शुक्रवार, 17 मई 2013

धुंधलका


धुंधलका 
कई दिनों की बेजारी और बेकारी के बाद अब और टालना मुश्किल था .नुक्कड़ वाले बनिए ने आगे से उधार  देने से मना कर दिया था .दोस्त कहे जा सकने वाले दोस्त तो कोई है ही नहीं और दोस्त के नाम पर जो हैं उनके पास भी इतना कहाँ रहता है कि उधार दे सकें .जो थोडा बहुत होता भी है वो उधार चुकाने या आगे के लिए बचा लेने की नीयत से छुपा लिया जाता है वैसे भी जो है उसे किसी को बताया तो नहीं जाता है . 

आज का पूरा दिन सुस्ती में और सोने में निकाल दिया उसने .शाम को भूख से कुलबुलाती आँतों ने उठने पर मजबूर कर दिया .बनिए से हील हुज्जत करते बड़ी मुश्कल से उसने खुद पर काबू पाया . किसी तरह एक ब्रेड का पैकेट लेकर पानी के साथ निगला और टोह लेने निकल पड़ा . 

कल ही मदन महाराज की चाय की दुकान पर अखबार पढ़ते हुए खबर पड़ी थी कि शहर के बीचों बीच एक कॉलोनी में ज्यादातर संख्या बुजुर्गों की है .जिनके बच्चे या तो विदेशों में या बड़े शहरों में बस गए हैं, उनकी सुरक्षा के कोई खास प्रबंध पुलिस ने नहीं किये हैं . जाने क्यों यह खबर पढ़ते वह चुप हो गया और तत्काल दूसरी खबर पढ़कर सबको सुनाने लगा . बस्ती में उसके समेत और एक दो ही लोग है जो पढ़ना लिखना जानते हैं .मदन महाराज की चाय की दुकान पर बस्ती का इकलौता अखबार आता है जिसे पढ़कर पढ़कर सुनाने वाले को कोई न कोई चाय पिला ही देता है . यहाँ तक की मदन महाराज जो अखबार खरीदते है उन्हें भी पढना नहीं आता . वो तो उनके ठिये पर भीड़ बनी रहे और उनकी चाय की रेहड़ी पर चटपटी ख़बरें चलती रही  इसलिए वे अखबार का खर्च करते हैं . एक बार उसने यूँ ही पूछा लिया था महाराज जब पढ़ते नहीं हो तो बेकार खर्च क्यों करते हो? तो कहने लगे बड़ी बड़ी कंपनियाँ भी तो विज्ञापन पर लाखों खर्च करती हैं समझ लो मैं अपनी चाय की दुकान के विज्ञापन के लिए खर्च कर रहा रहा हूँ  
बुजुर्गों की कॉलोनी की खबर छुपा जाने के कारण पर वह कल देर रात तक विचार करता रहा .वैसे विचार करने का कोई कारण उसे समझ नहीं आया लेकिन फिर भी वह बात दिमाग से निकल नहीं पा रही थी . क्यों छुपा गया वह उस बात को ? क्या उसे उन पर दया आ गयी थी ? दया किस बात की दया कितना अजनबी सा लग रहा है न ये शब्द आज अचानक जाने कैसे याद आ गया .क्या उसे किसी पर दया आ सकती है ? इस सवाल ने चौका दिया था उसे .याद नहीं आता उसने कब किस पर आखिरी बार दया की थी .वैसे वह कोई दुष्ट भी नहीं था किसी को तंग करना उसका स्वभाव नहीं था  दया नहीं तो फिर क्या है वह ? कुछ देर सोचने के बाद झटके से उठ बैठा वह . क्या क्या सोचने लगा है आजकल। वह जो है बस है न दयालु न क्रूर .क्रूर कैसे कैसे भारी भारी शब्द याद आ रहे है उसे आज या बचपन में पढ़े वे शब्द आज तक भूला नहीं है वह . लेकिन इस खबर को छुपा लेने का कुछ तो कारण था शायद दया या स्वार्थ या शायद कोई याद . बूढ़े लोग…उसके माता पिता भी तो अब बूढ़े हो गए होंगे .तो क्या उनसे लगाव का कोई रेशा अभी भी बाकी है उसके मन में ??क्यों वह उनके लिए परेशान है वैसे भी वे लोग तो कहीं और रहते हैं .वह क्यों किसी को ऐसी सहज सुलभ जगह के बारे में बताना नहीं चाहता था क्या सिर्फ धंधे में गोपनीयता के कारण ?

