मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

रात की परछाई

सुबह कि धूप ने उसके गालों पर हलकी सी थपकी  दी उसने कुनमुना कर करवट बदली गर्दन दर्द से अकड़ गयी थी।  उसे फिर सीधे होना पड़ा, बड़ी देर तक यूं ही छत को ताकते हुए वह वैसे ही पड़ी रही ना यह जानने कि कोशिश कि कि समय क्या हुआ है ना ये सोचने कि कोशिश कि आज क्या करना है? उसका शरीर बिस्तर में पड़ा था मन शायद चादर कि सलवटों में कहीं छुपा पड़ा था जिसे ढूँढने कि कोई कोशिश उसने नहीं कि थी। शायद उसे मन कि उदासी का अंदाजा था इसलिए वह उसे यूं ही कहीं गुम सा पड़े रहने देना चाहती थी। बिना मन का शरीर जाने कैसा भारी सा हो गया उसने बिस्तर पर हाथ फेर कर उसे टटोला लेकिन मन तो जाने कहाँ दूर छिटक कर पड़ गया।  उसने अपने सर के नीचे सिरहाना ठीक से लगाया ओर चादर को गाल पर रख लिया वैसे ही जैसे उसकी गोद में सोते हुए उसकी हथेली से गाल को ढक लेती है।  उसी तपिश को महसूसते हुए उसने आँखें बंद कर लीं ओर जाने कब तक यूं ही पड़ी रही। सड़क पर कोई गाड़ी अपने टायरों को घसीटते हुए रुकी जिसकी चीखती आवाज़ से उसकी अधलगी नींद फिर खुल गयी। उसने धीमे से चादर हटाया ज्यों अपने गाल से उसकी भारी हथेली हटा कर परे कि हो और उठ बैठी। 

चाय के कप के साथ बिस्तर पर बैठते उसकी नज़र साइड में रखे गिलास पर पड़ी उसने उसे यूं ही उठा कर गालों से लगा लिया ओर धीमे से बुदबुदाई तुम क्यूं अपना गिलास ऐसे अधूरा छोड़ देते हो?मेरी बात मान कर? सच में मेरी बात मानते हो,तो ग्लास बनाते ही क्यों हो?आज तो उसका मन भी ग्लास लेने का ही हो रहा था लेकिन जाने क्यों उसने ग्लास नीचे रख दिया ओर यूं ही खुद को शीशे में  देखने लगी। बालों कि लटें उसके माथे ओर गालों तक झूल आयीं थी उसने ऑंखें बंद कर अपना चेहरा आगे कर दिया उसके दोनों हाथों को सारे बाल पीछे कर उसका माथा चूमने का इंतजार करती रही लेकिन बाल यूं ही हवा में झूलते रहे ओर माथा उसके होंठों की तपिश के इंतजार में ही रहा। खिड़की से आती धूप में चाय का कप ओर व्हिस्की का अध भरा ग्लास हाथ में हाथ मिलाये बैठे से लगे।  उसने एक नज़र खाली कमरे और बिस्तर पर डाली।  वो चला गया बिना उससे कहे, बिना उससे मिले। बिना ये जाने की उसके बिना कैसे रहेगी वह या बिना ये समझे की उससे कितना प्यार करती है,  लेकिन अगले ही पल चाय के कप का खालीपन ओर गहरे तक उसमे भर गया.खिड़की से आती धूप सरक कर चौखट से बाहर जाने लगी ऐसे ही जैसे उसकी हथेली धीरे धीरे छूटती जा रही हो उसने अपनी हथेली कस कर भींच ली लेकिन वहाँ यादों की सिर्फ कुछ किरचें थी। 
फ़ोन की घंटी ने उसे उसके आगोश से निकाल कर फिर कमरे के बिस्तर पर अकेले छोड़ दिया और वह मोबाइल टटोलने लगी। कोई नया नंबर देख कर बात करने कि उसकी इच्छा ही नहीं हुई। वह मेसेज पढने लगी पूरा इन्बोक्स उसके मेसेज से भरा हुआ था उनमे से जाने कितने ही मेसेज वह महसूस करती थी जैसे उसने सामने बैठ कर उसका चेहरा हाथों में लेकर उसके बालों को पीछे करते हुए उससे कहे थे। आज वही मेसेज पढ़ते हुए वह सामने क्यों नहीं है उसका स्पर्श उसे छू क्यों नहीं रहा है? आज अचानक उसकी आँखों को देख कर भी उसकी नज़रों को वह महसूस क्यों नहीं कर पा रही है?क्या वह सच में चला गया दूर इतनी दूर कि उसका एहसास भी अब उसके आस पास नहीं है एक खाली पन उसके चारों ओर पसरा हुआ है और वह मोबाईल वहीँ छोड़ कर उदासी के प्याले में डूब गयी है गहरे बहुत गहरे जिसमे से बाहर आने कि कोई इच्छा ही बाकी नहीं रही वह खो जाना चाहती है गुम हो जाना चाहती है भूल जाना चाहती है सब कुछ लेकिन उसके होंठ,उसका मन अभी भी उसका नाम पुकार रहे हैं .
उसके होंठो पर अपना नाम 
उसके हाथों में अपना हाथ 
उसकी आँखों में अपना अक्स 
उसकी सांसों में अपनी खुशबू 
सागर कि लहरों सा लहराता उसका प्यार 
और वह उस सागर में डूबते उतरते कहीं गहरे डूबती जा रही थी। 
   

बुधवार, 28 नवंबर 2012

सगा सौतेला




ट्रिंग ट्रिंग फ़ोन कि घंटी कि आवाज़ ने सुधीर को अख़बार छोड़ कर उठने को विवश कर दिया.
हलो सुधीर भैया ब्रज बोल रहे हैं राधा भाभी नहीं रहीं. 
अरे कब कैसे? अच्छा बहुत दिनों से बीमार थीं क्या हुआ था?नहीं नहीं मुझे नहीं पता ठीक है कब ले जायेंगे? पूछते पूछते सुधीर ने हिसाब लगाया चार घंटे का सफ़र ट्रेन तो मिलेगी नहीं अभी कोई, कार से भी तुरंत निकलना होगा. अच्छा सविता, सुधा और बाकियों को खबर कर दी है ठीक है हम पहुँचते हैं. फोन रखकर पलट कर देखा नेहा प्रश्नवाचक मुद्रा बनाये खडी थी.
भाभी नहीं रहीं,अभी निकलना होगा.
कब? हमें तो कभी कोई खबर ही नहीं की.ना चाहते हुए भी नेहा का स्वर कसैला हो गया.सुधीर ने इसे महसूस तो किया पर इसे नज़रंदाज़ करना ही  उचित समझा. तुम चलने कि तैयारी  करो कल शाम तक लौटना होगा. में ऑफिस का इंतजाम करके घंटे भर में आता हूँ.कहते हुए सुधीर जवाब का इंतजार किये बिना कमरे से निकल गया. 

