अपनी जिंदगी कि एक नयी शुरुआत करूंगी .कह कर शालिनी चुप हो गयी.

आंटीजी स्नेहा ने जिस शिद्दत से प्यार किया था उस लड़के के व्यवहार ने उसे उतना ही तोड़ दिया .उस दिन जैसे उसकी आँखे खुली और वह अपने भविष्य को एक नए नज़रिए से देखने लगी उस लड़के के प्यार को उसने अपनी जिंदगी बनाया था लेकिन उस दिन उसने अपनी जिंदगी को उस प्यार के अलावा अपने आत्म सम्मान से भी जोड़ कर देखा।

स्नेहा ने सही समय पर एक सही कदम उठाया था उसने सच में समझदारी से एक नयी शुरुआत कि थी और मेरा मन उसे इस नयी शुरुआत के लिए आशीष दे रहा था. 
कविता वर्मा. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. एक कहावत है समय होत बलवान..
    समय समय का फेर है। बहुत अच्छी कहानी।
    बहुत सुंदर

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  2. बहुत ही अच्छे ढंग से लिखी हुई एक उम्दा रचना

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  3. आंखन देखी लगी कहानी .एक मनोवाज्ञानिक तत्व का समावेश लिए आगे बढ़ी और आत्मविश्लेषण में विलीन हो एक सुखद अंत पर पहुंची .

    आंखन देखी लगी कहानी .एक मनोवाज्ञानिक तत्व का समावेश लिए आगे बढ़ी और आत्मविश्लेषण में विलीन हो एक सुखद अंत पर पहुंची .आपकी स्नेहिल टिपण्णी का आभार .

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  4. शब्दों की जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी..कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने.बहुत खूब.
    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति शुभकामनायें.

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  5. इतना अच्छा लिखती हैं ,कहाँ छुपी हैं आप कविता जी ?
    आपके ब्लॉग की शुरुआत और लेखन शैली देख कर मै इतना कह सकता हूँ ,की एक दिन आपके कलम को पढने ज़माना यहाँ आएगा। मैंने इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड की शुरुआत आप जैसे नए ब्लोगर्स को ब्लॉग जगत के सामने लाने के लिए ही की थी। आप भी इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड के आर्टिकल्स पर एक नज़र जरुर डालें। यहाँ आपके काम की बहुत सारी सामग्री मिलेगी। इसे ज्वाइन भी कर लें, ताकि आपको यहाँ के सभी सदस्यों का समर्थन मिलेगा।

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  6. कहानी का कथ्य अंतस को छू गया...बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति...शुभकामनायें...

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  7. बहुत अच्छी कहानी ....पसंद आई ..कहानी के पात्र अच्छे लगे |अत्यंत रोचक कहानियां एवं स्व्यम्विकास सम्बन्धी लेख पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित हैं -http://drakyadav.blogspot.in/

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