चलते चलते वह काफी दूर निकल आया था .वह सड़क के किनारे एक पेड़   के सहारे टिक कर खड़ा हो गया . उसने हिसाब लगाया कितनी दूर और जाना है .बूढों की वह कॉलोनी अभी डेढ़ दो किलोमीटर दूर थी यानी पंद्रह बीस मिनिट का रास्ता . उसे सड़क के दूसरी और एक प्याऊ दिखी वहाँ पानी पी कर वह फिर चल पड़ा .उसने कमर में खुंसे सामान को फिर एक बार टटोला वह अँधेरा होने से पहले वहाँ पहुँच जाना चाहता था ताकि काम करने की जगह को देखभाल कर चुन सके . हालांकि एक ही दिन में ये काम करना संभव नहीं था लेकिन अगर आज कुछ नहीं किया तो कल से सिर्फ पानी से पेट भरना पड़ेगा ये सोच कर उसके कदमों में तेज़ी आ गयी . 
कॉलोनी खोजने में कोई खास परेशानी नहीं हुई .कॉलोनी के पार्क में ज्यादातर बूढ़े बूढी ही नज़र आये हाँ चार छह जवान औरते भी थीं और आठ दस बच्चे . कुछ देर तक पार्क के गेट पर खड़े देखता रहा ज्यादातर लोग साधारण कपड़े ही पहने थे .उसे थोड़ी निराशा हुई लगा बेकार ही टटपुंजियों की बस्ती में आ गया .फिर उसे गंगू की बात याद आयी ये बूढ़े खब्ती होते हैं चाहे जितना भी हो इनके पास दिखाते ऐसे हैं जैसे कड़के हों .  दो पांच रुपये के लिए भी इतनी हुज्जत करते हैं पूछो मत . उसके मन को एक आस बंधी जब यहाँ तक आ गया हूँ तो एक चक्कर लगा ही लिया जाये . 
कॉलोनी की सारी हलचल शाम के इस समय में पार्क में समा गयी थीं सड़कें सूनी थी .बड़े बड़े बंगले जैसे अपने मालिकों का अकेलापन और उदासी ओढ़े खड़े थे . उसने दो चक्कर लगाने के बाद दो बंगलों को कुछ ज्यादा ही तनहा और उदास पाया .ये उसका अनुमान था अनुभव था या उसकी खुद की मनस्थिति जो उन बगलों को ढँक गयी थी समझ नहीं सका वह . लेकिन फिर भी उन के बारे में तलाशने का मन बना लिया था उसने . 
सड़क से गुजरते एक बच्चे को रोक कर उसने एक मकान की और इशारा किया और पूछा " जैन साब इसी मकान में रहते हैं न? " उनके बेटे अमेरिका गए थे वापस आ गए क्या? 
उस लडके ने विस्मय से उसकी ओर देखा और कहा यहाँ कोई जैन साब नहीं रहते यहाँ तो तिवारी अंकल रहते है और उनका कोई बेटा नहीं एक बेटी है जो बंगलोर में रहते है यहाँ तो बस अंकल आंटी रहते हैं . 


ओह्ह लगता है मैं घर भूल गया .दो कदम चल कर वह फिर ठिठक गया और मुड कर बोल वो सामने वाला बंगला तो नहीं है उनका ? 
वो नीला बंगला वो तो वर्मा अंकल का है वहां अंकल आंटी और रोहित भैया रहते हैं .लेकिन रोहित भैया चल नहीं सकते एक एक्सीडेंट में उनके पैर ख़राब हो गए . 
ओह्ह थेंक यू दोस्त लगता है मैं दूसरी ही सड़क पर आ गया हूँ . चलो ढूँढता हूँ शायद जैन साब का घर मिल जाये . 
हाँ पीछे वाली सड़क पर देख लो यहाँ तो कोई जैन साब नहीं हैं कह कर वह लड़का चला गया . 
काम का पहला चरण तो पूरा हुआ उसने दो घर तो तलाश ही लिए . धुंधलका छाने लगा था सड़क पर पार्क से घर लौटने वालों की चहल पहल शुरू हो गयी थी . वह भी धीरे धीरे चलते हुए सड़क के कोने तक पहुँच गया और वहाँ से दोनों मकानों पर नज़र रखने लगा . पहले वाले बंगले में छड़ी टेकते एक बुजुर्ग दंपत्ति को जाते देखा वो बहुत धीरे धीरे और लंगडाते हुए चल रहे थे . जहाँ वह खड़ा था वहाँ से नीला वाला मकान पास था .उसके सिर्फ एक कमरे में रोशनी थी .पोर्च में मरियल सी रोशनी मकान की वीरानी को और भयावह बना रही थी . उसके दोनों अनुमान सही थे अब उसे निश्चय करना था पहले किसे चुना जाये ? उसका दिमाग कह रहा था पहला वाला बंगला पर दिल जाने क्यों बार बार नीले बंगले को चुनने को कह रहा था .उसे पता भी नहीं था की आखिर उस बंगले के बारे में मिली जानकारी कितनी सही थी? उस बंगले में उसने किसी को आते जाते भी नहीं देखा जबकि पहले वाले बंगले में रहने वाले बुजुर्ग बिना छड़ी के सहारे के चल भी नहीं सकते इसलिए वह ज्यादा सुरक्षित था . आज हर हाल में उसे काम करना ही था नहीं तो कल क्या होगा ? उसने गहरी सांस भरी . 
हूँ देखा जाएगा वह वहाँ से मेन रोड पर आ गया . वापस जाने का कोई फायदा नहीं था इतनी दूर पैदल जाना फिर वापस आना वह सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ गया और आती जाती गाड़ियों को देखने लगा . 