कार चलाते हुए सुधीर बिलकुल खामोश था.नेहा ने एक बार उसकी ओर देखा फिर बाहर देखने लगी.सुधीर के दिमाग में पिछले पचास सालों कि घटनाएँ चलचित्र कि भांति चल रहीं थीं. 
राधा भाभी याने उसके सौतेले बड़े भाई गोपाल की पत्नी.सुधीर के पिताजी कि पहली पत्नी के बेटे थे गोपाल भैया.उनकी माँ कि मौत के बाद सुधीर के पिताजी ने दूसरी शादी की थी. उनसे सुधीर और उनकी दो छोटी बहनें थीं. सुधीर कि उम्र जब सात आठ बरस की रही होगी जब पिताजी चल बसे तब तक गोपाल भैया कि शादी हो चुकी थी. घर में कमाने  वाले गोपाल भैया अकेले थे. छोटा सा जमीन का टुकड़ा और उस पर गुजारा करने वाले गोपाल भैया के तीन बच्चों समेत नौ लोगों का परिवार. गाँव में खुद का लम्बा चौड़ा मकान था सो जगह कि कमी नहीं थी.लेकिन राधा भाभी को उनका वहां रहना बिलकुल ना सुहाता था और बहू होते हुए भी माँ के लिए उनके ताने उलाहने हमेशा चलते रहते थे. अपने बढ़ते परिवार को देखते हुए सौतेले भाई द्वारा संपत्ति में हिस्सा मांग लेने का भय उन्हें हमेशा सताता रहा.फिर दो-दो बहनों कि शादी और उसके बाद के खर्च खुद का ही गुजारा मुश्किल से होता था .अंततः माँ को तीनों बच्चों को लेकर नानाजी के पास आना पड़ा. 

नानाजी अपनी विधवा बेटी और उसके बच्चों को पालने का जतन करते रहे. अचार बड़ी पापड़ बनाते और लोगों के कपडे सिलते माँ ने किसी तरह सुधीर को ग्रेजुएशन करवाया. एक बहन कि शादी नानाजी के रहते हो गयी थी. उनके गुजर जाने के बाद छोटी बहन कि शादी  और घर कि जिम्मेदारी सुधीर पर आन पड़ी. इधर उधर कि छोटी मोटी नौकरी करते हुए वह माँ का संबल बना रहा. इस बीच गाँव से नाम मात्र का ही संपर्क रहा. गोपाल भैया के यहाँ से परिवार बढ़ने कि ख़बरें आती रहीं.उनका तीन लड़कियों और तीन लड़कों का समृद्ध परिवार हो गया. लेकिन उनकी समृध्धि बढ़ने के समाचार गाँव से आने वाले किसी रिश्तेदार से ही मिलते. 
भौजी गोपाल भैया ने नदी के पास एक और खेत खरीद लिया. इस साल धान कि फसल खूब लहलहाई है जैसी ख़बरें देकर रिश्तेदार अपना धर्म निभा लेते.माँ ऐसी ख़बरों पर निर्विकार ही बनीं रहतीं .वह खबर देने वालों कि मंशा भी जानती थीं और गोपाल भैया से खबर ना मिलने का मतलब भी,पर वह खुद इतनी असहाय थीं कि कुछ भी प्रतिक्रिया व्यक्त करके रिश्ते के जर्जर पड़े इस धागे को तोड़ देने का साहस ना कर पातीं. 
अचानक गाड़ी के सामने भैंस के आ जाने से सुधीर ने जोर से ब्रेक लगाया.इसी के साथ ही विचारों कि रफ़्तार भी टूट गयी. उसने नेहा को देखा वह सामने टकराते टकराते बची थी. 
सीट बेल्ट लगा लो इस सड़क पर ऐसे ही अचानक ब्रेक लगाने पड़ते हैं.सुधीर ने कहा. गाड़ी ने फिर गति पकड़ी और सुधीर के विचारों ने भी. 

सुधीर कि बैंक में नौकरी लग गयी.छोटी बहन कि शादी हो गयी पर गोपाल भैया के यहाँ से कोई ना आया.शायद उन्हें डर था कि सामने पड़ने पर कोई अन्य खर्च सर पर ना मढ़ दिया जाये .हाँ बहन के पैर पखारने के लिए एक हल्का फुल्का गहना और दहेज़ के पांच बर्तन जरूर आये जिन्हें स्वीकार कर लिया गया. 
सुधीर कि शादी कि खबर गोपाल भैया को काफी पहले से दे दी गयी थी साथ ही बारात में घर के बड़े कि हैसियत से चलने का आग्रह भी था. तब इतने सालों में गोपाल भैया भाभी पहली बार आये थे और बारात कि सारी व्यवस्थाएं भी संभाली थीं. भाभी माँ के साथ काम में हाथ बंटाती रहीं. पुरानी बातें उकेरने का ना समय था ना किसी ने कीं.भाभी ने ही घर कि बड़ी बहू के रूप में नेहा कि मुंह दिखाई की.

सुधीर की नौकरी से गोपाल भैया और भाभी को अब ये तसल्ली तो थी की अब वो उन पर बोझ तो नहीं बनेंगे. बहनों की जिम्मेदारियां निबट ही गयीं थीं. बाकी रिश्तेदारी व्यवहार निभाने में सुधीर अब सक्षम था.लेकिन सम्बन्ध अभी भी गहरे नहीं हुए थे.शायद पुश्तैनी जायदाद में हिस्से की आशंका उनके मन के किसी कोने में दुबकी हुई थी,जो उन्हें सुधीर से एक दूरी बनाये रखने को विवश कर रही थी. 

इसके बाद जिंदगी बहुत आसान तो ना थी पर एक तसल्ली थी एक अच्छी नौकरी और गोपाल भैया से पत्रों के माध्यम से सतत संपर्क. अब गोपाल भैया माँ को कभी कभार गाँव आने को लिख देते थे. माँ भी ब्याह कर तो उसी घर में गयीं थीं सो वे भी वहां जाने की हुलस दबा ना पातीं और साल में महिने पंद्रह दिनों के लिए गाँव चली जातीं. लेकिन वहां भी अपने आने जाने का खर्च रिश्तेदारी के व्यवहार खुद ही निभातीं इसलिए वो गोपाल भैया पर कोई भार भीं ना थीं.वहां उन्हें अब यथोचित सम्मान मिलता था. 

सुधीर ने अपनी सूझबूझ से अपनी गृहस्थी बना ली. नेहा भी अपनी चादर देख कर ही अपनी उमंगों के सिरे संभाले रही.सीमित आय में बच्चों की अच्छी देखभाल और माँ का यथोचित सम्मान के साथ जीवन के छोटे मोटे उतार चढाव वे बखूबी पार करते रहे. उधर गोपाल भैया तीन- तीन बेटियों की जिम्मेदारी उठाने में खुद को अकेला पाते रहे ओर किसी तरह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने के लिए गरीब कम पढ़े लिखे लड़कों से बेटियों की शादी करते रहे.सगाई होने तक सुधीर को कोई खबर तक ना दी जाती हाँ शादी में सपरिवार आने का आग्रह जरूर होता. शायद गोपाल भैया अपनी बढ़ती जिम्मेदारियों में खुद को अकेला पा कर सुधीर को उसकी जिम्मेदारियों के साथ अकेला छोड़ देने पर शर्मिंदा थे. इसलिए अपनी जिम्मेदारियों के लिए उससे सलाह या मदद माँगने का साहस ना जुटा पाते.

