सोमवार, 19 सितंबर 2022

दौड़

 सुबह गहरी धुंध में लिपटी थी उसमें भीगे पेड़ ठिठुरे से खड़े थे। सूरज भी कोहरे की चादर में लिपटा मानों उजाला होने और धूप निकलने का इंतजार कर रहा था। सुबह के 8:00 बज रहे थे लेकिन लोग अभी भी घरों में दुबके थे। कच्ची सड़क पर इक्का-दुक्का साइकिल या बाइक सवार कोहरे की चादर से इस निस्तब्धता को चीर के गुजर जाते और उनके गुजरते ही सब कुछ मानों फिर जम जाता। मेघना रोज की तरह सुबह 6:00 बजे उठ गई थी। उस समय हवा में जमी धुंध अंधेरे को उजला दिखा रही थी। पक्षी भी पेड़ों के कोटर और घोंसलों में दुबके थे। मेघना ने खिड़की से पर्दा हटा कर उस चंपई अंधेरे को देखा और एक बार फिर बिस्तर में दुबकने का मन बना लिया । लेकिन बरसों की सुबह की सैर की आदत ने उसे उठने को मजबूर कर दिया। उसने केतली में पानी गर्म करके चाय बनाई फ्रेश होकर ट्रैक सूट पहना जूते मफलर टोपी जैकेट पहन कमरे से बाहर आ गई। 