बारह साल हो गए उसे इस धंधे में ऐसा भी नहीं है की उसे इस काम में मज़ा आता हो बल्कि हर बार काम होने के बाद बल्कि अच्छा हाथ बनाने के बावजूद भी वह एक उदासी से घिर जाता है .पता नहीं उसे ये काम अच्छा लगता है या बुरा ,काम करने की ख़ुशी होती है या दुःख बस वह किये जा रहा है क्योंकि उसे लगने लगा है इसके आलावा वह और कुछ कर ही नहीं सकता है . 

बारह साल पहले जब वह घर से भागा था तब पेट भरने के लिए पहली बार उसने एक दुकान से ब्रेड का पैकेट चुराया था . उसके पीछे भागते दुकानदार के नौकर से बचने के लिए वह एक खोली में घुस गया था जहाँ उसे मल्लू उस्ताद मिला .भूख प्यास और डर से उसकी जबान जैसे तालू से चिपक गयी थी . मल्लू उस्ताद ने उसे पानी पिलाया और पड़ोस के लडके को बोल कर दो चाय मँगवाई .चाय के साथ ब्रेड खाकर उसकी जान में जान आयी तब उसने उसके परिवार के बारे में पूछा . उसने सिर्फ इतना ही बताया कि वह घर से भाग कर आया है और अब कभी वापस नहीं जाएगा . 
अब कहाँ जायेगा कैसे रहेगा क्या खायेगा कुछ पता नहीं . 

मल्लू उस्ताद ने उसे उनके साथ घर में रहने को कहा . उसने एक बार खोली को देखा आठ बाय दस की टीन की खोली एक मैला सा बिछौना दो चार काले पिचके बर्तन एक स्टोव और खूँटी पर टंगे दो चार कपडे . उसके दिल और दिमाग में द्वन्द शुरू हो गया .दिल कहता इतनी गन्दी जगह पर कैसे रहोगे और दिमाग कहता जो मिल रहा है उसे मत छोड़ उस्ताद अच्छा आदमी है इसका साथ मत छोड़ना .कहाँ जायेगा इतनी बड़ी दुनिया में अकेलापन उस पर हावी होने लगा ऐसे में मल्लू  उस्ताद का साथ उसके लिए बहुत बड़ा भावनात्मक सहारा था .उस दिन तो जीत दिमाग की ही हुई लेकिन ये जंग यहीं थमी नहीं ये तो शुरुआत थी . मल्लू उस्ताद ने ही उसे चोरी करना सिखाया छोटी मोटी पाकेट मारी से शुरू हुआ सफ़र घरों में सेंध लगाने तक पहुँच गया . मल्लू उस्ताद फक्कड़ आदमी था जब तक उसके पास खाने को रहता वह दूसरी जगह हाथ साफ़ नहीं करता था . उसे तो हर बार काम के बाद एक उदासी घेर लेती थी जिससे उबरने में ही उसे कई दिन लग जाते इस तरह बीच के दिनों में वह अपने आप से जूझता रहता .सही गलत के हिसाब से खुद को तौलता रहता . कई बार खुद को धिक्कारता कई बार वहाँ से भाग जाना चाहता लेकिन कच्ची उम्र में इतनी बड़ी दुनिया में अकेले रहने के ख्याल से ही उसे झुरझुरी आ जाती इसलिए वह मल्लू उस्ताद के साथ रहते उसका साथ दिए जा रहा था। 