वक्त अपनी रफ़्तार से चल रहा था कि थोडा रुक जाते चाय वगैरह पी लेते,नेहा की आवाज़ में उसे वर्तमान में ला दिया.पिछले ढाई घंटों से वह बिना बोले अपने ही विचारों में गुम गाड़ी चला रहा था .नेहा कितनी बोर हो रही होगी ये ख्याल तो उसे आया ही नहीं. वह थोडा असहज हो गया. नेहा ने उसे कभी भी भाई भाभी के व्यवहार का उलाहना नहीं दिया और आज भी बिना किसी शिकवे शिकायत के पिछले ढाई घंटों से इस रिश्ते की मूकता के बावजूद उस के साथ चली जा रही है. लेकिन सुधीर के मन में यह रिश्ता पूरी मुखरता के साथ मौजूद है.वह एकाएक नेहा के प्रति अधिक सतर्क हो गया. 

चाय के साथ कुछ खाओगी लाऊं? उसने पूछा. 
हाँ देखो क्या है अभी कुछ खा लेते हैं वहां जा कर पता नहीं कितनी देर लगे. 
सुधीर चौंक कर जैसे यथार्थ में उतरा भैया भाभी तो अब तक उसके साथ ही थे .हाँ हाँ अब तक तो सारे रिश्तेदार भी आ गए होंगे .
नहीं सुधा की ट्रेन तो तीन बजे तक आएगी तब तक तो रुकेंगे ही. 
फिर तो हम समय से पहुँच ही जायेंगे .
आप भी कुछ खा लो सब काम होते होते शाम हो जाएगी कब तक भूखे रहोगे .नेहा ने कहा 
सुधीर की इच्छा नहीं थी कुछ खाने की घर में ग़मी हो गयी है क्रियाकर्म के पहले कैसे कुछ खा ले. आज जाने क्यों वह जुडाव महसूस कर रहा था. नहीं मेरी इच्छा नहीं है उसने बात टाली.
अरे इच्छा अनिच्छा क्या  है नहीं खाओगे तो एसिडिटी हो जाएगी. 
सुधीर ने बेमन से चाय के साथ ३-४ बिस्किट खाए.

कार में बैठते ही सुधीर ने सी डी प्लेयर ऑन कर दिया .नेहा के अकेलेपन का एहसास था उसे. 
भाभी की बीमारी की कभी खबर नहीं मिली.कुछ बताया बृज भैया ने क्या हुआ था?
हाँ बीमार थीं कई दिनों से,वही पेट की तकलीफ अल्सर था. खाना पीना सब छूट गया था. 
हूँ खुद बीमार थीं,बहुओं से तो कोई उम्मीद थी नहीं बीमारी में जाने कौन देखभाल करता होगा? 
क्यों बहुओं का क्या?? सुधीर ने पूछा.
पिछले महिने कुसुम दीदी मिलीं थीं बता रहीं थीं की भाभी बेटे बहुओं के झगड़े से बहुत दुखी थीं. 
बहुओं का तो ठीक है लेकिन बेटों का क्या? सुधीर जानने को उत्सुक हुआ.
तीनों बेटों में बिलकुल नहीं बनती. जायदाद ओर काम के बंटवारे को लेकर रात दिन झगड़े होते हैं. नेहा ने कहा.
तुमने कभी बताया नहीं?
अब बताती भी तो क्या कर लेते हम? फिर भैया ने भी तो तुम्हे कभी कुछ नहीं बताया. जब वो ही परायापन पाले हुए हैं तो हम जानकार कर भी क्या लेते? 
सुधीर समझ रहा था.गोपाल भैया से उसका सौतेला रिश्ता था और इस सौतेलेपन का कारण पुश्तैनी जायदाद ही था.इसमे हिस्सा ना देने के लालच में ही भैया भाभी ने दूरियां बढ़ाईं थीं. वैसे तो उनमे कोई वैचारिक मतभेद नहीं था एक दूसरे के लिए यथोचित मान भी था. गोपाल भैया अब कैसे बताते की इसी जायदाद के लिए सगे भाइयों में सर फुटोव्वल हो रही है.भैया भाभी की अजीब स्थिति थी किसकी तरफ बोलें? 

पांच साल पहले बेटे की शादी के लिए घर की पूजा में शामिल होने सुधीर सपरिवार गाँव गया था.पूरे गाँव में पता नहीं कैसे ये खबर फ़ैल गयी कि सुधीर जायदाद में हिस्सा लेने आया है. गोपाल भैया भी तब तक जायदाद के लिए बेटों के झगड़ों से तंग आ गए थे. उनके बीच बंटवारा भी वो कर देते लेकिन सगे भाई एक दूसरे के लिए अपना दिल बड़ा करने को तैयार नहीं थे. हर कोई मकान के बड़े हिस्से और खेती की बड़ी जमीन के लिए अड़ा था. गोपाल भैया से भी लड़कों की इसी बात को लेकर तकरार होती रहती और गोपाल भैया उन्हें ये कह कर चुप करा देते की अभी तो हम सौतेले भाइयों में बंटवारा नहीं हुआ पहले वो होने दो फिर हमारे हिस्से में से तुम्हे हिस्सा मिलेगा. तब भैया ने कहा भी था तुम्हारा भी हिस्सा है इस जायदाद में तुम अपना हिस्सा ले लो.
सुधीर भावुक हो गया था उसका गला रुंध गया बहुत देर तक तो वह चुप ही रहा फिर बोला, नहीं गोपाल भैया में क्या करूँगा हिस्सा लेकर? मेरा खुद का मकान है. हिस्सा ले भी लिया तो यहाँ आ कर तो रहूँगा नहीं. और ये आपकी मेहनत से बनी जायदाद है मैंने तो कभी खेती बारी देखी नहीं और इसे बेचने की भी मेरी इच्छा नहीं है. ताला पड़ा रहेगा इससे तो अच्छा है की आप लोगों की चहल-पहल रहे यहाँ.
सुधीर ने ये बात कभी नेहा को नहीं बताई थी.हालाँकि नेहा के संतोषी स्वाभाव से वाकिफ था वो पर पता नहीं क्यों? 
सुधीर और गोपाल भैया के बीच रिश्ते का सौतेलापन इस जायदाद की हिस्सेदारी की आशंका ही थी,जिसमे गोपाल भैया की अपनी सीमित चादर की लाचारी थी जो सुधीर की आर्थिक असहायता को देखते हुए बार बार अपना सर उठा लेती थी. वरना तो इस बारे में उनकी कभी कोई अनबन नहीं हुई थी. समय के साथ इस आशंका ने भी दम तोड़ दिया था और अब जब सगे भाइयों ने दिल का सौतेलापन उजागर कर दिया गोपाल भैया सौतेले भाई के सगेपन से विभोर हो गए. 
इस वार्तालाप के बाद दोनों बहुत देर तक खामोश बैठे रहे .सुधीर का मन भीगा था अपनेपन की नमी पा कर तो गोपाल भैया की आँखें नम थीं सौतेले भाई के बड़प्पन से.