बड़ा भयावह सा अनुभव था कोहरे के उजास को चीरती तो आगे अंधेरा मिलता। वह उस अंधेरे में आंखें गड़ाए दौड़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन नहीं जानती थी कि पैर कहाँ पड रहे हैं। आगे सड़क पर गड्ढा है या पत्थर? उसका चेहरा टोपी मफलर कोहरे की पानी की बूंदों से भीगते जा रहे थे।चढ़ाई पर चलने के बावजूद वह शरीर में गर्मी के बजाय ठंड महसूस कर रही थी। ज्यादा देर नहीं दौड़ पाई मेघना और जल्दी ही वापस लौट आई। 
घर आकर गीले कपड़े कुर्सी पर फैला कर कुछ देर एक्सरसाइज की और फिर एक कप चाय बना कर खिड़की के पास कुर्सी लेकर बैठ गई। सुनसान सड़क पर एक जोड़ा हाथ में हाथ डाले लगभग एक दूसरे से लिपटे हुए धीमी चाल से चला जा रहा था। कुहासे के कारण सड़क का सुनसान होना दोनों को अतिरिक्त सुकून दे रहा था। मेघना के होठों पर मीठी मुस्कान तैर गई जो शीघ्र ही एक कड़वाहट में बदल गई। 
ऐसी सुबह प्रेम करने के लिए होती है शेखर का प्यार शुरू शुरू में कितना मधुर लगता था। निहाल हो जाती थी वह कोई इतना प्यार करता है उसे। इसी रास्ते पर मुलाकात हुई थी शेखर से वह अपनी कंपनी की तरफ से एक सर्वे के लिए आया था। छोटे हाइड्रोलिक प्रोजेक्ट लगाने के लिए  संभावना और उपयुक्त स्थान तलाशने। नीचे की ओर जाती इस सड़क के मुहाने के गेस्ट हाउस में ठहरा था। वह एक चमकीली सुबह थी मेघना अपनी पूरी दौड़ पूरी करके लौट रही थी और वह दौड़ शुरू ही कर रहा था। मुस्कान सी आई थी मेघना की चेहरे पर उसे देखकर जिसे उसने छुपाना चाहा पर छूप न सकी। लौटते समय उसे खिड़की पर देखकर शेखर ने हाथ हिलाया तो वह भी जवाब दिए बिना न रह सकी। साथ में सैर कॉफी बातों का सिलसिला कुछ ही दिनों में बेडरूम तक आ गया था। कितना चमत्कारिक लगता था शेखर बात-बात पर ठहाका लगा था उसे हँसाता उसे गुदगुदा ता। 
कम ही उम्र में मेघना से जिंदगी ने क्रूर मजाक किया था। 2 साल की त्रासदी शादी से छुटकारा पाकर वह वापस अपने घर लौट आई थी। साल भर के अंदर ही माता-पिता दोनों चले गए थे। बहुत सूनापन था उसकी जिंदगी में जिसमें शेखर बयार बनकर आया और उसे अपने साथ ले जाने की जिद पकड़ बैठा। इतनी आसानी से भरोसा नहीं करना चाहती थी वह। कुछ जानती ही कहाँ थी वह शेखर के बारे में। जो भी था सिर्फ ऊपरी था घर परिवार माता-पिता उसने तो यही कहा था कि अकेला है यायावर है वह मिल गई ठिकाना मिल गया। पूछा था उसने मोहन चाचा से जिंदगी का इतना बड़ा फैसला अकेले लेने से डरती थी। और उन्होंने आगाह भी किया था लेकिन वही नहीं समझ पाई। शेखर की बातों ने जादू कर दिया था उस पर। सोच ही नहीं पाई कि इन मीठी बातों के भीतर तल्ख सच्चाई भी हो सकती है। 
शेखर के साथ हो ली थी वह सुबह की पहली किरण के साथ उतरे थे वह बस से। उस सुबह पहली बार बरसों का दौड़ने का नियम टूटा था और फिर टूटता ही चला गया। जहाँ रुके थे वह घर नहीं था रेस्ट हाउस था। अकेले इंसान का क्या घर फिर आए दिन टूर पर रहता हूँ इसलिए रेस्ट हाउस में ही डेरा रहता है।  बहलाया था उसने और वह बहल गई कुछ आशंकित सी। कुछ दिनों साथ रहने के बाद दूसरा गेस्ट हाउस फिर शेखर का 8 दिन टूर पर जाना फोन पर छोटी सी बात। दबी आवाज जिसमें औपचारिकता ही ज्यादा थी। मेघना के मन में शक का कीड़ा कुल बुलाने लगा था बहुत झंझावातों से गुजरी थी वह। बहुत मजबूत थी शेखर के प्यार ने उसकी मजबूती को जिस तरह बढ़ाया था मन के शक में उसे कमजोर कर दिया। 
 गेस्ट हाउस की सुनसान अकेली रातों में मोहन चाचा की कही बातें याद आती बेटा मैदानों से भेड़िये पहाड़ों पर आते हैं और हमारे यहां की सुंदर सलोनी भोली भाली लड़कियों को उठा ले जाते हैं। इतनी जल्दी उन पर भरोसा मत करो। माता-पिता न सही कोई तो रिश्तेदार होगा उनकी फोटो नाम पता फोन नंबर कुछ तो होगा। कोई इतनी जल्दी इतना बड़ा फैसला कैसे कर सकता है? लेकिन मेघना फैसला कर चुकी थी। वह चली आई थी घर बसाने लेकिन गेस्ट हाउस की  अजनबियत उसे मुंह चिढ़ा रही थी। 
उस दिन अचानक उसने शहर घूमने का फैसला कर लिया। वॉचमैन को कहकर टैक्सी बुलाई। वह कहता रहा साहब ने मना किया है वह नाराज होंगे मेरी नौकरी चली जाएगी। मेघना इस कैद से उकता चुकी थी। उसने पर्स उठा लिया  कि वह पैदल चली जाएगी। पांच सात किलोमीटर पहाड़ी लड़की के लिए ज्यादा नहीं होते।  शाम ढलने को थी सड़क और दुकानें रोशनी से जगमगा उठी थीं। वह उस मॉल में चली गई इसकी सजावट ने उसे आकर्षित किया था। दुकानें शोकेस में सजे कपड़े जूते रोशनी लोगों की चहल-पहल आवाजें  उसे जिंदा होने का एहसास करवा रहे थे। तभी एक आवाज ने उसका ध्यान खींचा। तमाम आवाजों को धता बताकर वह आवाज उस तक पहुंची थी। वह जानी पहचानी आवाज जिसे सुनकर वह सुध बुध खो देती थी। उसने पलटकर उस दिशा में देखा। आवाज़ का मालिक अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ सेल्फी लेने में मशगूल था। उसकी आंखों में प्यार था बेशुमार प्यार उनके लिए जिन्हें पता ही नहीं था कि वह उनसे धोखा कर रहा है। पागल सी हो गई वह तेजी से आगे बढ़ी लेकिन ठिठक गई। इस अनजान शहर में अजनबियों के बीच बच्चों के सामने उनके पिता को जलील करने की हिम्मत न जुटा सकी। उस औरत को धोखा देने का धिक्कार खुद को हुआ। उसने धीरे से मोबाइल निकाला उनकी फोटो खींची और टैक्सी कर वहाँ से चल दी। वापसी की टिकट लेकर सामान बांधा और अगली सुबह मोहन चाचा के घर चाबी लेने खड़ी थी। घर पहुंचते ही सबसे पहले उसने ट्रैक सूट पहना और इसी सड़क पर लंबी दौड़ लगाने चली गई । शेखर को फोटो भेज कर उसने नंबर ब्लॉक कर दिया। 
सुबह की दौड़ फिर शुरू कर दी इस प्रण के साथ कि इस क्रम को टूटने ना दूंगी।
कविता वर्मा

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्रम तो नहीं टूटने देगी लेकिन धोखा देने वाले को यूँ आसानी से छोड़ देना जिससे वो फिर किसी के जीवन से खिलवाड़ करे । कुछ तो सज़ा बनती थी

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    1. जी बिलकुल सजा दी जाना चाहिए लेकिन वह इतना आसान भी हमेशा नहीं होता। कभी-कभी दूसरे को सजा देने के चक्कर में खुद का सुख चैन छिन जाता है इसलिए कुछ चीजें समय पर छोड़ दी जानी चाहिए।
      बहुत बहुत धन्यवाद कहानी पढ़ने के लिए

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