दो साल पहले उस्ताद की मौत के बाद उसने गंभीरता से कोई और काम करने के बारे में सोचा था लेकिन बिना पढ़ाई बिना हुनर के करेगा क्या समझ ही नहीं पाया . मल्लू उस्ताद जब तक थे उसे प्यार से समझाते रहते थे काम को काम की तरह करने की ताकीद देते थे . दूसरे कामों में होने वाली हेरा फेरी, ऊँच नीच की जानकारी देकर उसके काम की ईमानदारी पर उसका विश्वास कायम रखने की भरसक कोशिश करते। वह उनका मन रखने के लिए ही सही अपने विचारों को सुविधा सडक पर मोड़ देने की कोशिश करता .दो साल पहले उनकी मौत के बाद उसके दिल और दिमाग का द्वन्द उस पर हावी होने लगा .ऐसा नहीं है उसने दूसरे कामों के बारे में तलाश नहीं किया हो माली, चौकीदार, चाय की रेहड़ी, सब्जी का ठेला लेकिन कहीं पूँजी की तो कहीं विश्वशनीयता की कमी आड़े आ जाती .वह अब तक कभी पकडाया नहीं था इसलिए कोई बड़ा काम करने में डरता था . उसका दोस्त गंगू इस बात का बड़ा मजाक बनाता था ,कहता था ये सब तेरी पढ़ाई लिखाई का ही नतीजा है . हाँ पढ़ ही तो रहा था वह जब घर से भागा था .उस साल वह आठवीं की परीक्षा देता .इसी पढ़ाई ने उसके विवेक को अब तक जीवंत रखा था वह हर काम में सही गलत के बारे में जरूर सोचता था .
सड़क पर सन्नाटा छाने लगा दूर कहीं चौकीदार की सीटी की आवाज़ आने लगी थी .वह उठ खड़ा हुआ .कॉलोनी में सड़कें सुनसान पड़ी थीं कुछ घरों की लाइटें बंद हो चुकी थीं इक्का दुक्का घरों में रौशनी थी लेकिन कोई हलचल नहीं थी . उसका द्वन्द फिर शुरू हो गया पहले वाले बंगले की लाइटें बंद हो चुकी थीं .नीले बंगले में आगे कमरे की लाईट बंद थी पीछे एक खिड़की से रोशनी आ रही थी .पहला या दूसरा करते करते भी वह नीले बंगले की दीवार फांद कर अन्दर चला गया उसने चारों तरफ से घूम कर अन्दर जाने का रास्ता तलाशा . पीछे खिड़की से हाथ डाल  कर दरवाजे की सिटकनी खोली जा सकती है वह निश्चिन्त होकर वहीँ दीवार के सहारे बैठ गया . 
वह सोचने लगा अगर घर से नहीं भाग होता तो ऐसे ही किसी बंगले में वह रह रहा होता ,उसके असली माँ बाप का तो उसे पता ही नहीं था वह शायद किसी अनाथालय में था जब उसके माँ बाबूजी ने उसे गोद लिया था कुछ ही दिनों में वे आपस में घुलमिल गए थे .बाबूजी की पीठ को घोडा बना कर जब वह खिलखिलाता माँ उसे बाहों में भर कर चूम लेती . जब बेट बॉल से खेलता और जल्दी आउट हो जाता माँ उसी का पक्ष लेतीं . पार्क में सैर करना ,खिलौने,कपडे ,खाने में उसी की पसंद चलती .
उस दिन माँ बाबूजी बहुत खुश थे उसे मंदिर ले गए पड़े का प्रसाद चढ़ाया उसे बताया कि उसका छोटा भाई या बहिन आने वाला है .उसने तो तपाक से कह दिया उसे तो भाई चाहिए वह उसके  क्रिकेट खेलेगा . 