कब गाँव की सरहद पर पहुँच गए पता ही नहीं चला.नेहा ने सी डी प्लेयर बंद कर दिया और सिर का पल्लू ठीक करने लगी तब बगल में होती हलचल से उसका ध्यान गया की गाँव आ गया.घर से थोड़ी दूर गाड़ी रोक कर दोनों उतरे नेहा ओरतों के बीच चली गयी और वह भैया के पास. 
भैया बहुत कमजोर दिख रहे थे.वह उनके पास जाकर बैठ गया और अपना हाथ उनके हाथ पर रख दिया .सुधीर को देखते ही गोपाल भैया उससे लिपट कर फफक पड़े. तीनों बेटे क्रियाक्रम की तैयारियां करवा रहे थे.भाभी की मांग भरने जब भैया उठे तो सुधीर ही उन्हें सहारा दे कर ले गया. भाभी को देख सुधीर की आँखें भर आयीं. बहुत गहरा रिश्ता तो नहीं रहा उनसे लेकिन उन्होंने और सुधीर ने रिश्ते की मर्यादा हमेशा रखी. कभी किसी ने किसी को आहत करने वाली बात नहीं कही.बचपन तो सुधीर को याद नहीं पर जब से होश संभाला भाभी को खुद पर विश्वास करता ही पाया. 
भैया  इतने कमजोर हो गए थे की अर्थी को कंधा देने पर लड़खड़ा गए,तब सुधीर ने ही उन्हें सहारा दिया और उनके कंधे पर रखे पाए को अपने कंधे का सहारा दिया. सभी रिश्तेदार बारी बारी से अर्थी  को कन्धा देते रहे और सुधीर गोपाल भैया को सहारा देते चलता रहा.आज वह उनसे एक अनोखा जुडाव महसूस कर रहा था.
चिता पर भाभी का शव देख कर भैया खुद को संभाल ना सके और गिर पड़े जब पंडित ने मुखाग्नि देने के लिए बड़े बेटे को बुलाया तो गोपाल भैया जैसे अचानक सचेत हुए और हाथ उठा कर बड़के को वहीँ रोक दिया.फिर सुधीर की ओर मुखातिब हो कर बोले अग्नि तुम दोगे.
रिश्तेदारों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी तीन तीन लड़कों के होते,लेकिन भैया ने दृढ़ स्वर में कहा तुम सब लड़कों से बढ़ कर हो.भाभी भी तो माँ होती है तुम ही चिता को अग्नि दोगे. फिर रोते हुए बोले तीन तीन बेटों के होते तुम्हारी भाभी ने बुढ़ापे में जो दुःख झेले हैं उसके बाद इन बेटों ने उनके अंतिम संस्कार का अधिकार खो दिया है. उनके लिए जमीन जायदाद माँ बाप की सुख शांति,उनकी सेवा से ज्यादा बड़े हो गए. तुम्हारी भाभी आखरी समय तक तुम्हे याद करके रोती रही कहती रही ऐसे तीन के बजाय भगवान सुधीर जैसा एक संतोषी बेटा ही दे देता तो बुढ़ापे में ऐसी गत ना होती. तुमसे मिलना चाहती थी वो तुमसे माफ़ी मांगना चाहती थी जिस जायदाद के मोह ने तुम्हे हमसे पराया कर दिया उसी जायदाद ने हमारे बेटों से हमें पराया कर दिया. लेकिन तुमसे आँख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और ऐसे ही चली गयी. 
वापसी में सुधीर पहले से कहीं अधिक खामोश था चिता की लपटों ने रिश्तों में बचे सौतेलेपन को जला कर राख कर दिया था और वह रिश्ते की गर्माहट को महसूस कर रहा था. उसने भाभी को खोया था लेकिन गोपाल भैया को पा लिया था.देर से ही सही. 
कविता वर्मा 