भाई के आने के बाद माँ का सारा ध्यान उसी में लगा रहता .बाबूजी भी उसे ही खिलाते रहते उसका पार्क जाना .घूमना फिरना कम होते होते माँ बाबूजी के व्यवहार में बड़ा बदलाव ले आया .अब उससे घर के कई काम करवाए जाते ना करने पर डांटा मारा जाता .वह मना करता चीखता चिल्लाता लेकिन कुछ समझ नहीं पाता .उसे तो याद ही नहीं था कि वह गोद लिया हुआ है वह तो अपने माँ बाबूजी को ही अपना सब कुछ समझता था .उस दिन कोई काम न करने पर माँ ने उसे बहुत मारा और बहुत भला बुरा कहा .शरीर पर पड़ी मार से ज्यादा मन पर पड़ी शब्दों की मार ने उसे आहत किया .उससे बने घाव में अब भी जब तब टीस उठती रहती है . उसने घर छोड़ दिया और आज किसी बंगले के आहते में बैठ कर लाइटें बंद होने का इंतज़ार कर रहा है . 
ऐसा नहीं है उसका मन वापस लौटने का ना हुआ हो .मल्लू उस्ताद के रहते भी जब भी उसका मन सही गलत की उलझन में फंसा रहता था तब उसने कई बार वापस लौटने का सोचा था .एक बार दूर से माँ बाबूजी को देखने गया भी था वे उसके छोटे भाई के साथ खुश थे . उसके चले जाने के दुःख की परछाई भी उनके चेहरों पर नहीं दिखी . उस रात उस्ताद के गले लग कर वह खूब रोया था उस रात पहली बार उसे उनके गंधाते शरीर खोली के गंदे बिस्तर से कोई शिकायत नहीं हुई . वो उससे कारण पूछते रहे और वह सिर्फ रोता रहा . उस दिन वह सच में अनाथ हुआ था .
आसपास के घरों की लाइटें एक एक करके बंद होती जा रही थीं .खिड़की से आती रौशनी बंद होने के बाद उसने थोड़ी देर इंतज़ार किया फिर खिड़की से हाथ डाल कर दरवाजे की सिटकनी खोली और दबे पाँव घर में प्रवेश किया .रसोई के आगे एक नाईट बल्ब जल रहा था जिसकी रोशनी में तीन दरवाजे दिख रहे थे दो बंद थे और एक खुला जिसमे एक सोफे रखा दिख रहा था . तिजोरी किस कमरे में होनी चाहिए दायें या बाएं टोह लेने के लिए उसने दायें दरवाजे में कान लगाये कोई आवाज़ नहीं थी उसने दरवाजा को धीरे से धकाया . अन्दर एक लड़का सो रहा था उसने एक नज़र कमरे का जायजा लिया सिवाय किताबों के वहाँ कुछ नज़र नहीं आया . बाएं दरवाजे को धका कर खोलने ही वाला था कि एक औरत के बोलने की आवाज़ से ठिठक गया . 
ये सब मेरे कर्मों की सजा है जो मेरे बेटे को भुगतनी पड़ रही है .भगवान् मुझे कभी माफ़ नहीं करेंगे मैंने एक मासूम बच्चे पर जुल्म ढहाये हैं ये उसी की सजा है . पता नहीं मेरा संजू कहाँ किस हाल में होगा आज पूरे बारह साल हो गए है उसे घर से भागे हुए .आज यहाँ होता तो पच्चीस साल का जवान बेटा हमारे साथ होता .मेरी ममता एक बेटे के प्यार में इतनी अंधी हो गयी कि दूसरे के लिए बोथरा गयी .मैने बहुत बुरा सलूक किया उसके साथ .उसे गोद लिया था ये बात तो भूल ही गयी थी मैं ना जाने कैसे अपने पराये का ये भेद मेरे दिल में आ गया .ये नहीं सोचा उस पर उमड़ी ममता से ही तो मेरी बंजर कोख फली फूली थी .मैं क्या करूँ कैसे ढूंढूं संजू को ? जाने कहाँ भटक रहा होगा मेरा बच्चा एक बार मिल जाए तो मैं पैर पकड़ कर उससे माफ़ी मांग लूंगी .एक बार उसे सीने से लगाने को मेरी आत्मा तड़प रही है . 