शनिवार, 17 नवंबर 2012

एक नयी शुरुआत

ड़ोस से आती तेज़ आवाजों ने कान उधर लगाने को विवश कर दिया.हालांकि बात कुछ समझ नहीं आ रही थी,लेकिन गुप्ता भाईसाहब किसी पर जोर जोर से गुस्सा हो रहे थे.बहुत जोर देने पर भी कुछ समझ ना आया तो दरवाज़ा बंद कर दिया,लेकिन दिमाग के पट बंद नहीं हुए. आखिर क्या हुआ होगा?छोटा सा सुखी परिवार है गुप्ताजी का.पति पत्नी,बेटा बहु ओर बेटी स्नेहा. बेटी कि शादी नहीं हुई है वह बैंक में नौकरी करती है.उसकी शादी ही बस एक जिम्मेदारी है.कहीं स्नेहा का ही कोई अफेयर तो नहीं है?मन ने कयास लगाना शुरू कर दिया. 
स्नेहा कि उम्र करीब पच्चीस वर्ष है दिखने में तो अच्छी है ही साथ ही नौकरी से आये आत्मविश्वास से लबरेज़ वह लड़की कभी बड़ी व्यव्हार कुशल लगती है तो कभी अपनी उपलब्धि पर गर्वित.उसने अपनी राह हमेशा खुद तलाशी है.भाभीजी भी यही कहती हैं ये लड़की अपने मन की ही करती है.
कुछ दिन गुप्ताजी के यहाँ शांति रही लेकिन फिर कभी सुबह तो कभी शाम भाईसाहब की ऊँची आवाज़ सुनाई देने लगी. हालाँकि दरवाजे खिड़की बंद करके घर के तूफ़ान को घर में रोकने की बहुत कोशिश की जाती लेकिन तूफ़ान भला किसी बंधन में बंधता है क्या? शायद इन्ही के चलते भाभीजी भी आजकल कम ही दिखाई देतीं.खैर अगर दिखती भी तो उनसे सीधे सीधे कुछ पूछना तो वैसे भी ठीक नहीं लगता. 
एक शाम उनकी बहू शालिनी सिरदर्द की दवा लेने आयी तो मैंने पूछ लिया किसे है सिरदर्द?
मम्मीजी को आजकल उन्हें तेज़ सिरदर्द बना रहता है.
अरे ऐसा क्यों?क्या बात है?घर में सब ठीक तो है ना?चाह कर भी रोक नहीं पाई खुद को.
क्या बताऊँ आंटीजी आप तो सुनती ही होंगी ना कैसा तूफ़ान सा छाया रहता है आजकल.उसने गोलमोल सा जवाब दिया लेकिन पीछा छुड़ाने का सा भाव नहीं था उसमे. 
इसी से पता चलेगा आखिर बात क्या है?उसे बैठाते हुए प्यार से पूछा हाँ सुनती तो रहती हूँ लेकिन बात क्या है समझ नहीं पाई हूँ.
शालिनी  भी इतने दिनों के तनाव को कहीं उंडेल कर हल्की हो जाना चाहती थी.उसने जो बताया उसका सार यही था की स्नेहा किसी लडके को पसंद करती है और उसी से शादी करना चाहती है लेकिन गुप्ता जी को लडके की नौकरी और हैसियत अपने स्तर की नहीं लगती इसलिए वे इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं.स्नेहा के लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते आ रहे हैं लेकिन वह किसी के लिए राज़ी नहीं है,और गुप्ताजी इसी साल उसकी शादी कर जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं.
कुछ दिनों बाद इस तूफ़ान की तीव्रता कम होते होते थम सी गयी.मन में फिर ये जानने की तीव्र उत्कंठा हुई की आखिर हुआ क्या?कौन माना पिता या बेटी?
ये शांति तूफ़ान से पहले की थी.एक शाम गुप्ताजी  के घर कुछ मेहमान आये शायद स्नेहा के रिश्ते के लिए. लेकिन मेहमानों के जाने के बाद एक बार फिर तूफ़ान ने सर उठाया.उस दिन तो स्नेहा की भी आवाज़ सुनाई दी. 
शालिनी ने ही बताया की स्नेहा जिस लडके को पसंद करती थी वह और उसका बड़ा भाई मिलने आये थे. लेकिन पापाजी ने लडके के बड़े भाई से सीधे पूछ लिया की तुम्हारा भाई कमाता कितना है?हमारी स्नेहा बचपन से जिस ऐशो आराम में पली है क्या उसकी तनख्वाह से उसे वह सारे ऐशो आराम दे पायेगा?लडके का भाई तो वहीँ भड़क गया.उसने पापाजी से कह दिया आपसे ऐसी बेहूदगी की उम्मीद नहीं थी.लेकिन अब में ये देखूंगा की आपकी बेटी की शादी मेरे भाई से ना हो पाए.
लडके ने कुछ नहीं कहा? 
वह क्या कहता?अपने भाई का मान तो उसे रखना ही था और वह खुद भी तो ऐसे प्रश्न से आहत ही हुआ होगा.हाँ बहुत बड़ी नौकरी नहीं है उसकी लेकिन स्नेहा और उसकी संयुक्त तनख्वाह से अच्छा खासा जीवन बिता सकते थे.लेकिन लगता है पापाजी ने उन्हें मिलने इसीलिए बुलाया था की उनका अपमान करके इस रिश्ते के सारे रास्ते बंद कर सकें.और स्नेहा?मुझे सच में तरस आया उस पर.
जब ये बातें हुईं स्नेहा वहां नहीं थी तब लडके के भाई के भड़कने का कारण उसे भी समझ नहीं आया.उनके जाने के बाद जब स्नेहा ने फोन लगाया तब उसे सारी बात पता चलीं.लडके ने उसे भी खूब खरीखोटी सुनाई और कहा जिस घर में उसका और उसके भाई का अपमान हुआ है वहां वह हरगिज़ रिश्ता नहीं करेगा,और अब बात दोनों के बीच की ना होकर परिवार के सम्मान की हो गयी है. 
स्नेहा तो दोनों तरफ से ठगी गयी.आजकल उसके और पापाजी के बीच रोज़ ही बहस हो रही है.स्नेहा कहती है पापाजी ने उनका अपमान किया है इसलिए उन्हें उनसे माफ़ी मांगना चाहिए उसका तर्क है अगर ऐसा प्रश्न कोई लड़की वाला भाई के लिए करता तो क्या पापाजी वहां रिश्ता करते?उसने कह दिया है की शादी करेगी तो वहीँ नहीं तो कहीं नहीं. 
कई महीनों तक रुक रुक कर वाक् युद्ध चलता रहा. शालिनी ही कभी छत पर कपडे सुखाते तो कभी सब्जी लेते बताती की उस लडके ने स्नेहा से मिलना बात करना बिलकुल बंद कर दिया है.वह फोन लगाती है लेकिन वह फोन ही नहीं उठाता या फोन बंद कर देता है. वहां की खीज स्नेहा घर पर उतारती है.
आंटीजी घर में शांति से सांस लेना मुश्किल हो गया है. स्नेहा की तकलीफ भी देखी नहीं जाती.वह ऐसे चीख चिल्ला लेती है लेकिन सच तो ये है की वह टूटती जा रही है.वह लड़का एक बार भी बात करने को तैयार नहीं है.कभी टेलिफोन बूथ से फोन लगाती है तो उसकी आवाज़ सुन कर काट देता है.
मम्मीजी भी पिता और बेटी के बीच पिस रहीं हैं. पापाजी स्नेहा के बिगड़ने का दोष उन्हें देते हैं. स्नेहा को रोते चीखते चिल्लाते देख मम्मी का कलेजा फटता है लेकिन वह क्या करें?ना पापाजी झुकने को तैयार हैं ना स्नेहा मनाने को.वैसे भी बात अब माफ़ी मांगने की हद से बहुत आगे बढ़ चुकी है.उस लड़के ने स्नेहा को दिल से बिलकुल उतार दिया है लेकिन स्नेहा इसे समझ नहीं पा रही है.उसके मन का विद्रोह उसे कुछ हद तक  आत्म हंता बना रहा है. 
एक दिन फिर गुप्ताजी के यहाँ खासी रौनक दिखी. मेहमान आये बातचीत ठहाकों की आवाजें आती रहीं.स्नेहा को देखने वाले आये थे.दूसरे दिन गुप्ता भाभीजी खुद मिठाई लेकर आयीं.बहुत खुश थीं.लड़का घर परिवार सब बहुत अच्छा है.अच्छी नौकरी,खुद का फ्लैट स्नेहा तो राज़ करेगी. 
स्नेहा को सब पसंद है?मेरी जिज्ञासा ने मुझे चुप ना रहने दिया. 
हाँ हाँ उसी ने तो फोटो और सब जानकारियां देख कर हाँ की थी सच में भाभीजी जो हुआ सो हुआ अंत भला तो सब भला. 
स्नेहा में आये इस बदलाव ने मुझे अचम्भित कर दिया.ऐसा क्या हुआ की वह शादी के लिए तैयार हो गयी?क्या उसने परिस्थितियों से समझौता कर लिया?समझ लिया की वह लड़का अब एक मृगतृष्णा से ज्यादा कुछ नहीं है.चलो अच्छा ही हुआ मैंने भी एक संतुष्टि की सांस की. 
एक दोपहर शालिनी हडबडाते हुए आयी आंटीजी पता नहीं क्या होने वाला है?मेरा मन बहुत घबरा रहा है समझ नहीं आ रहा है क्या करूँ
अरे लेकिन हुआ क्या?में फिर किसी अनहोनी से आशंकित हुई.
आंटीजी आपको पता है स्नेहा ने इस रिश्ते के लिए क्यों हाँ की?बदला लेने के लिए.
हाँ आंटीजी हम सबसे पापाजी से बदला लेने के लिए वह इस शादी के लिए तैयार हुई है.अब कहती है शादी वह भले ही कर लेगी लेकिन उस लड़के से कोई रिश्ता नहीं रखेगी.सगाई के बाद से कितनी ही बार लडके और उसके घरवालों के फोन आये उसने एक बार भी बात नहीं की.आंटीजी शादी की सारी तय्यारियाँ हो गयीं हैं पंद्रह दिन रह गए हैं.लडके वाले उसकी पसंद जानने के लिए फोन करते हैं तो मुझे उनसे बात करनी पड़ती है.में ही अपने हिसाब से सब बता देती हूँ.यहाँ तक की हनीमून के लिए जगह होटल सब बुक हो चुके हैं और ये है की जिद पर अड़ी है कहती है आप सब अपने मन की कर लो लेकिन जब में अपने मन की करूंगी तब जवाब देते रहना.
आंटीजी अब तो लडके वाले भी पूछने लगे हैं स्नेहा इस रिश्ते के लिए राजी तो है ना?अब आजकल लड़कियां इतनी भी शर्मीली नहीं होती की बात ही ना करें. सब उसे समझा समझा कर थक गए लेकिन वह तो बस बदला लेना चाहती है.मुझे तो लडके वालों के लिए दुःख होता है.वह उनका इकलौता लड़का है.कितने अरमान हैं उनके बहू के लिए फिर उनका तो कोई दोष ही नहीं है. ये शादी के बाद जो करेगी उन पर क्या बीतेगी? 
समस्या तो वाकई विकट थी लेकिन हल क्या था?लडके वालों को कुछ बताया भी नहीं जा सकता था और ना ही चुप रहा जा सकता था.आखिर स्नेहा शादी के लिए खुद ही तैयार हुई थी. शालिनी का परेशान होना भी स्वाभाविक था.अपने मुंह से अपनी ननद के बारे में लडके वालों को कैसे बताये और क्या बताये? 

आज गुप्ता जी के यहाँ सुबह से ही बड़ी हलचल है. आज स्नेहा शादी के बाद पहली बार आने वाली है.मेरा दिल धड़क रहा है पता नहीं आज क्या हंगामा होगा?शायद उसका पति उसकी शिकायत करे.उसे वापस यहीं छोड़ जाये.पता नहीं हनीमून में स्नेहा ने क्या क्या तमाशे किये होंगे? 
गाड़ी रुकी तो में परदे की ओट से स्नेहा को देखती रही. गुलाबी शिफान की साड़ी मोतियों का सेट पहने हंसती हुई वह गाड़ी से उतरी और अपने पति का हाथ थामे दरवाजे तक पहुंची. भाभीजी ने आरती उतारकर बेटी दामाद की आगवानी की.उसकी हंसी वातावरण में घुल कर मेरे मन की हर आशंका को मुंह चिढ़ा रही थी.स्नेहा दो दिन रही उसकी खुशियों से पूरा घर महक रहा था. एक दिन बाहर दिखी तो उसने नमस्ते किया.उससे हालचाल पूछते में उसे तौलती रही. उसकी हंसी होंठों से आँखों तक खिंची थी.मेरी सारी आशंकाएं व्यर्थ थीं. स्नेहा सच में बहुत खुश थी. लेकिन उसने समझोता कैसे किया ,बदला लेने का ख्याल कैसे छोड़ा या पति के प्यार ने उसे पिघला दिया? में स्नेहा के लिए खुश थी लेकिन अपने सवालों के जवाब चाहती थी.  
स्नेहा   के जाने के दो दिन बाद खुद ही शालिनी को आवाज़ दे कर बुलाया.
आंटीजी ये सब समय का खेल है. शालिनी ने बताया स्नेहा ने तो बदला लेने की जिद ठान ली थी.शादी के आठ दिन पहले उसने फिर उस लड़के को फोन किया.उस दिन उसने फोन उठाया लेकिन बात उसकी मम्मी और भाभी ने की.उन्होंने स्नेहा को जाने क्या क्या कह डाला.यहाँ तक की हम लोग उसकी शादी की जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं इसलिए चाहते हैं की वह खुद ही कोई लड़का फांस ले इसलिए उनके लडके के पीछे पड़ी है .स्नेहा सब चुपचाप सुनती रही.
फोन रखने के बाद वह बहुत देर तक सन्नाटे की सी स्थिति  में रही फिर बोली भाभी वह वहीँ था जब उसकी मम्मी ओर भाभी मुझसे ये सब बातें कह रहीं थीं.पापा ने जो किया उसमे मेरा तो कोई दोष नहीं है ना?.उसने इसे परिवार की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर मुझे सजा दी.वह अपनी और अपने परिवार की प्रतिष्ठा बचाने में इस कदर डूब गया कि ना उसे मेरे सम्मान की परवाह है ना मेरी भावनाओं की ना वह ये सोच रहा है की मुझ पर क्या बीत रही है.इतने महीनों से वह सिर्फ और सिर्फ खुद के और खुद के परिवार के बारे में सोच रहा है. उसके लिए तो में जैसे हूँ ही नहीं.में मेरी गलती ना होते हुए भी उससे बात करने कि पहल कर रही हूँ और वह तो मेरे अस्तित्व को ही नकार चुका है. उसे एक बार भी मेरी चिंता नहीं हुई. मानती हूँ पापा ने गलत किया और अब वह मुझसे शादी नहीं कर सकता लेकिन एक बार बात करके वह यही बात शांति से कह तो सकता था.एक बार पूछ तो सकता था कि बिना किसी गलती के में कैसी सजा भुगत रही हूँ.कैसे सब झेल रही हूँ,अपनों से लड़ते हुए कैसे जी रही हूँ?

भाभी  वह जीवन के उतार चढाव में कभी मेरा साथ दे भी पायेगा? मेरे सम्मान कि रक्षा कर भी पायेगा?में क्यों उसके लिए अपनों से लड़ रही हूं ?उन्हें दूसरों के सामने शर्मिंदा करना चाहती हूँ. नहीं भाभी अब में उसके लिए अपने परिवार से नहीं लडूंगी. पापा ने गलत किया लेकिन उसकी नज़रों में मेरी अहमियत जानने के लिए ये सही ही था. भाभी वह मेरे दिल से तो कभी नहीं निकल पायेगा लेकिन अब वह एक कड़वी याद बन कर  मेरे दिल में रहेगा.अपने प्यार को पाने और बचाने के लिए झुकना एक बात थी लेकिन मेरे लिए मेरा आत्म सम्मान भी उतना ही जरूरी है. भाभी अब में अपनी जिंदगी कि एक नयी शुरुआत करूंगी .कह कर शालिनी चुप हो गयी.

आंटीजी स्नेहा ने जिस शिद्दत से प्यार किया था उस लड़के के व्यवहार ने उसे उतना ही तोड़ दिया .उस दिन जैसे उसकी आँखे खुली और वह अपने भविष्य को एक नए नज़रिए से देखने लगी उस लड़के के प्यार को उसने अपनी जिंदगी बनाया था लेकिन उस दिन उसने अपनी जिंदगी को उस प्यार के अलावा अपने आत्म सम्मान से भी जोड़ कर देखा।

स्नेहा ने सही समय पर एक सही कदम उठाया था उसने सच में समझदारी से एक नयी शुरुआत कि थी और मेरा मन उसे इस नयी शुरुआत के लिए आशीष दे रहा था. 
कविता वर्मा. 

बुधवार, 7 नवंबर 2012

...और क्या करती !


शोभा ,अरे ये तो शोभा है.रोड के उस पार दुकान से निकलती महिला को देखते ही में चिंहुक उठी. हाथ उठा कर उसे आवाज़ देने को ही थी कि अपने आस -पास लोगों की उपस्थिति का भान होते ही रुक गयी. सिर्फ लोगो की उपस्थिति ही नहीं बल्कि शोभा का वो रुखा व्यव्हार भी याद आ गया जिसने मन कसेला कर दिया. में वहीँ ठिठक गयी.इतनी देर में शोभा भी दूर जा चुकी थी. मैंने भी घर की राह ली लेकिन पुरानी यादों ने फिर दिमाग में घर कर लिया. 
शोभा,वह शोभा ही थी न? पर वह यहाँ कैसे आयी?वह भी अकेले ,इंदौर छोड़कर जयपुर कब आयी?वहां का मकान,उसके पति का बिजनेस था इसलिए तबादला होने का तो सवाल ही नहीं उठता. 