बस करो सुजाता क्यों उसी बात को लेकर रोज़ दुखी होती हो .न ही संजू ने ना भगवान् ने हमें माफ़ किया है .भगवान् भी जानता है संजू को गोद लेकर हमने उसे बहुत प्यार दिया था . न जाने कैसे रोहित के आने के बाद अपने पराये का भेद हमारे दिलों में आ गया . ये जानते हुए भी कि उसी की वजह से हमारी बगिया फूली फली है हमने उसके साथ बुरा सुलूक किया .इसकी सजा हम भुगत रहे हैं .रोहित का एक्सीडेंट होना उसके पैर बेजान होना हमारी सजा ही तो है . उससे बड़ी सजा है अपना मकान छोड़ कर इस अनजानी जगह मकान लेने पर भी उन यादों का पीछा न छोड़ना . 

अच्छा सुनो अगर संजू वापस आ गया तो क्या उसे अपना लोगे ? पता नहीं वह इतने साल कहाँ कैसे किसके साथ रहा होगा उसके बावजूद भी ? औरत ने कहा . 
क्यों नहीं अगर रोहित कहीं चला जाता फिर लौट कर आता तो उसे नहीं अपनाते क्या ? तो संजू को क्यों नहीं अपनाएंगे ? इसीलिए तो पुराने घर में अपना पता छोड़ कर आये हैं बस एक बार वह वापस आ जाये .आदमी ने गहरी सांस ली .चलो अब सो जाओ कब तक उसकी वापसी के सपने देखोगी .
संजू संजू कितने सालों बाद उसने ये नाम सुना है .उसकी आँखों से आंसू बहने लगे . दर्द और नफरत की तीव्र लहर ने उसके दिमाग को झनझना  दिया . वह दरवाजे से हट कर अगले कमरे में आ गया और सोफे पर निढाल सा बैठ कर दोनों हाथों से सर थाम लिया . 
ये कहाँ आ गया वह ? उन्ही लोगों के मकान में जिन्होंने उसकी जिंदगी को खंडहर बना दिया .वह सालों से अपनी जिंदगी को तिनके तिनके उड़ते देख रहा है .चाह कर भी उन्हें जोड़ कर कोई नक्शा तक नहीं बना पा रहा है और उसकी जिंदगी को बवंडर के हवाले करने वाले यूं आराम से सो रहे है . वह रोहित जिसकी वजह से उसकी जिंदगी बदल गयी वह सालों से ठीक से सो नहीं पाया वह रोहित चैन से सो रहा है . उसके मन में आया वह जाकर उसका गला घोंट दे ख़त्म कर दे उसकी जिंदगी बदलने वाले को और बर्बाद कर दे उन लोगों की भी जिंदगी जिनकी वजह से उसका जीवन अँधेरी रात बन कर रह गया  है . 
वह उठ कर उस कमरे में गया जहाँ रोहित सोया था .खिड़की से छन कर आती चांदनी में उसने रोहित को देखा मुलायम रोशनी में मासूमियत भरे उसके चेहरे ने उसके बढ़ते हाथों को रोक दिया . पलंग के बगल में पहिये वाली कुर्सी पड़ी थी .उसे उस लडके की बात याद आयी उनके लडके के पैर खराब हैं वह चल नहीं पाता  एक राहत सी महसूस की उसने ,तो उसकी जिंदगी को अपाहिज बनाने वाला खुद ही चलने से लाचार हो गया है . 
मैं इसे क्यों मार रहा हूँ ? इसकी क्या गलती है ? वो तो बच्चा था उसने तो माँ बाबूजी से नहीं कहा था मुझसे बुरा व्यवहार करने को .लेकिन माँ बाबूजी के बुरे व्यवहार की सजा तो ये भी भुगत रहा है . उसे उन अच्छे दिनों में माँ की सुनाई कहानियां याद आ गयीं बुरा करने वालों का हमेशा बुरा होता है . उसे माँ का रोना उन के स्वर की कातरता याद आ गयी तो उन्हें अपने बुरे व्यवहार की सजा मिल गयी . मुझे खूब रुलाया उन्होंने अब उन्हें रोना है जिंदगी भर . अचानक उसके मन में उनके लिए दया उमड़ पड़ी .उसे अपनी सोच पर शर्म आयी .
यह क्या सोच रहा है वह ,वे उसके माता पिता हैं . 
मन के अच्छे बुरे दो पहलू होते हैं और मन में विचार दोनों ही पहलुओं से उपजते हैं .इसलिए मन में अच्छे और बुरे विचारों का प्रवाह हमेशा चलता रहता है .कभी अच्छे विचार बुरे पर हावी हो जाते है कभी बुरे विचार अच्छे पर . ये तो अच्छा है विवेक अँधेरे और उजाले में एक सामान ही काम करता है .उसने अपने विचारों अंकुश लगाया . 
सामने दीवार पर बड़ी सी फॅमिली फोटो थी जिसमे वह माँ बाबूजी के बीच में बैठा था और रोहित माँ की गोद में था .उस समय वह माँ की आँखों का तारा था .धुंधली आँखों से देखते वह बचपन के सुनहरे दिनों की यादों में खो गया .लगा जैसे जीवन में फिर उजली सी धूप बिखर गयी है .बाहर भौकते कुत्तों की आवाज़ ने उसे फिर कमरे के अँधेरे यथार्थ में वापस लौटा दिया . 
क्या करे वह ? उसे माँ का रोना ,उसे याद करना ,उनका पश्चाताप करना याद आया . क्या करे वह वापस लौट जाए ? किस मुंह से वापस लौटे ? क्या कहेगा वापस आकर कहाँ  रहा इतने साल ?क्या करता रहा ? 
चोरी ?? ये जान कर भी क्या माँ बाबूजी उसे फिर अपनाएंगे ? उस पर विश्वास कर पायेंगे ? क्या उसकी किसी भी गतिविधि को बिना शक देख सकेंगे ? उनकी आँखों में अपने लिए अविश्वास को वह सहन कर सकेगा ? वह तो उनकी डांट मार से भी ज्यादा असहयनीय होगा . 
माँ बाबूजी उसका इंतज़ार कर रहे हैं .उससे मिलने के लिए तड़प रहे हैं . हो सकता है जैसा वो सोच रहा है ऐसा कुछ न हो .उसे फिर एक सामान्य सी जिंदगी जीने को मिले वह पढ़ सके अपना ये गन्दा सा धंधा छोड़ कर कोई अच्छा काम कर सके .क्या ये सच में संभव है ? वह सर थाम कर बैठ गया हाँ न के पलड़े ऊपर नीचे होते रहे कशमकश ने उसे बुरी तरह उलझा दिया .वह कुछ भी निश्चित नहीं कर पा रहा था . 
जाने कितनी देर वह अँधेरे में बैठा रहा . उसके दिमाग ने हाँ न के हर बिंदु को हर कोण से सोच लिया था लेकिन अब भी वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सका था . 
उसे लगा उसका गला सूख रहा है वह उठ कर किचन की तरफ गया .कमरे में अब कोई आवाज़ नहीं थी माँ बाबूजी सो चुके थे वह अचानक जैसे सजग हुआ ये किस सोच में पड़ गया वह ? वह तो वैसे भी उनका अपना बेटा नही है .अनाथालय से गोद लिया घर से भगा एक चोर है वह .कैसे उसने सोच लिया उसे फिर से अपना लिया जायेगा .इतनी सारी कड़वी सच्चाईयां जानने के बाद कोई कैसे उसे अपना पायेगा ? 
फ्रिज से पानी की बोतल निकालते उसे कटोरदान में कुछ रखा दिखा .श्रीखंड था माँ के हाथों का श्रीखंड .उसे जोरों से भूख लग आयी .फ्रिज में थोड़ी सब्जी भी थी .उसने अलमारी टटोली वही पुराना गोल रोटी का डिब्बा उसमे दो रोटियां रखी थीं फ्रिज का दरवाज़ा अध खुला रख कर उसने खाना खाया .बरसों बाद माँ के हाथ का बना खाना . उसे वो दिन याद आ गए जब वह बाबूजी की गोद में बैठ कर उनके साथ खाना खाता था . 
क्या करे वह वापस लौट आये या जहाँ है जैसा है वैसा ही रहे ? वह वापस जाकर सोफे पर बैठ गया .वह भूल चुका था वह यहाँ क्यों आया था ? सोचते सोचते उसकी आँख लग गयी वह वहीँ लुढ़क गया। 
सुबह सुबह उसकी आँख खुली शायद बाहर से कोई गाड़ी गुजरी थी . वह चौंक कर उठ बैठा ये क्या कर रहा हूँ मैं ? अगर यहाँ अभी पकड़ा गया तो फिर कभी वापस नहीं लौट पाऊँगा .  वह उठ कर किचन के दरवाजे से बाहर निकल गया और खिड़की से हाथ डाल कर सिटकनी लगा दी . दीवार फांदने से पहले उसने चारों तरफ  देखा घर की ओर देखते उसकी आँखों से आंसू आ गए . 
पौ फटने को थी उसे वहाँ से जल्दी निकलना होगा .कदम दर कदम उसका मन भारी होने लगा उसने कई बार पलट कर देखा अपनी घिसी कमीज़ की आस्तीन से आँखें पोंछीं और सड़क के मोड़ से मुड़ गया . 
कविता वर्मा 