घर पहुँच कर मुंह हाथ धोकर अपने लिए चाय बनाई और पेपर लेकर बाहर झूले पर बैठ गयी. शाम की चाय मै अकेले ही पीती हूँ ,पर झूले की हिलोरें ओर दुनिया जहान की खबरे मेरे साथ होती हैं. लेकिन आज पेपर हाथ में रखा ही रह गया और मन यादों की गलियों में भटकते हुए दस साल पीछे  इंदौर पहुँच गया. 

इंदौर में शहर से दूर एक कालोनी में प्लाट लिया था और जैसे तैसे कर उस पर अपना एक छोटा सा आशियाना भी बना लिया. पति दो बेटियां और मै छोटा सा खुशहाल परिवार.बहुत बड़ी कालोनी में गिनती के पंद्रह बीस मकान थे. शोभा का घर मेरे घर से बीस पच्चीस प्लाट छोड़ कर पहला मकान था .इस मायने में दूर ही सही पर हम पडोसी थे.पूरी कालोनी ही एक संयुक्त परिवार की तरह थी जिसमे सब एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखते थे.  शोभा उसके पति ओर उसकी भी दो बेटियां. उसका मकान मेन रोड पर था इस वजह से काफी लोगों का उनके यहाँ आना जाना था. शोभा के स्वागत भाव के तो सभी कायल थे. उसके पति मुकेश का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था .ऊँचा कद,मजबूत काठी ,बात करते हुए हास्य का पुट देना .वह युवाओं के चहेते मुकेश भैया थे और शोभा भाभी. हर शाम घर में, मंदिर में महफ़िलें जमती जिनमे हंसी ठठ्ठा ,चाय नाश्ते का दौर चलता रहता जो देर रात तक जारी रहता.मुकेश को पीने की बुरी आदत थी जो युवा मंडली पर प्रभाव डालने की कोशिश में बहुत बढ़ गयी थी. शनिवार रात उनके यहाँ अलग ही महफ़िल जमती ,जिसमे पीने पिलाने के साथ गोसिप होती थी.मेरे पति को भी मुकेश ने कई बार आमंत्रित किया,पर उन्हें न पीने पिलाने का शौक था न गोसिप का इसलिए वे समय न मिलने का बहाना बना कर टाल देते थे. 

शोभा और मेरा एक दूसरे के यहाँ आना जाना होता रहता था.हम दोनों की बेटियां भी हम उम्र थी.मुकेश ने मुझसे कई बार कालोनी की महिलाओं की किटी शुरू करने को कहा,उनका कहना था कि आप लोगों का मेलजोल बढेगा तो कालोनी बढ़ने के साथ होने वाली समस्याओं से निपटने में आसानी होगी.इस तरह कालोनी में किटी शुरू हो गयी. नवरात्री में गरबे की शुरुआत मुकेश और उसकी मंडली ने ही की .मुझे गरबे करने का बहुत शौक था. शुरू शुरू में मेरे सिवाय और कोई महिला गरबे नहीं करती थी लेकिन धीरे धीरे प्रोत्साहित करने पर और महिलाएं इसमें जुड़ गयीं. गरबे में मुकेश और उसकी मंडली कई बार शराब पी कर आते. चंदे के पैसों के हिसाब में भी गड़बड़ होती ,उसका हिसाब भी उन्होंने कभी नहीं बताया.लोगों को आपत्ति होती लेकिन मुकेश की ख्याति के चलते कोई कुछ नहीं बोलता था. 

फिर मैंने शोभा के व्यव्हार में परिवर्तन होते देखा .वह सब से बहुत घुलमिल कर बात करती थी पर न जाने क्यों मुझसे कन्नी काट लेती खुद होकर मुझसे कभी बात न करती और मेरे बात करने पर या तो जवाब नहीं देती या सिर्फ मुस्करा कर बात टाल देती. किटी पार्टी में हर महीने मिलना जरूर होता था ,लेकिन जहाँ पहले किटी की गतिविधियाँ हम दोनों मिल कर तय करते थे अब शोभा ने मेरी राय लेना बिलकुल बंद कर दिया था. एक दो बार जब में ही उसके यहाँ गयी तो ऐसा लगा कि उसके पास समय ही नहीं है.मेरा चाय नाश्ते से भरपूर स्वागत हुआ पर आधे घंटे में से बमुश्किल पांच मिनिट वह मेरे पास बैठी. उस दिन कुछ भी न समझते हुए में बहुत अपमानित सी वापस लौटी मन बहुत खिन्न था. मैंने क्या गलत किया ?उसने ऐसा व्यव्हार क्यों किया?यही सोचती रह गयी में. उस दिन के बाद हमारी कभी बात नहीं हुई. 

टेलिफोन की घंटी ने मुझे वर्तमान में लौटा दिया. अँधेरा हो गया था,अख़बार मेरी गोद से उड़कर बालकनी के कोने में पड़ा था.पतिदेव का फ़ोन था .आज मेरे साथ खाने पर कोई और भी आ रहा है खाना बना लेना.
अरे पर तुम्हे थोडा पहले बताना था ना,कौन है?इतनी जल्दी कैसे तय्यारी होगी?मैंने हडबडाते हुए कहा .
परेशान होने की जरूरत नहीं है .हमारी कम्पनी के नए मेनेजर आज ही आये है .तुम तो बस दाल चावल सब्जी रोटी बना लेना और दही और सलाद तो रहेगा ही,बस हो जायेगा. 
बस हो जायेगा कहने से ही हो जाता तो हॉउस वाइफ होना दुनिया का सबसे आसान काम होता.बालकनी में जाकर पेपर समेटे चाय का खाली मग उठाया और खाने की तय्यारी में जुट गयी,और शोभा मेरे दिमाग से निकल गयी. 