सोमवार, 6 मई 2013

वो रात

मैं पसीने पसीने हो गया हवा चलना अचानक बंद हो गयी  थी चांदनी में ठंडक तो थी लेकिन अब लगा हवा ही इस ठंडक को पोस रही थी . मेरी नींद खुल गयी और मैं उठ  बैठा .गर्मियों के दिन थे घर के अन्दर पंखे की गर्म हवा सोने नहीं देती इसलिए बाहर छत पर पलंग लगा लिए जाते थे .वह चांदनी रात थी गपशप करते करते कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला . मेरे बगल के पलंग पर पिताजी सोये थे कुछ दूर माँ और छोटे भाई का भी पलंग था . सब गहरी नींद में थे . किसी को गर्मी नहीं लग रही ये विचार मन में आया तो मैं चौंक गया सब आराम से सो रहे है फिर सिर्फ मुझे ही गर्मी क्यों लग रही थी . 
मैं पलंग से उठ गया पास ही राखी सुराही से पानी पिया और टहलते हुए छत की मुंडेर तक आ गया .चाँद एकदम सर के ऊपर था सड़क बिलकुल सूनी हो गयी थी . सड़क ,दुकाने बगल की बिल्डिंगें सभी दूधिया चाँदनी में नहाये हुए थे . सड़क किनारे खड़ा पेड़ भी शीतल चांदनी में ऊँघ रहा था .पेड़ के नीचे घनी छाँव थी . 
हमारी बिल्डिंग से कुछ आगे सड़क ने छोड़ा सा मोड़ ले लिया था इसलिए उसके किनारे की बिल्डिंग सीधे और साफ़ साफ़ दिखाई देती थी .अचानक मेरी नज़र उस बिल्डिंग की छत पर गयी .चाँदनी रात में छत और उस पर सीढ़ियों के लिए बना कमरा स्पष्ट दिखाई दे रहा था . पूरा कमरा सफ़ेद चाँदनी में नहाया हुआ था .
तभी अचानक कमरे की दीवार पर दो परछाइयाँ उभरी और बात चीत करने के हाव भाव दिखने लगे .मतलब हाथों का संचालन होने लगा . मेरी नींद अचानक पूरी तरह खुल गयी और उस चम्पई अँधेरे में आँखे फाड़ फाड़ कर उन परछाइयों को देखने लगा लेकिन वे सिर्फ परछाइयाँ थीं वहाँ कोई नहीं था क्योंकि चाँद तो एकदम सर पर था इसलिए अगर वह कोई होता तो वह और उसकी परछाइयाँ दोनों ही दिखाई देती .लेकिन ये तो आमने सामने खड़े दो लोग थे जिनमे एक मर्द और एक ओरत थी वे एक दूसरे से बात कर रहे थे . मैंने आँखें मसल कर अपनी बची खुची नींद को पूरी तरह उड़ाया और फिर ध्यान से देखा लेकिन वहाँ कोई नहीं था . मैंने छत के सामने पीछे के कोनों में जाकर ध्यान से देखा करीब पौने घंटे तक मैं उन परछाइयों को देखता रहा लेकिन कुछ समझ नहीं आया .सब लोग गहरी नींद में थे किसी को उठा कर उन लोगों को दिखाना मुझे ठीक नहीं लगा क्योंकि मुझे खुद ही समझ नहीं आ रहा था की जो मैं देख रहा हूँ वह सच में वही है जो देख रहा हूँ .आखिर कब तक जागता मेरी आँखें झपकने लगे और मैं सो गया 

सुबह जागा  तो रात की घटना मेरे जेहन में एकदम ताज़ा थी वो दोनों परछाइयाँ अभी भी दिमाग में घूम रही थीं और मैं उनकी सच्चाई का पता लगाना चाहता था  इत्तफाक से उस बिल्डिंग में मेरा  एक दोस्त रहता था .शाम को मैं उसके घर गया और उससे कहा चल आज छत पर चलते हैं वहीं बैठ कर बातें करेंगे .
वह बोला अरे छत पर क्यों? यहीं बैठते हैं न .और वैसे भी छत पर तो जा ही नहीं सकते बहुत सालों पहले यहाँ रहने वाले एक लडके और लड़की ने छत से कूद कर जान दे दी थी वे एक दूसरे से प्यार करते थे .तब से छत पर जाने वाले दरवाजे पर मोटा सा ताला  डला  है और चाबी किसके पास है कोई नहीं जानता . 
कविता वर्मा