हफ्ते भर बाद सुपर मार्केट में किसी ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रख कर पुकारा छवि .चौंक गयी मै मुड़ कर देखा शोभा खडी थी.हलके पीले रंग की कोटन साड़ी में मुस्कुराती हुई.नहीं पहचाना?में शोभा हूँ याद है इंदौर में वीणा नगर ? 
हाँ हाँ पहचाना क्यों नहीं,मैंने तुम्हे हफ्ते भर पहले भी देखा था पर आवाज़ लगाती इससे पहले ही तुम दूर चली गयीं.कैसी हो?यहाँ कैसे?मैंने पूछा.उसकी पहल पर मुझे आश्चर्य हो रहा था. 
में ठीक हूँ सोनम यहीं है ना उसके पास आयी हूँ  बहुत पीछे पड़ी थी वह,अब इंदौर मै अकेले रह कर भी क्या करती?उसकी आवाज़ बुझ गयी. 
मेरा  ध्यान उसके माथे पर गया,छोटी सी काली बिंदी ,शोभा तो बहुत बड़ी लाल बिंदी लगाती थी.कुछ समझी कुछ नहीं जो समझी वह पूछने की हिम्मत नहीं हुई. 
अगर जल्दी मै नहीं हो तो चलो ना कहीं बैठते है मुझे तुमसे बहुत सारी बातें करनी हैं. उसका स्वर गंभीर हो गया. 
कहीं क्यों मेरा घर पास ही है चलो ना वहीँ चलते हैं.इस बहाने मेरा घर भी देख लोगी.
ठीक है में सोनम को फोन करती हूँ तब तक तुम अपनी शोपिंग पूरी कर लो. 
शोपिंग तो फिर आकर कर लूंगी जो हो गयी है उसका बिल बनवाने में काउंटर की ओर बढ़ गयी. 
कितनी दूर है तुम्हारा घर?उसने पूछा.
बस पांच मिनिट का रास्ता है.
तुम्हारा सामान?मुझे खाली हाथ देख कर उसने पूछा .
होम डिलीवरी है घर पहुँच जायेगा .सोनम यहाँ है क्या करती है?सोनम शोभा की बड़ी बेटी है .साथ चलते चलते मैंने पूछा. 
एक कम्पनी में एच आर है.उसके पति भी यहीं बैंक मै हैं. 
और सुप्रिया,छोटी बेटी?
वह दिल्ली में इंजीनियर है उसकी भी शादी हो गयी.तुम्हारी दोनों बेटियां कहाँ है क्या कर रहीं है शादी हो गयी जैसी तमाम बातें करते हुए हम घर पहुँच गए .
बालकनी मै झूला देख कर वह खुश हो गयी. इंदौर मै भी तुम्हारे यहाँ झूला था ना? 
हाँ तुम्हे याद है?
हाँ याद क्यों नहीं?मुझे सब याद है कहते हुए उसकी आवाज़ बुझ सी गयी. 
में असमंजस मै पड़ गयी.पूछना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन पूछ नहीं पा रही थी. चाय पियोंगी मैंने खुद को उलझन से निकालते हुए पूछा. 
हाँ हाँ जरूर.
ठीक है तुम झूले का आनंद लो में अभी आती हूँ. 
चाय पीते हुए उस समय के साथियों की बातें होती रहीं.कौन कौन वहां है कौन बाहर चला गया वगैरह वगैरह .पर बात करते करते कई बार मुझे ऐसा लगा जैसे शोभा किसी उलझन में है. कुछ कहना चाह रही है लेकिन कह नहीं पा रही है. उसने बताया मुकेश का छ महीने पहले हृदयगति रुकने से देहावसान हो गया. पंद्रह पंद्रह दिन सोनम और सुप्रिया उसके साथ इंदौर में रहीं फिर सुप्रिया उन्हें लेकर दिल्ली चली गयी. पिछले महिने इंदौर का मकान भी किराये पर दे दिया और अब वह यहाँ सोनम के पास आ गयी. 
वहां अकेले रह कर भी क्या करती?फिर दोनों को मेरी चिंता लगी रहती है. दो कमरों में सामान रख दिया है कभी कभी वहां भी रहूंगी. 
अचानक उसने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और बोली छवि मुझे माफ़ कर दो. उसकी आवाज़ रुंध गयी. 
अरे पर किस बात के लिए?में चौंक गयी. मुझे कुछ समझ नहीं आया .
मेरे व्यव्हार के लिए जो मैंने तुम्हारे साथ किया. 
अब में अपने को रोक नहीं पाई. पर मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आया की तुम अचानक इतनी बदल कैसे गयीं. मुझसे ऐसी क्या गलती हुई?तुमने कभी कोई बात ही नहीं की. पुरानी तल्ख़ यादों ने मेरे स्वर को कुछ कसेला बना दिया. 
नहीं नहीं तुमसे कोई गलती नहीं हुई और मैंने जानबूझ कर तुमसे दूरियां बनाई पर इसके पीछे भी एक कारण था. 
कैसा कारण?मैंने उत्सुकता से पूछा. 
तुम कालोनी की सबसे एक्टिव महिला थी. हर कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाली,खुल कर बोलने वाली. सभी तुमसे प्रभावित थे.,तुम्हारी बहुत तारीफ करते थे. जब भी कोई मेरे घर आता तुम्हारी बात जरूर होती. पर फिर मुझे मुकेश का तुम्हारे बारे में बात करने का नजरिया बदलता हुआ लगा. तुमने शायद ध्यान नहीं दिया पर जब तुम गरबे करतीं थीं मुकेश तुम्हारे आस पास ही गरबे करते.जब वह गरबे नहीं करते तब भी लगातार तुम्हे ही देखते रहते. तुम इन सब बातों से बेखबर रहतीं पर मुकेश का तुम्हारे प्रति आकर्षण दूसरे लोगों के लिए भी चर्चा का विषय बनने लगा. तुम्हे मालूम है ना मेरे यहाँ शनिवार की रात पीने पिलाने की महफ़िल जमती थी,उसमे भी तुम्हारे बारे में बातें होने लगी थीं ओर जैसी बातें होती थीं मुझे तो तुम्हे बताते हुए भी शर्म आती है.
में अवाक् रह गयी. इतना सब हो गया और मुझे पता भी नहीं चला. मेरे आंसूं बह निकले. 
शोभा यकीन मानों मेरे दिल में ऐसा कुछ नहीं था. 
मुझे मालूम है.तुम्हारा मेरे घर में आना जाना स्वाभाविक रूप से होता था,और मुझे भी तुमसे बात करना बहुत अच्छा लगता था.पर जब तुम्हारे बारे में गलत तरीके से बातें की जातीं तो मुझे अच्छा नहीं लगता था. 
पर तुमने कभी बताया नहीं?
क्या बताती?कि मेरा पति तुम पर गलत नज़र रखता है. और अगर बताती भी तो क्या तुम इसे सामान्य तरीके से ले पातीं? क्या तुम्हे नहीं लगता कि में तुम पर लांछन लगा रही हूँ? आज जब मुकेश इस दुनिया में नहीं हैं तब ये कहना ओर उस समय कहने में जमीन आसमान का अंतर है. मैंने कई बार भाई साहब को भी मुकेश की वजह से असहज होते देखा था. में डरती थी कि नशे में मुकेश कहीं कोई ऐसी हरकत ना कर बैठे की तुम्हारी बदनामी हो.तुम्हारे और भाईसाहब के रिश्ते में कोई खटास पड़े और तुम्हारी बेटियों को शर्मिंदा होना पड़े. इसलिए जो सबसे आसान उपाय मुझे समझ आया वो यही था की तुमसे दूरियां बढाई जाएँ तुम्हे अपने घर आने से रोका जाये. मुझे पता था की तुम स्वाभिमानी हो और ऐसे व्यव्हार के बाद खुद ही मुझ से कट जाओगी ना ही अपनी बेटियों को मेरे घर आने दोगी. जब कोई संपर्क ही नहीं रहेगा तो कोई बात ही नहीं होगी. इसलिए मैंने तुम्हारे घर आना जाना बंद कर दिया यहाँ तक की जब तुम मेरे घर आती तो तुम्हे समय ना दे कर तुम्हारी अवहेलना की. और ऐसा करते हुए मुझे बहुत दुःख भी हुआ पर में और क्या करती? 
हम दोनों एक दूसरे का हाथ थामे बहुत देर तक चुपचाप बैठे रहे.दोनों के दिलों का बोझ उतर गया था. में भी सारी घटनाओं को नए नज़रिए से देख रही थी. एक तरफ पति का मान था तो दूसरी तरफ निर्दोष सहेली का सम्मान भी बनाये रखना था. सही तो था ऐसे में शोभा "और क्या करती?"